नैमिषारण्य, अट्ठासी हजार ऋषियों की पावन तपस्थली
नैमिषारण्य, नैमिष और नीमसार यह एक ही नाम है उस जगह के जहां कभी आर्यों की सबसे बड़ी मिशनरी रही, उत्तर भारत में ऋषियों यानी धर्म-प्ररचारकों का सबसे बड़ा गढ़। आप को बताऊं यह बिल्कुल वैसे ही जैसे अठारवीं सदी में योरोप और अमेरिका से आई ईसाई मिशनरियों ने भारत के जंगलों में रहने वाले लोगों के मध्य अपना धर्म-प्रचार किया और उन्हे ईसाई दीन की शिक्षा-दीक्षा दी, वैसे ही यह आर्य चार-पाँच हज़ार पूर्व आकर इन नदियों के किनारे वनों में अपने धर्म-स्थलों की स्थापना कर जन-मानस पर अपना प्रभाव छोड़ने लगे…धर्म एक व्यवस्था…एक कानून है और यह आसानी से जन-मानस को प्रभावित करता है और उनके मष्तिष्क पर काबू भी ! नतीजतन धर्म के सहारें फ़िर यह धर्माचार्य जनता पर अपना अप्रत्यक्ष शासन चलाना शुरू करते है…उदाहरण बहित है…रोम का पोप…भारत में बौद्ध मठ ….इत्यादि…!
दरअसल ये धर्माचार्य आम मनुष्य के अतिरिक्त सर्वप्रथम राजा पर अपना प्रभाव छोड़ते है, राजा उनका अनुयायी हुआ नही कि जनता अपने आप उनसे अभिशक्त हो जाती है, यदि हम इतिहास में झांके को देखेगे..चन्द्रगुप्त मौर्य पर बौद्ध धर्माचार्यों ने अपना प्रभाव छोड़ना शुरू किया वह आशक्त भी हुआ बौद्ध धर्म से किन्तु चाणक्य के डर से वह बौद्ध नही बन पाया, कनिष्क कुषाण था किन्तु आर्यावर्त के स्नातन धर्माचार्यों के प्रभाव से वह शिव यानी महादेव का उपासक हो गया औय ही हाल तुर्किस्तान से आये शकों का था जो महादेव के अनुवायी बन छोटे छोटे छत्रपों के रूप में उत्तर भारत पर राज्य करते रहे । धर्म का वाहक ऋषि जो गुरू होता था राजा और प्रजा का, राम को ही ले तो दशरथ से ज्यादा हक़ वशिष्ठ और विश्वामित्र का था राम पर….जैसा गुरू कहे राजा वही करता था यानी अप्रत्यक्ष रूप से धर्म का ही शासन…चलो ये भी ठीक धर्म कोई भी हो सही राह दिखाता है….लेकिन यदि धर्म के वाहक ही अधर्म के कैंन्सर से ग्रस्त हो जायें तो उस राज्य और वहां के रहने वालों का ईश्वर मालिक…..।
आप सब को इतिहास की इन खिड़कियों में झाकने के लिए विवश करने की वजह थी, मेरा आर्यावर्त में नैमिष के उस महान स्थल का अवलोकन व विश्लेषण जिसने मुझे स्तब्ध कर दिया ! धर्म के विद्रूप दृष्यों और क्रियाकलापों को देखकर..अब न तो वहां कॊई धर्म का सदगुणी वाहक है और न ही जन-कल्याण की भावना, और न ही कोई ऐसा धर्माचार्य जो मौजूदा लोकतान्त्रिक इन्द्र को यानी लाल-बत्ती वालों को प्रभावित कर अच्छे या बुरे (अपने विचारों के अनुरूप) कार्य करवा सकें…यदि कुछ बचा है तो अतीत का वह रमणीक स्थल जहां कभी कल-कल बहती आदिगंगा गोमती का वह सिकुड़ा हुआ रूप जो एक सूखे नाले में परिवर्तित हो चुका है, घने वनों की जगह मात्र छोटे छोटे स्थल बचे हुए है जहां कुछ वन जैसा प्रतीत हो सकता है ! और ऋषि आश्रमों में जहां हज़ारों गायें विचरण करती थी, हज़ारों बच्चे संस्कृत में वेदों की ऋचाओं का उदघोष करते थे और आचार्य धर्म पर व्याख्यान देते थे…इन सबकी जगह अब वह हमारी निश्छल और गरीब जनता को ठगने और उनका आर्थिक व शारीरिक शोषण करने वाले मनुष्य बचे हुए…गन्दे, भद्दे, मूर्ख, चतुर, कपटी, लोभी, लालची, मनुष्य जो सन्त के चोले में हमारे निश्छल, भोले, सादे, व धर्म भक्ति में डूबे लोगों को वह कपटी, साधनहीन सन्त अपनी जीविका और अय्याशी का साधन बनाने की फ़िराक में तत्पर दिखती है, उनकी आंखों में लोभ की चमक साफ़ दिखती है..! बस वे इसी फ़िराक में रहते है कि कब हमारे गांवों से आये हुए तीर्थ-यात्रियों में से कोई व्यक्ति उनके चंगुल में फ़ंसे…!
यहां एक बात स्पष्ट करना चाहूंगा कि अतीत में धर्म के सहारे सीधे या अप्रत्यक्ष रूप पर जनता पर आधिपत्य करने की कोशिश में धर्म कानून की किताब की तरह कार्य करता था, जिसका पालन शासक और शासित दोनो किया करते थे…लोकतन्त्र और शिक्षा के प्रसार ने अब उस धार्मिक शासन ्यव्स्था को ध्वस्त तो कर दिया किन्तु जन-मानस के मस्तिष्क में वह धर्म और उसका डर अभी भी परंपरा के रूप में पीढी दर पीढी चला आ रहा है, हां अब न तो योग्य ऋषि है और न ही अन्वेषणकर्ता मुनि, सन्त इत्यादि बचे है वो लकीर के फ़कीर भी नही है, बस आडम्बर से लबा-लब भरे विषयुक्त ह्रदय वाले मनुष्य धर्म के भेष में शैतान है जिनकी उपमा किसी जानवर से भी नही दी जा सकती..क्योंकि वह जानवर क्रूरता और दुर्दान्तता के शब्दों सेब मानव द्वारा परिभाषित किया जाता है उसके पीछे उसके जीवित रहने की विभीषिका होती है न कि इन कथित सन्तों की तरह कुटिल कूतिनीति, लालच …..
धर्म के नाम पर बड़े बड़े गढ़, आश्रम और तीर्थ, मन्दिर इत्यादि का निर्माण सिर्फ़ व्यक्तिगत महत्वांकाक्षाओं का नतीजा होते है, जन-कल्याण और शिक्षा की भावना गौढ होती है…नतीजतन ये धर्म स्थल व्यक्ति के अंह और उसके द्वारा बनाये गये नियमों को जनता पर थोपने का अड्डा बनते है..तकि धन, एश्वर्य और वासना की पूर्ति कर सके ये कुंठित धर्माधिकारी।
मैने अपनी इस यात्रा में एक हजारों हेक्टेयर में फ़ैले आश्रम को देखा जहां सैकड़ो ऋषि कुटिया बीरान पड़ी, गौशालायें सूनी है, और संस्कृत शिक्षा देने वाले विद्यालयों में ६०-७० बच्चे, जिन्हे ठीक से इस कठित देव-भाषा का भी ज्ञान नही दिया जा सका, उनसे पूछने पर की आगे चलकर क्या बनना चाहोगे तो उन्हे पता नही…हां एक बच्चे ने बड़े गर्व से कहां हम यहां से पढ़ाई करके यज्ञाचार्य, वेदाचार्य और न जाने कौन कौन से चार्य बनने की बात कही..कुल मिलाकर उन्हे भिखारी बनाने की जुगत और बड़े होकर मां बाप को पानी न दे सके इसकी योजना बस यों ही भटकते रहे कि कब कोई धर्म भीर मिले और वे उसे लूट सके…!
जब मैं इस विद्यालय के भीतर घुसा तो बच्चे अपने सिखाये गये तरीको का इस्तेमाल करने लगे…जैसा कि उनके गुरूवों ने बताया होगा कि किसी आगन्तुक की घुसपैठ पर तुम सभी को कैसा व्यवहार करना है..ताकि यह विद्यालय और बालक ऐसे प्रतीत हो सके जैसे की चौथी- पाचवींं सदी के गुरूकुल या राम की उस कथा के गुरूकुलों की तरह….बच्चे पेड़ो के चारो तरफ़ बने चबूतरे के आस-पास इकट्ठा होने लगे अपने वस्त्र संभालते हुए…एक-दो कमजोर टाइप के बालक (शायद गुरू के आदेश पर जबरू टाइप के बच्चो ने यह मेहनत वाला नाटक करने के लिए कमजोर टाइप के बालकों को चुना होगा)रेत में झाड़ू लगाने लगे..जबकि बुहारने जैसा वहां कुछ नही था…
मैनें उन बच्चों से पूछा की भाई कोई फ़ीस भी पड़ती है..बोले हां ३० रूपये महीना मैने कहां ये तो सरकारी स्कूलों से भी ज्यादा है…तो एक सुधी बालक बड़े संतुष्ट भाव से बोला तीन सौ रूपये में खाना पीना और रहना सब कुछ तो है………
मजे के बात गुरूवों अता पता नही शायद वो सब कही शादी-ब्याह या हवन कराकर अपनी जीविकापार्जन में लगे थे, मैने पूंछा प्रिंसिपल…तो बोले समाधि में है….समाधि में है तो यह सुनकर दो विचार है, कि समाधि दो तरह की होती है..एक मरने के बाद दफ़ना दिए जाने पर और दूसरे जीवित रहकर ध्यान की अवस्था में शिव की तरह…अब मरा हुआ व्यक्ति प्रोसिंपलगिरी तो नही कर सकता सो मैने सोचा आह..क्या बात है अभी भी समाधि लेते है ये महापुरूष..किन्तु..बड़ी देर में पता चला किसी सन्त की समाधि बनी होगी वहा अब बड़ा भवन है पंखा-कूलर इत्यादि से सुसज्जित वही आराम फ़रमा रहे है।
एक बड़े भवन में माइक पर भाषण देता सन्त रूपी मूर्ख चाण्डाल और उसके बीच बैठे कुछ गांव के सीधे-साधे धर्म की पट्टी बाधें गवांर…मुझे उन सब पर बड़ा तरस आया…वह चाण्डाल बार बार माइक पर रटे जा रहा था धर्म पुस्तकों का अध्ययन करो…करो….उन अनपढ़े लोगो से…!
कहते है भगवान विष्णु का चक्र गिरा था तो पाताल तक चला गया और वही पानी निकलता रहता है….!! इस गोलाकार कुऎं रूपी रचना के चारो तरफ़ भी बाउन्ड्री बाल बनाकर चक्र तीर्थ का निर्माण हुआ, यहां प्लास्टिक की थलियाम कड़े और पूजा सामग्री से लबलब भरा यह जल जिसमें श्रद्धालु स्नान कर रहे थे…और उन श्रद्धालुओं से अधिक गोते लगा रहे थे पण्डे (पूजा इत्यादि कराने वाले) क्यों कि जनमानस द्वारा पैसा आदि या चांदी स्वर्ण इत्यादि को चक्र में प्रवाह किया जाता है..जिसे ये लालची पण्डे दिन भर पाने में तैर तैर कर खोजते रहते है……
कुल मिलाकर कभी यह निर्जन स्थान आर्यों के छिपने और बसने की जगह बनी, पहले से रह रही जातियों और मूल भारतीयों से जिनको इन्होंने राक्षस कह कर पुकारा ! और यही दधीच ऋषि ने इन्ही भारतीयों से लड़ने के लिए गायों से अपने शरीर पर नमक डालकर चटवाकर अपनी हड्डियों से धनुष बनवाने के लिए प्राण त्यागे…यह किवदन्ती है जो भी हो ये ऋषि आर्य राजओं के पक्षधर बन जनता में उनके विश्वास को कायम करने में तल्लीन रहते थे और राजनीति यही संचालित होती थी जैसा कि बाद में बौद्ध मठों में हुआ और कुछ सूफ़ियों ने किया….। सत्ता को हासिल करने में धर्म की तलवार का इस्तेमाल नया नही बहुत पुराना है…ईसाई और मुसलमानों से पहले …बहुत पहले से…!
एक बात और पुराणों के नाम पर बहुत से कलुषित विचारों वाले मूर्ख ऋषियों ने दर्जनों पुस्तकों को बूक डाला और हमारी जनता अन्ध-भक्त बन देवताओं और महा-मानवो की वासनाओं की कथाये बड़ी भक्ति भाव से आज भी बाच रहा है टीका चन्दन और धूपबत्ती के साथ। यही वह स्थल है जहां मूर्खों ने तमाम मन-गढन्त देवी देवताओं की वासनाओं का लेखन किया जो दरसल लिखने वाले के दिमाग की उपज थी।
उत्तर भारत को इन आर्य आक्रान्ताओं ने इन्ही धर्माचार्यों की मदद से अपने अधिकार में कर लिया और यही कारण था कि भारत में पहले से रह रही जातियां इन आर्यों से अपने छीने हुए अधिकारों और संपदा को वापस लेने के लिए कुटिल ऋषियों को अपना निशाना बनाते थे…ये आर्यों के एजेन्ट ऋषि हवन यग्य आदि के नाम पर अन्न धन बटोरने में जुटे रहते थे भारतवासियों से और आर्य राजाओं की नीतियों को धर्म का जामा पहनाकर जनमानस को मूढ़ बनाते रहते है….
सिन्धुघाटी को नष्ट करते हुए ये आताताई पूरे उत्तर भारत में फ़ैल गये, धर्म के प्रचार-प्रसार की व्यवस्था आज की ईसाई मिशन्रियों से भी अधिक पुख्ता थी, धर्म को कानून बनाकर जनता पर अत्याचार करते हुए इन आर्यों ने हिन्दुस्तान की धरती को पर वर्न्शंकरों की फ़ौज तैयार कर दी, साथ ही पहले से रह रही मूल? जातियों को दक्षिण में खदेड़ दिया, इनकी सत्ता भी ब्रिटिश साम्राज्य की तरह या अरब के खलीफ़ा की तरह थी..वे गुलामों की फ़ौज भेजते और भारत की धरती पर गुलामों की फ़ौज जनता को अपना गुलाम बनाती…यानी पहले दर्जे का गुलाम दोयम दर्जे के गुलाम पर शासन करता है और लूट-मार का सामान लन्दन या बल्क-बुखारा भेजता…यही हाल था इन आर्यों का जो इन्द्र और उनसे भी बड़े किन्तु अघोषित देवताओं की गुलामी करते ये गुलाम भारत भूमि पर आये और यज्ञ्य के नाम पर यानी टेक्स वसूलते और इन्द्र को भेजते …यहां तक कि जबरियन इन्द्र की पूजा कराई जाती … इतना ही नही इन्द्र जैसे शासक अपने ही भेजे गये एजेन्टो यानी ऋषि पत्नियों के साथ बलात्कार भी करते और उस महिला पर चरित्रहीन होने का झूठा आरोप भी लगाते जिसे न चाहते हुए उस महिला के पति और जनता दोनों को मानन पड़ता। अजीब हालात थे..इन हरामखोर देवताओ और इनके गुलामों के…..आप को याद होगा भारत में आर्यों की वर्णशंकर संतानों ने उन्हे चुनौती दी..जैसा कि अमेरिकन ने कभी जंगे आजादी की लड़ाई अपनी ही कौम से लड़ी थी… हां मै बात कर रहा हूं कृष्ण की जिन्होंने इन्द्र पूजा को समाप्त कर गोवर्धन की पोजा करवाई यह इतिहासी शायद पहली लिखित घटना हो आत्म-स्वालम्बन की, स्वन्त्रता की…पराधीनता के खिलाफ़ कृष्ण का यह विद्रोह मन में स्वाधीनता व आत्मनिर्भरता का सुन्दर भान कराता है…एक वाकया और उस राम का जिसे हम आदर्श मानते है, यकीनन वह गर्व करने वाले व्यक्तित्व थे जो अपने पिता के आकाओं के विरूद्ध जाकर एक नारी के चरित्र पर लगे उस झूठे आरोप को मिटा डाला…हालांकि सत्ता के शीर्ष पर बैठे इन्द्र को दण्डित करने का साहस नही दिखा सके किन्तु उस ऋषि पत्नी पर लगे आरोप समाज से बहिष्ख्रुत महिला की दोबारा वापसी का श्रेष्ठ कार्य दशरथ पुत्र राम ने अवश्य किया…..इतिहास की ये घटनायें हमें यह बताती है कि कैसे धर्म कानून बन अत्याचार और शोषण का माध्यम बना…जो आज भी जारी है….
धर्म स्वयं की अभिव्यक्ति है और साधना भी स्वयं की अभिव्यक्ति है और ईश्वर भी ! फ़िर क्यूं अन्यन्त्र खोजते है हम इसे….सद-शिक्षा, सेवा, जन-कल्याण की भावना से किए गये धार्मिक अनुष्ठान तो समझ आते है पर कपटी लम्पट और अति महात्वाकाक्षीं कथित सन्तों के पीछे पीछे झण्डाबरदारी करते हमारे साधारण व आस्थावान लोग जो प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष इन महानुभावों की कीर्ति की बढोत्तरी का साधन मात्र बन कर रह जाते है यह बात मेरी समझ नही आती !
किसी जाति को गुलाम बनाना हो तो उसकी भाषा, उसका इतिहास और उसका धर्म बदल दो वह जाति आप की अनुयायी हो जायेगी…और आर्यों ने, मुसलमानों ने और ईसाईयों ने यही किया…और बदल डाला पूरा समाज जो परंपरा के रूप में बचा वह आज भी विद्यमान है कही कही…!
अपनी यात्रा के अन्तिम चरण में आदि देव विशुद्ध भारतीय महादेव देव-देवेश्वर के दर्शन के किए जो नैमिष से कुछ ही किलोमीटर दूर दक्षिण दिशा में गोमती के तट पर एक वन में स्थापित है…प्राचीन शिला का यह शिवलिंग अदभुत है।
इस पूरे तीर्थ स्थल पर मुझे कुछ अच्छा लगा तो वे नि्ष्कपट, आस्थावान, लोगो के चेहरे जिनमें निश्छलता और धर्म के प्रति अगाध प्रेम साफ़ दिखाई दे रहा था..किसी कपटी सन्त के बजाए मुझे इन चेहरों के दर्शन मेरी इस यात्रा की सफ़लता थे।
कृष्ण कुमार मिश्र
मई 7, 2011 at 6:49 पूर्वाह्न
बहुत सुन्दर विश्लेषण और इतिहास की घटनाओं की जानकारी बहुत ज्ञानवर्धक रही ….सार्थक लेखन के लिए साधुवाद..
Dr. Rama Dwivedi
मई 12, 2011 at 8:50 अपराह्न
aapki tipani me apane us vichar ko shadhuwad diya hai jo shadu parampara ko pakhand ke alava kuch manane ko taiyar nahi.virdhabhas alankar ke pryog se apaki tipani kavyamay ho gayi hai…
मार्च 16, 2013 at 3:06 अपराह्न
Doctor sahiba aap ko ek achhe doctor ki jaroorat hai…
दिसम्बर 10, 2014 at 2:53 अपराह्न
Sab jhooth h aap jaise pade-likhe logon ko jhoothe logo kt tareef nahi krni chajiye.
अक्टूबर 25, 2015 at 6:57 पूर्वाह्न
kAB SUDHROGE TUM RAKSHASO KI AULAD
फ़रवरी 10, 2016 at 6:36 अपराह्न
Bewakufo tum kya jano arya vanshio ke baareme…. Ye krishna Kumar mishra to, sayad musaale jamat ki padaish hai iske lekh padke mujhe musalmano k saajisho ki bahut Gandhi bu arahi hai, Krishna tu batana tujhe apne baap ka naam to pata hoga na…. Ye aryavanshi ko haramkhor kisliye bol rhaai… Ye Bharat aryavanshi ka desh hai ye 5000 saal pehle nai.. Balki uske pehle we hai…. Prabhu shri ram aryvanshi the….Jo lakho saal pehle Aye the.
अगस्त 26, 2016 at 3:46 अपराह्न
aapane bilakul sahi kaha hai
दिसम्बर 21, 2016 at 8:52 पूर्वाह्न
सत्य वचन मित्र
फ़रवरी 14, 2017 at 6:09 अपराह्न
Bilkul aap ne sahi kaha ye koi muslman h jo itna bol raha h or durbagay ki bat h ki humare apne bi inki bato ko man rshe h
जून 14, 2016 at 10:35 पूर्वाह्न
Jab tum achha bol Sakte ho, achha vyavahaar kr Sakte ho, baawjud iske ghatiya aur doyam darjey wali mansikta kqu h tumhari. Ek line ki baat h pyare. Aaj kl insaaniyat hi sb kuch h Mr. **********. gyani bhawisya aur vishwaash ki baat krtey h aur tumhara dill h ki manta nhi bas dubey jaa rhe h atit ki gahraayi me. dubne me mzaa nhi aata dost kvi future k samundra me tair kr dekho kya pta ek nyi zindagi mil jaye.
दिसम्बर 14, 2016 at 5:10 अपराह्न
Ye batao karodo arobo Sal rahane bale ke absesh milte hai ram ke kyo nahi mile or to valmiki ne ramayan likhi uska bi nahi Pata ki bo itihashi purush tha ya nahi
जुलाई 8, 2016 at 8:43 अपराह्न
सर्वप्रथम कृष्ण कुमार मिश्र जी नमस्कार शायद आप उन भ्रांतियों में जीने वाले लोग हैं जो सोचते कि ऐसे पोस्ट से शायद हिन्दू लोग धर्म परिवर्तन कर देंगे और अन्य या बन जायेंगे आप का सैकुलेरिज्म बड़ा खतरनाक है
चलिए मान लिया जाय कि हिन्दू धर्म गन्दा मलेच्छ संकीर्ण विचारों वाला है और इसके अनुयाइयों को ये धर्म छोड़कर अन्य धर्म अपनाना चाहिए तो ऐसा जरूर होगा तो फिर कौन सा धर्म हम हिंदुओं को अपनाना चाहिए अब आप कई धर्मो का नाम लेंगे जैसे ईसाइयत budhhism या अन्य भी कई धर्म हैं
लेकिन मेने सुना है आजकल एक नया धर्म आया है जो अन्य सभी धर्मों से श्रेष्ठ है हम लोग उसी धर्म को अपनाएंगे और वो है मानवता का धर्म
आप को ये झूठा लेख लिखने के लिए जिस भी धर्म वादी ने घूस दही है उसे भी एक दिन अपना धर्म छोड़ कर के मानवता के धर्म को अपनाना पड़ेगा और उस दिन उस का खुद का धर्म ही समाप्त हो जाएगा
फ़रवरी 17, 2017 at 12:34 अपराह्न
sahab hinduon ko aise gaddaron se hi asli khatara hai
फ़रवरी 11, 2017 at 8:03 अपराह्न
आपको बता दूँ की जिन राक्षसों को आपने गलती से मूल भरतीय मान लिया है उन्हें साहित्य में देवताओं का ही भाई बताया गया है
अप्रैल 11, 2017 at 10:04 पूर्वाह्न
mam aapko bio ki knowledge acchi ho sakti pr history ki nahi. aapne kh diya बहुत सुन्दर विश्लेषण और इतिहास की घटनाओं की जानकारी बहुत ज्ञानवर्धक रही
k;ya siksha mili isse aapko kya jankari mili. haramkhor kya hote hai please tell me about this topic.
मई 7, 2011 at 7:18 पूर्वाह्न
Sach kaha hai aapne, bookish knowledge par nhi, all over facts par sochne ki jarurat hai.
ye dharmacharan ka DHANDHA to aaj bhi aaryo k kathit vanshaj “PANDIT” jo sirf vanshanu kram me pandit hai baaki our kaafi had tak kuch nhi, chalaate aa rahe hai…
mool nivasiyo ko khadeda gaya ya shoshan kiya gaya ho
par hindustaan ki wo hi JANTA sabse jyada gulaam rahi hai
kisi or desh k apexa…….
isko kahte hai baap ki karni baccho ko bharni hi padti hai…
aapne jo nirbheekta dikhaai hai wo appreciable hai…kyuki hum is par ghar me baat karte hai ki kya hua tha our iske pichhe kya scientific reasons rahe honge par social nhi hue….
ham sabhi logo ko manthan karna chahiye
or is level par sochna chahiy
keep it up sir……..
Ankur Dutt
मई 8, 2011 at 10:12 पूर्वाह्न
arya koi community nahi hai mere mitar.arya ek jeevan shaily hai.arya ka arth ha wah har adami jo adam jo apane jeevan, samaz,rastra aur vishav ko behtar banane ke liye janam se martyu tak har pal pryasrat rahe.yadi koi is ksouti par khara nahi utrata to wah arya kaise ho sakta hai.
जनवरी 25, 2014 at 9:17 अपराह्न
Mai Vijay se purdtayah sahmat hu
सितम्बर 21, 2014 at 1:23 अपराह्न
ये लेखक महोदय क्या बता सकते हैं की आर्य कहाँ के निवासी थे और कहाँ से भारत में आये…..
अगस्त 18, 2015 at 11:13 अपराह्न
Ye meaning kounsi dictionary me pdha zra hame bhi btado
सितम्बर 14, 2015 at 8:12 अपराह्न
mera sawal bhi wahi hai jo upar @drsbg ne kiya hai,jo jawab de do to samjho ki fas gaye
जनवरी 4, 2012 at 10:21 पूर्वाह्न
Ankur Dutt ji
24-25-26 feb 2012 ko jind me ek debate rakha gaya hai jisme aap bhi nimantrit hai aur aapke guru krishan kumar mishra bhi.Yaha debate camera me record hoga.Waha par agar aap kisi baat ka utar nahi de paye (validate karke) toh aapko manna padega ki aapke pas gyan nahi hai aap bhed bakri hai.Kripya usme aakar show kare ki aap ke under sach me knowledge hai bekar me prachar na kare.1000 sal gulam rahe log krishan misra aur aap kaise kuch bol sakte hai
सितम्बर 14, 2015 at 8:17 अपराह्न
@ ankur-ye lekh hai hi poori tarah se galat kyoki arya samaj ka mool jo hai uska kya koi zikr dikhta hai yahan? jo aryon ka itihaas sahi se jaan raha hoga wo aisi baaten nahi kahega.
मार्च 22, 2017 at 10:19 पूर्वाह्न
एक लाइन की बात है प्यारे ….”आज कल इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है ” ये बात तुम किराये के टट्टुओं को समझ नहीं आती तुम्हे तो जहा से कुत्तो की तरह रोटी मिल जाती है वही भों भों करना शुरू कर देते हो ।।।।
बिद्वान हमेशा भविष्य की सोचते है और तुम जैसे लोगअब भी अतीत की गहराइयों में खोए हुए हो ।।।।।
मई 7, 2011 at 10:11 अपराह्न
काफ़ी कुछ कह गये भाई…बेहतर…
अक्टूबर 22, 2011 at 3:29 अपराह्न
Ravi ji kya aap mujhe is Bharata des ka jiska asli nam Aaryavart hai is AARYAVART Sse purana nam bata sakte han.
मई 15, 2012 at 4:19 अपराह्न
Dear Brother iska purana nam ‘Bharat’ hi tha jise bad mein ‘Aryavart’ kaha gya, for detail contact http://www.brahmakumaris.com
सितम्बर 21, 2014 at 1:37 अपराह्न
आर्या जी ..रवि ने सही कहा …इसका वास्तविक पुराना नाम भारत ही है …आर्यावर्त बाद में बना ….. यह हिमालय पर्वत के बनने से पूर्व बृहद भारत था जो समस्त पुराणी दुनिया…एशिया, योरोप, अफ्रीका का सम्मिलित भूभाग ….जम्बूद्वीप के नाम से था…कैलाश क्षेत्र व व मेरु पर्वत श्रेणियां के क्षेत्र ..मूल आबादी वाले क्षेत्र थे ….आज का भारत व दक्षिण भारतीय पेनिन्शुला ….गोंडवाना लेंड का विश्व का सबसे प्राचीन पठार है भूभाग… में ही मानव का जन्म हुआ ….जहां से मानव समस्त जम्बू द्वीप में फैला …देव-सभ्यता स्थापना की…. हिमालय के उत्थान व महाजाल प्रलय से यह सभ्यता नष्ट हुई ….पुँनाह दसवें मनु..वैवस्वत मनु ( जो द्रविड़ देश के राजा सत्यव्रत थे )…ने पुनः मानव वंश की नींव राखी इसी भारतीय उपमहाद्वीप में …वहीं से सारे मनुपुत्र संसार भर में फैले….मानवेतर जातियां जो कश्यप की संताने थीं …वे भी प्रलय कल में समस्त विश्व में फ़ैल गयीं …. अपने श्रेष्ठ आचरण के कारण ये मानव अपने को आर्य कहते थे …जिन्होंने आर्यावर्त न दिया इस देश को ……
अक्टूबर 9, 2014 at 3:01 अपराह्न
sun iska purana name bharat h or ye bharat name isliye pada kyuki yha ram k jane k bad bharat unke name se pada pura brahmand aryavart he tha jha aarya dharti per sabse pehle aay the or tum namee ki bol rhe ho name bharat bhart se pada tha jra history uthao tumhar itihas itnaa purana nhi h jisko smjjhne me dikkat ho tumhare me ek se so tk he h hmari ek se jane kaha tk pata nhi jiskooa koi pta he nhi laga paya tujhe smjhene me dikat nhi aayegi geeta pad ushme sb likha h
सितम्बर 4, 2015 at 10:05 अपराह्न
App sabhe to mighe isai ya anya dharma ke aanuyi lagte hi Jo hindio ka chola pahane raja hi ‘app ko to pata ki agar app padhe like hi to visagatiya to sabhi dharmo me hi air ha jaha aaryeo ki baat hi to app ved padhiye app ko pasta chal jayega aur ye Jo mahan admi ne likha uske pass to to aka hi he ni pur a chutiya hi aur ha mere taraf se khuli chunati hi sabhi logo ko a aye air sachatakar late mughse
अक्टूबर 25, 2015 at 6:55 पूर्वाह्न
these all are foreign agents who wants to destroy and defame VEDIC DHARMA and ARYA SAMAJ
मई 8, 2011 at 6:53 पूर्वाह्न
nice
मई 12, 2011 at 9:02 अपराह्न
bhartiya sankriti me ravan ,kans duryodhan aadi ke liye bhi sahitya me gali ka upyog nahi hua hai aur unke charitar ka stik varnan bhi kiya hai yah hai.yah ahi bhartiya lekhan aur darshan ki paripakvata.par aaj gali ke sheersak se likhe lekh prshansa…….ashcharya….
मई 15, 2012 at 4:22 अपराह्न
Brother ji, jab Krishna mishra ji ki Bhavnao ko samjhen to galti nahi hai, ….” agar shanti se kahte to ap comment karte kya?”
सितम्बर 21, 2014 at 1:41 अपराह्न
विजय जी अज्ञान के कारण ..हर चौंकाने वाली वस्तु को , अपनी संस्कृति को गाली को लोग वाह ..वाह करते हैं …जैसे बच्चों के विचित्र व्यवहार व बातों पर…
मई 8, 2011 at 8:41 पूर्वाह्न
——यह कथा ’ हम हरामखोर” के नाम से प्रकाशित होनी चाहिये….क्योंकि हरामखोर आर्य नहीं थे….जीतने वाली जाति या समाज या वर्ग कैसे हरामखोर हो सकता है…
——.क्या आप संसार को जीतने वाली जाति “अन्ग्रेज़” को हरामखोर कह सकते है..??? नहीं हम हरामखोर होगये थे और आप जैसों के विचारों से अपने कर्मपूर्ण अतीत को भूलकर..काम चोर होकर पूरी एक सदी तक गुलाम रहे……
—- विदेशी चश्मे से देखने पर यही दिखाई देता है…….तिलक को पढो…तो इतिहास का सही ग्यान हो……
—- पौराणिक इतिहास के तथ्यों की समाज-वैग्यानिक व राजनैतिक व्याख्या समझिये तभी असलियत का ग्यान होता है…..विदेशियों के लिखे आलेखों से नहीं….
अक्टूबर 22, 2011 at 3:18 अपराह्न
Gupta ji Aap bilkul thik kaha rahe hai .
जनवरी 4, 2012 at 10:23 पूर्वाह्न
dhanyavad gupta ji
Sab logo ko 24-26 FEB ke challenge ka bulawa hai aaye aur apni knowledge dhikhaye.jind me(haryana)
अप्रैल 21, 2014 at 3:03 अपराह्न
आपका कहना बिलकुल सही है गुप्ता जी। लेखक एक कुंठित और संकुचित विचारधाराका व्यक्ति है।
जिसने गौरवपूर्ण अतीत को अपनी बुद्धि पर लगे काले चश्मे से देखा है।
सितम्बर 5, 2016 at 6:03 अपराह्न
lekhak cutiya hain aur wo sabase bada haramkhor hain Q ki agar wo hindu dharm me janam liya aur usi ka anadar kar raha hain yani usane hindu dhgarm nahi apni ma ka anadaar kiya to isase spast hain hain ye haramkhor dogala hain madharcod
जुलाई 22, 2014 at 2:50 अपराह्न
ati utkrist uttar
अप्रैल 6, 2015 at 6:39 अपराह्न
Ham aapse sehmat hai gupta ji, jin logo ko apni sanskriti or uske sabhyata ke bare mai kuch pta na ho woh log Aryo ko haramkhor keh rahe hai, sharam kerni chayie aise logo ko jo inka samarthan kerte hai.
दिसम्बर 1, 2015 at 10:03 पूर्वाह्न
डॉ. शयाम गुप्ता महोदय द्वारा सर्वोतम समाधान किया गया Krishna mishra ji ki Bhavnao का
किन्तु Krishna mishra ji की मूळ भावना का हम सम्मानं करते है जिसमे कथित भारतीय साधू समाज के पाखंडवाद पर बहुत ही रचनात्मक कुठाराघात किया गया है इस हेतु इनका लेख परासंगिग हो गया है ….
मई 8, 2011 at 8:52 पूर्वाह्न
“”नैमिषारण्य, नैमिष और नीमसार यह एक ही नाम है उस जगह के जहां कभी आर्यों की सबसे बड़ी मिशनरी रही, उत्तर भारत में ऋषियों यानी धर्म-प्ररचारकों का सबसे बड़ा गढ़। “””
—नैमिसारण्य कभी आर्यों बहुत बडा धार्मिक गढ नहीं रहा…..अपितु सत्य तो यह है कि यहां सिर्फ़ एक बहुत बडा धार्मिक-सम्मेलन( जो उस समय मानव आचरण के नीति-नियमों की व्याखाया के लिये हुआ करते थे ….जैसे आजकल भी धार्मिक सम्मेलन होते हैं) हुआ था जिसके अध्यक्ष वेद-व्यास बनाये गये थे…..
—-सिर्फ़ स्थान को देखने से किसी को पूर्ण सत्य ग्यात नहीं हो पाता….प्रायः वहीं रहने वाले लोग उस स्थान की महत्ता व इतिहास नहीं जानते…..
—–प्रक्टिकल से पहले शास्त्रीय( थ्योरी–मूल नियमों ) ग्यान बहुत आवश्यक होता है…अन्यथा भ्रमपूर्ण ग्यान प्रकट हो जाता है….
मई 8, 2011 at 8:55 पूर्वाह्न
—सर्व धर्म परित्यज्य मामैकं शरणं ब्रज—– सारे ग्रन्थों को भूलकर सिर्फ़ –वैदिक व औपनिषदीय साहित्य पढें….सारे भ्रम दूर होजायेंगे..
मई 12, 2011 at 10:42 अपराह्न
kshama kare neeche wali tipani apke liye nahu balki krishan mishra ke liye thi
जनवरी 9, 2013 at 10:41 अपराह्न
aur gulam banana chahte ho kya
मई 8, 2011 at 9:16 पूर्वाह्न
aap jo khud nahi jante use use bhi dusron ko batane ka jo prayas aap kar rahe hain uske liye prsansha ke patra hain.do you know wht does arya means?
मई 8, 2011 at 10:26 पूर्वाह्न
lekhan jitna aasan aap sajhte hai vastav me utana hai nahi. Jis vishay par aap likh rahe hai matar uski janakari hi pryapt nahi hoti, apitu jin shabdon ka chayan aap kar rahe hain un sabka vatvik arth aur mahtav aapko malum hona chahiye. nahi to pahle hi samaz me jinke galat arth liye jate hain aap usi vikriti ko aur poshit karenge
मई 8, 2011 at 1:30 अपराह्न
डा० श्याम गुप्त जी सबसे पहले आप को धन्यवाद टिप्पड़ी चिपकाने केलिए..आगे मसला ये है कि अंग्रेज इस लिए पूर्ण रूप से हरामखोर नही थे क्योंकि उन्हों ने किसानों के शोषण के बदले नहरे खुदवाई, स्कूल, अस्पताल इत्यादि एक बेहतरीन सिस्टम…चूंकि वो विदेशी शासक थे और भारत की धरा की संपत्ति इंग्लैंड रवाना करते थे,..जो उनके पारिश्रमिक से ज्यादा थी इस लिए वो भी हरामखोर थे..एक बात और उन्हों ने भारत में हरामियों यानी वर्णशंकर सन्तानों की फ़ौज इकट्टा नही की मुसलमानों और आर्यों की तरह…आर्य एक बर्बर और खानाबदोश जाति थी और उन्हों ने भारत आकर द्रविड़ों,कौल-भिल्लो और आग्स्तेय आदि जातियों से वन-संपदा, औषधि और भवन निर्माण इत्यादि सीखे आप को बता दू वेदों में आर्य ऋषियों से ज्यादा ऋचाएं द्रविड़ ऋषियों की है…
सितम्बर 6, 2013 at 4:37 अपराह्न
You do not know a b c of veda
अप्रैल 21, 2014 at 3:11 अपराह्न
श्रीमान कृष्ण कुमार मिश्रा जी,
क्षमा कीजिये पर आपकी भाषा और आपके विकारों के आधार पर तो आप स्वयं भी वर्णशंकर ही प्रतीत हो रहे हो।
जून 24, 2016 at 9:22 अपराह्न
Sahi javab …he banai varnsankar ki aulad h. ..
नवम्बर 15, 2014 at 1:07 पूर्वाह्न
Wah kya likhate hai aap prashidhi pane ka achcha tareka hai lekin aapne kabhi so cha hai isaka samaj me kya asar hota hai
अप्रैल 13, 2016 at 1:23 अपराह्न
महाशय कृष्ण कुमार जी सर्वप्रथम आपको ऐसा उत्तर देने के लिए no 1 कुतर्की अवार्ड मिलना चाहिए
सर्वप्रथम वार्ता ये है की अंग्रेजो और मुसलमानों जो किया उन सबके सबूत मौजूद हैं और ये सब उतनी प्राचीन वार्ताएं नहीं हैं न ही उतनी पुरानी घटनाएँ
जबकि आर्यों का इतिहास न तो सही से ज्ञात है और न ही उनके आक्रमण का कोई पक्का सबूत है
और न ही उनके बाहर से आने के कोई पक्के प्रमाण हैं और
जो भी तर्क आर्य आक्रमण या आगमन के सिद्धांत में दिए गए हैं वो सचाई पर पूरी तरह खरे नहीं उतरते बस किसी के कुछ भी कह देने से कोई बात यूँ ही सच साबित नहीं हो जाती अगर वाकई ऐसा आक्रमण हुआ होता और उसके पूरे सबूत होते तो स्वयं पाश्चात्य विद्वान् इसमें अलग अलग मत या विरोधाभाषी नहीं होते सब उसे सत्य ही मान लेते जबकि कुछ लोग इसे सही बताते हैं जबकि कुछ लोग इसे महज मिथ्या मानते हैं
और आज तो आर्य आक्रमण में बहुत विकृति आ चुकी है जिससे ये सिर्फ झूठ ही साबित हो रहा है
मनाई जनता हूँ की मेरे इस तर्क पर भी आप एक कुतर्क देकर अपनी ही बात सही साबित करोगे
पर एक बार आपसे निवेदन की सत्य को देखने की कोशिश करिये
जिस सिंधु घाटी को आप गैर आर्य सभ्यता मानते हैं
उस सभ्यता में 70% आर्य विशेषताएं अवं आर्यों के सामान देवी देवता और और रीती रिवाज मिले हैं
इससे आपकी एक बात तो तो बिलकुल भी गलत साबित हो जाती हैं कि आर्यों ने वर्णशंकरों की फौज बना दी क्यों जिन नियमों और धर्म को आप आर्यों के द्वारा जबरदस्ती सिंधु वासियों थोपे जाने की बात कर रहे हैं वो सब नियम सिंधु सभ्यता में पहले से मौजूद थे फिर आर्यों द्वारा थोपे जाने वाली बात तो कही से भी सच साबित नहीं हो सकती क्यों कि आदमी पर वो नियम या धर्म कैसे थोपा जा सकता है जिसका वो पहले से अनुयायी हो
एक बात और अगर ऋग्वेद में आर्य ऋषियों से ज्यादा द्रविण ऋषियों की ऋचाएँ हैं तो फिर ऋग्वेद तमिल में क्यों नहीं लिखा गया है क्यों संस्कृत में लिखा गया है उस समय में तमिल का अनुवाद किसने किया
और आर्य अगर बर्बर खाना बदोश थे तो उन्होंने भारत आकर के तुरंत एक उच्च कोटि की भाषा और व्याकरण की रचना कैसे कर दी
आपको बता दूँ की जिन राक्षसों को आपने गलती से मूल भरतीय मान लिया है उन्हें साहित्य में देवताओं का ही भाई बताया गया है
या तो आपको भारत के इतिहास की कोई जानकारी ही नहीं है या आपका दिमाग ख़राब है
अगस्त 5, 2016 at 1:11 पूर्वाह्न
Jabar just Sur fan of yours
अगस्त 5, 2016 at 1:27 पूर्वाह्न
Bed likh liyebhi liye hongey to koun sa dravid pradhan muntri bun gya desh key ek bhi dravid …..aag lagana chhod k Nye jamane mey Jana sikho aaj ki bat kro aarya dravid our koi kaam nhi hai….itna dimag hai to isme west krne ke value kuch vaigyanik aaviskar krke dekh ka naam bnao ab to sab Bharat k liye jiye hain ab kya arya dravid kr rhe ho.
अप्रैल 11, 2017 at 8:57 पूर्वाह्न
jyada to mujhe gyan nhi pr tum ye bta do ki haramkhor ka matlab kya hota h. or mishra kya hote hai.
अप्रैल 11, 2017 at 9:05 पूर्वाह्न
phle apne bare m batao mishra ji. ki mishra kon hote hai. kya hote h. kya history hai. kha se aaye or ha aaryo k bare m likh to diya to ab ye bhi bta do k ab aarya bharat me hi kyo hai jha se aaye the wha nhi bache sare yahi aa gye.
मई 8, 2011 at 1:36 अपराह्न
विजय जी सर्वप्रथम आप को नमस्कार…लगता है आप उन्ही गफ़लत में रहने वाले लोगों में से है जो हिन्दू की परिभाषाएं बनाते रहते है…एक पुरानी व धनी भाषा का ये शब्द जिसे सेकुलर भारत में आप एक विशेष सम्प्रदाय को चिन्न्हित करना चाहते है..क्योंकि आपके पास आप की पहचान का कोई शब्द नही…खैर आप ही मुझे बताए जिन्हे आप हिन्दूं कहते है वे कौन है..लेक्चर मत दीजिएगा और बहकी बहकी बाते मत करिएगा….भारत के संविधान में अपने धर्म की परिभाषा खोजिए कही मिलती है…कही सनातन धर्म कहते हो कही आर्य कही वैदिक आखिर मसला क्या है..वैसे हरामियों का धर्म क्या होता होगा..खैर अमेरिका से सीखिए वे अलग अलग कौमों की सन्तान होने के बाद भी ईसाई है और उनकी एक पहचान है…महाभारत के कुछ पन्ने फ़ाड़ कर गीता बना देने से या किसी आदर्श राजा के चरित्रगाथा को धर्मपुस्तक बना देने भर से आप की जिम्मेदारे खत्म नही होती…..अपनी पहचान खोजिए ये एक बड़ा सवाल है…
मई 9, 2011 at 9:18 पूर्वाह्न
meri matar ek tipani ke aadhar par par mere vyaktitav ka aakalan karne ke liye apka dhanywad. Mujhe aap purvagrah se peedit mante hain ispar bhi koi aschraya nahi hai balki mujhse swand ke liye aapka aabhari hun. Par ek nivedan hai 1835 me british parliament me lord Mekale ke tatkalin bhartiya siksha aur samajik vyavastha tatha usko smapat karane ke uddeshyon ko padenge to aapko aapki bat khud hashyapad lagegi
अप्रैल 21, 2014 at 3:15 अपराह्न
सबसे पहले तो स्वयं आपको ही अपनी पहचान खोजने की अति आवश्यकता है मिश्रजी।
नवम्बर 24, 2015 at 4:31 अपराह्न
Krishna.
tu kiski olad h.
band kr apni bakwas …….
janta kuch h ni…
aa gya bakbak krne
अप्रैल 13, 2016 at 1:58 अपराह्न
मुझे आपका वाकई दिमाग ख़राब ही लगता है कृष्ण कुमार मिश्र जी
आपको भारत के ही नहीं पूरे विश्व के इतिहास की कोई जानकारी ही नहीं है
आप जिन अमेरिका के लोगों के एक ईसाई होने की बात कर रहे हैं जरा उस अमेरिका के 500 से 600 पहले का इतिहास देखियेगा तब पता चलेगा की बात क्या होती है
जब अंग्रेज ईसाई वहां पहुंचे तो मूल अमेरिका के निवासियों का उन्होंने किस तरह शोषण किया
उनका रंग काला होने के कारण अंग्रेज उन्हें”” “””black buldog”” यानी “””काला कुत्ता”” कहकर पुकारते थे
उनके साथ जानवरों जैसा व्यवहार किया जाता था
फिर भी वो आज सब ईसाई हैं और एक हैं
पता है ऐसा क्यों है क्यों की वो बीते हुए अतीत को अपने आज से नहीं जोड़ते बल्कि केवल गुजरे कल से सीख लेते हैं
जिस तरह से बाइबल ने कभी ये सन्देश नहीं दिया था की काले लोगों से ऐसा सलूक करो
ठीक उसी तरह वेद और गीता भी कभी ये सन्देश नहीं देते कि छोटे वर्ग वालों का शोषण करो कभी नहीं लेकिन संसार में स्वतः गई कमियां आ जाती हैं
और हमें ही उन कमियों को पूर्ण करना होता है
यूँ उस पर केवल विलाप करने से कुछ नहीं मिलता
अगस्त 5, 2016 at 1:19 पूर्वाह्न
Are ye pagal hai apne sey baat kr e layak nhi hai naam k aage Mishra lga hai sala apne hi aap ko gali dey rha hai
अप्रैल 20, 2016 at 2:50 अपराह्न
Kirashan kumar mishr apka kahana bhut had tak sahi hai kunki koi bhari log hi honge jinhone jatibaad bnaya taki logo par apni humumat kar sake agar ye yahi ke moolnivasi hote to inhe ye sab karne ki jarurat hi nai padti kunki apne ghar main log ek doosre se alag to rah salte hai lekin itna bhedbhav or pakhand nai kar saktw ki dusro ka jeena hi doobhar ho jaye
मई 11, 2011 at 4:39 अपराह्न
i think mr.krishna u r really a guy having more logic and scientific point of view .it is really good but at some extent only. you cant abuse a community on the basis of doctored fact which is nothing but the outcome of mentally ill people like you before writing any thing you have to think a lot otherwise it can be panic for others and we cant have a good and healthy society where people can live together with proper harmony and full of respect and love for one another . the ARYA word is derived from Sanskrit means people from ARANYA (JUNGLE) SO WE ALL FROM SAME COMMUNITY . if u cant believe it please get your DNA test done so that u can come to know the fact. i know that u will never allow this post published on your blog that is why i am posting it on facebook.
मई 11, 2011 at 4:40 अपराह्न
i think mr.krishna u r really a guy having more logic and scientific point of view .it is really good but at some extent only. you cant abuse a community on the basis of doctored fact which is nothing but the outcome of mentally ill people like you before writing any thing you have to think a lot otherwise it can be panic for others and we cant have a good and healthy society where people can live together with proper harmony and full of respect and love for one another . the ARYA word is derived from Sanskrit means people from ARANYA (JUNGLE) SO WE ALL FROM SAME COMMUNITY . if u cant believe it please get your DNA test done so that u can come to know the fact. i know that u will never allow this post published on your blog that is why i am posting it on facebook.
मई 11, 2011 at 11:56 अपराह्न
बी के मिश्र जी आर्य का अभिप्राय होता है श्रेष्ठ न कि आप का मनगढन्त अर्थ जंगली…..अभी और पढ़े
मई 12, 2011 at 12:00 पूर्वाह्न
आर्यों के विशाल इतिहास और उनके क्रियाकलापों पर मेरा यह लेख मात्र एक झलकी है इसे किसी इतिहासिक शोध या मैने अपने ज‘जान को बघारने का दुश्साहस नही किया है बल्कि आप सभी के नज़रिये से अवगत होने का कारण मात्र हैं मेरे ये विचार…कि हरामखोरों की मौजूदा कौमें जिनमें मध्य-एशिया, योरोप आदि के वंशजों का मिलाजुला रक्त है क्या सोचती है इतिहास के इस पन्ने के विषय में…तो हरामियों आप का स्वागत है….कुछ कहें अवश्य !
मई 12, 2011 at 10:30 अपराह्न
jis aadmi ne jeevan me jo kamaya hai wah dushron ko wahi de sakta hai.Isliye mishra ji hame khed hai ki humne galiyan kamai hi nahi hai to apko kaise de sakte hain. Lekin ye hum par nirbhar hai ki hum kisi ki di hui vastu sweekar kare ya na karen.so aapki galiyon ka kosh aapke budhikosh kosh ko hi sushobhit karta rahega. mere pass apko dene ko sirf subhkamnaye,prem aur nek salah hain jo maine jeevan me kamayi hain
सितम्बर 6, 2013 at 4:34 अपराह्न
Dear Mishra, Read Satyartha Prakash of Swami Dayananda, Read Poona discourses of swami dayananda visit Arya samaj Jam Nagar web site. Try to know the truth about Arya
मई 12, 2011 at 11:25 पूर्वाह्न
ise pdho http://en.wikipedia.org/wiki/Brahmin_communities#Brahmin_communities_and_genetic_studies ye Genetic study ye kehti h ki Brahmins Local original Indian caste h. Aryans knhi se nhi aae ye India ki hi product the. Britishers jo kehte hn ki Aryans outsider the wo galat h wo Study Language similarity ka result tha Genetics ki Study usse mel nhi kha rhi.
मई 12, 2011 at 8:39 अपराह्न
aapka satya ko shidh karne ka pryas kabile tarif hai par mishra ji ko samjhana vyarth hai kyonki soye hue ko jagya ja sakta hai par jagte hue bhi sone ka natak karne wale ko jagana namumkin hai.hum tark ka jawab de sakte hai kutrk ka nahi .
अप्रैल 21, 2014 at 3:18 अपराह्न
BAHUTSAHI KAHA AAPNE VIJAYJI.
अप्रैल 13, 2016 at 7:41 अपराह्न
कृष्ण कुमार मिश्र जी
आपने जो तर्क दिया है वह हर जगह पर सही नहीं होता
चलो आपकी बात सही है कि जब कोई विजेता किसी राज्य को जीतता है तो जगह का नाम भी वही रखता है जैसे भारत के कई जगहों के नाम विदेशी विजेताओं ने रखे हैं
परंतु कृष्ण कुमार मिश्र जी जरुरी नहीं है की हर बार हर स्थिति में यही होता हो
एक ही बात हर स्थिति में कैसे हो सकती है ??
दक्षिण भारत को तो आर्यो ने कभी नहीं जीता और
न ही कभी वहाँ आक्रमण किया
फिर भी दक्षिण भारत के आधे से ज्यादा जगहों के व् शेरोन के नाम संस्कृत में हैं जो कि आर्यों की भाषा है जैसे
तुंगभद्रा चित्रदुर्ग गंगावटी घाटप्रभा भद्रावती कृष्णराजपुरा कृष्णगिरि धरमापुरी तिरुअनंतपुरम सिंदीवनम् वेदांतमंगलं कांचीपुरम राजपलयं रामनाथपुरम
यहाँ कैसे आर्यों की भाषा पर नगरों व स्थानों के नाम पड़ गए इस क्षेत्र को तोआर्यों ने कभी न ही जीता
इससे ही पता चल जाता है की आप में तर्क को समझने की व् किसी तथ्य पर विचार करने का कितना सामर्थ्य है कृष्ण मिश्र जी कृपया अपने व्यक्तिगत तर्क अपने ही पास रखिये विश्व में और भी विद्वान् है लेकिन सबने इसे सत्य नहीं स्वीकार किया तो फॉर आप कोण होते गो बिना तथ्यों के किसी को भी कुछ कह देने वाले
अप्रैल 21, 2016 at 8:32 अपराह्न
कृष्ण कुमार जी
आपने एक तर्क दिया चलो मान लिया जाये कि वो एक स्थिति पर सही होता है
परंतु यह आवश्यक नहीं है कि हर स्थिति में एक ही तर्क सही होता हो
आपकी बात से सहमत हूँ की जब कोई विजेता किसी राज्य को जीत लेता है तो उस राज्य के शहरों नगरों व् गाँवों व् राज्य का नाम विजेता ही रखता है जैसा की आपने ऊपर बताया कि भारत की कई जगहों के नाम विदेशी विजेताओं ने ही अपनी भाषा में रखे हैं
परंतु यह बात हर स्थिति में लागू नहीं हो सकती
दक्षिण भारत को तो आर्यों ने कभी नहीं जीत था और न ही आर्यों ने कभी वहां पर आक्रमण किया था
लेकिन फिर भी दक्षिण भारत में आधे से अधिक स्थानों व् जगहों के नाम आर्यों की भाषा संस्कृत में हैं
जैसे
तुंगभद्रा चित्रदुर्ग गंगावटी घाटप्रभा
भद्रावती कृष्णराजपुरा कृष्णागिरि धर्मापुरी तिरुअनंतपुरम सिंदिवनम वेदांतमंगलम कांचीपुरम राजपलायम रामनाथपुरम
इन्ह जगहों पर ये संस्कृत नाम कैसे पड़ गए यहाँ तो कभी आर्यो ने कोई भी स्थान नहीं जीता
इससे आपकी बात हर जगह पर सही नहीं उतर सकती की विजेता ही जगह के नाम रखे
और एक बात और मिश्र जी
जहाँ तक लेटेस्ट स्टडी की बात है तो लेटेस्ट स्टडी भी यही कहती है की
उत्तर भारतियों का डी न ए न तो यूरोप वालों से मिलता है और ना ही मध्य एशिया वालों से मिलता है
इसीलिए आपने जो भी स्टडी की हैवो न तो लेटेस्ट है और न ही सच है इसलिए अपने स्वयं के द्वारा प्राप्त किया हुआ या कल्पना किया हुआ ज्ञान अपने ही पास रखें तो बेहतर होगा जरा और अध्यन करें मध्य एशिया और उत्तर भारत के मध्य प्रदेश की जलवायु एक जैसी ही है बस अंतर ये है की मध्य एशिया की भूमि ऊबड़ खाबड़ है और भारत की भूमि समतल
मई 13, 2011 at 9:09 अपराह्न
MACALE K GULAMO JISE NAHI JANTE US PAR MAT LIKHO YUN ARYO KO BADNAM NA KARO JANNA HAI TO SAMNE AAO ARYO NE JIS DESH PAR APNI DHARM SASKRITI KA PARCHAR KIYA THA US DESH KA KYA NAM THA OR ARYA KAHA SE AAYE THE IS DESH KA NAM ARYAVART TERE MACALE NE RAKHA THA KYA?
मई 14, 2011 at 1:12 पूर्वाह्न
aditya ji aap hi bata de ye arya kaun the aur kaha se aaye aur ye itane buddhiman aur saksham the to fir apane vajood ko aryavart me bacha kyo nahi paaye…aur ha desh shahar aur gaon ka naam vijeta rakhta hai gulam nahi…angrejo aur musalamaano ke dwara rakhe naamo par gaur kare jinhe aap jaise varnshankar aaj bhi badal nahi paaye…allahabad, murshidabad, alhaganj, cownpore, mohammadpur, saraiya william..etc
अक्टूबर 25, 2013 at 4:52 पूर्वाह्न
listen dont talk as a fool and u dont know abt gita,vedas and upnisad bcoz even u dont have ideas abt shamadhi and listen there r 4 path for achieving god and it is not necessary to believe in god if u can obtain god without believing into the god and who told u aryAWARTH HAS LOST.IT IS STILL IN EXIST AND IT IS ETERNAL
अप्रैल 22, 2016 at 10:18 पूर्वाह्न
कृष्ण कुमार मिश्र जी आपके इस प्रश्न का उत्तर की आर्य कौन थे और कहाँ से आये थे इसका उत्तर आपको कही नहीं मिलेगा
जिन विद्वानों ने आर्यों को भारत में विदेशी बताया है खुद वो विद्वान् भी आज तक ये नहीं बता पाये की आर्यों का देश कौन सा था और वो किस देश के निवाशी थे
अगर आर्यों के आदि देश के बारे में अंग्रेज विद्वानों कई मत देखें
तो कोई योरोप कहता है;;” तो कोई मध्य एशिया ;”
कोई ऑस्ट्रिया कहता है ;” कोई हंगरी कहता है
तो कोई जर्मनी कहता है कोई रूस कहेगा तो कोई
ईराक कहता है
मतलब मध्य एशिया से योरोप और ईराक तक हर कोई अपने अपने हिसाब से आर्यों का पता बता देता है
पर एक बात समझ में नहीं आती की आखिर विभिन्न देशों से जो की एक दूसरे सेबहुत दूर हो उन सब देशों में एक ही जाती के लोग कैसे रह सकते हैं
जैसा की में ऊपर की दो टिप्पणियों में आपको समझा चूका हूँ की विजेता ही किसी राज्य और देश का नाम रखता हो ये हर स्थिति में सही नहीं हो सकता
क्यों की दक्षिण भारत के स्थानों और जगहों के नामो पर गौर कीजियेगा वहां के आधे से ज्यादा जगहों के नाम आर्यभाषा संस्कृत में हैं
तो की इससे क्या ये सिद्ध हो जाएगा की दक्षिण भारत को आर्यों ने जीत लिया था ?????
जी बिलकुल नहीं
दक्षिण भारत को आर्यों ने कभी नहीं जीता
और न ही वहां कभी आक्रमण किया फिर भी वहां की जगहों के नाम संस्कृत में क्यों रखे गए हैं
एक बात और मिश्र जी ये ऐसा शायद हो सकता है की जब कोई विदेशी विजेता किसी अन्य राज्य को जीत ले तो वो वहां का नाम भी अपने हिसाब से रख दे पर विदेशी कभी जीते हुए देश को अपना देश कह कर नहीं पुकारता
अंग्रेजो और मुसलामानों ने भारत को जीत कर भले ही जगहों के नाम अपने हिसाब से रख लिए हों पर उन्होंने अपने किसी साहित्य या इतिहास में भारत को मेरा देश कह कर नहीं पुकार है यही की किसी स्थान व नदियों या किन्हीभी स्थलों को मेरा कह कर नहीं पुकारा है इसलिए क्यों की वो विदेशी शासक थे
और जरा आर्यो के साहित्य को और ऋग्वेद को पढियेगा जगह जगह पर एहि सम्बोधन मिलेगा
मेरा आर्यावर्त मेरी गंगा मेरी यमुना मेरी सरस्वती मेरा प्रिय देश कोई विदेशी इस तरह से क्यों सम्बोधन करेगा
मई 14, 2011 at 1:19 पूर्वाह्न
vijay ji aur neeraj ji please read some latest study “who is in your blood and where from !” nowadays most north indian population is a mixture of many races due to lots of foreign invasions….if you want perfect result of aryan race then go to search for human body of 2000 BC….you will get genetic blue print..which will be related to the somewhere middle east or west…
अप्रैल 3, 2015 at 7:24 अपराह्न
JAI VALMEKI MISHRA JI, AAP BILKUL SAHI KEH RHE HAI, BHARAT ANARYON KA DESH HAI NA KI ARYON KA, AADI SHABHYATA, HI BHARAT KI SHABYATA HAI, PANDIT JAWAHAR LAL NEHRU KI BOOK BHARAT EK KHIJ, BHI ISHI PER LIKHI HUI HAI, BHARAT K MOOL NIWASI ANARYA, BHIL, DRAVID, NAGWANSI,ETC HAI, PRAM AADARNIYA SUKRACHARYA DARSHAN RATANA RAAVAN THE CHIEF OF AADI DHARAM SAMAJ “AADHAS” BHARAT. IS SAMBADH MAIN AUR ADHIK SAMAJHNE K LIYE, VISIT US:- http://WWW.AADHASBHARAT.COM
DAANAV RAJ BHEEL
अप्रैल 23, 2016 at 10:14 अपराह्न
ohhh i am shoked???????
भ्राता कृष्ण कुमार मिश्र जी तो latest study में ये
पता चल चूका है की आर्यों के विदेशी होने का
और DNA में भी
लेकिन फिर भी ये जानकारी किसी हिस्ट्री बुक में नहीं छपी और न ही किसी न्यूज़ चैनलों पर ये खबर आई
मिश्र जी अगर वाकई DNA रिपोर्ट में पता चल चूका है की आर्य विदेश से आये थे
तो फिर तो ये भी पता चल जाना चाहिए की की आर्य किस देश के निवासी थे और किस देश के लोगो से उत्तर भारत के लोगों का D N A मैच करता है
तो फिर उस देश का नाम भी बताइये न जिसके लोगों साथ आर्यों का D N A मिलता है
ये somwhere middile east या west क्या लगा रखा है
डायरेक्ट उस देश का नाम बोलिये जंहा के लोगों के साथ आर्यों का DN A मिला है
अगर latest study में पता चल चूका है कि आर्य विदेशी थे तो इनके मूल देश का पता क्यों नहीं चला
किसी न किसी देश के लोगों के साथ तो मैच करता होगा
जब आप somwhere मिड्डीले east या वेस्ट बोलते हैं तो ही पता चल जाता है की अपने जो latest study कितनी सही है अगर सही होती तो somwhere क्यों होता डायरेक्ट that country होता और उस जगह का नाम भी होता और देश का नाम भी होता
अपनी इस फर्जी latest study को अपने पास ही रखिये जो न तो किसी न्यूज़ के द्वारा हमें मिली ह और न ही किसी latest history बुक में ये जानकारी छपी है
आपको पता भी है की आर्यों का मूल देश ढूंढने में इतनी कठिनाई क्यों हुई और क्यों उनके मूल देश का कोई अता पता नहीं है
क्यों की आर्यों का DNA भारत के किसी भी बाहरी देश के लोगो के साथ मैच नहीं होता यही कारन है कि आज तक आर्यों के आदिदेश को लेकर विद्वानों में कई मतभेद हैं
आपको सचमुच कोई mentlic problem है क्या की जो मन में आया वही लिखे जा रहे हो कोई जानकारी भी है क्या
और सबसे बड़े गधे तो वो हैं जो तुम्हारी हाँ में हाँ मिला रहे हैं जरूर ये सब भारत विरोधी लोग होंगे
जो गलत सलत ज्ञान दे रहे है और आप स्वयं भी
किसी ने सही कहा है लोकतंत्र की यही समस्या है की जिसको देखो कुछ भी बोल देता है
मई 31, 2011 at 7:17 अपराह्न
Are bhaiyon Arya aur Dravid ko maro goli..petrol our deasel ki baat karo. gadi ki tanki bharwaane kisi ke purkhe dhan lekar nahi aayenge. kab tak bekaar ki baaton me samay gavayega ye desh. Ateet ke chaddar se bhavishya ki pareshaniyon ki nahi dhanka ja sakta. age kya karna hai. kaise karna hai ye socho bhai..ki arya aur dravid pe matha pachhi karte duniya ko hamse aage jaate dekhna hai..
सितम्बर 5, 2011 at 12:17 पूर्वाह्न
I am really surprised that why this Foolish & half knowledge chap KK Mishra has taken this responsibility to explain what is Arya & what is not. Please Mr. KK do something new or relevant. There are many things in this world which really don’t need your expert (rubbish, immature & garbage) comments.
It is your way to interpret the things, even I could do the same thing which you did like without knowing your full name krishna kumar mishra I call it KK mishra & a poor chap like you could itself read it as …?….? a nice abuse ?, because your vision & knowledge can read this only.
At last let me share you one thing that the harm which mishra’s caused to India is far less then any Britsh or Muslim invaders.
So next time be careful while taking any rubbish task like this.
सितम्बर 14, 2011 at 11:09 पूर्वाह्न
श्रीमान मिश्रा जी आप का लेख पड़ने का सौभाग्य मिला! अब पता लगा की देश अंग्रेजो का गुलाम क्यों हुआ और हमें २०० साल क्यों लगे अंग्रेजो को भागने में! आप जैसे महान लोग जो वज्ञानिक है, दर्शन शाश्त्री है! वाह! कौन आर्य, कौन द्रविड़ कौन हो आप कौन है हम! इन प्रशनो की खोज में लाखो करोड़ों लोग लगे है और आप के पास इन सभी प्रशनो का कितने सरल उत्तर है! थोड़ी शर्म करिए, आप आज भी अंग्रेजो के उस मकडजाल में फंसे है जो उन्होंने दुनिया को पागल बनाने के लिए बनाया था…”ईशाई प्रजाति भारतियों से श्रेष्ठ है”,, आर्य, द्रविड़, ये सभी उसी मकडजाल के पात्र है! …(deleted….what’s cure and why? moderator ) और थोडा महाभारत के फटे हुए पन्नो को पढ़िए, सकूं मिलेगा!
अप्रैल 21, 2014 at 3:20 अपराह्न
Bahut sahi & sundar kaha aapne. But afsos koi fayda nahi aise logon ko kuchh bhi kahne ka.
अप्रैल 30, 2016 at 8:10 पूर्वाह्न
Mahabharat ko pad nai sai kesi ko kya sakoon melai ga…..ap hi btaio es ke kon sa character sakoon sai mara hai..
सितम्बर 14, 2011 at 1:58 अपराह्न
आशीष जी, विकल्प जी एवं Gateway? ji, बहुत बहुत आभार आपकी बहमूल्य टिप्पड़ियों के लिए, आप ने मैनहन विलेज ब्लाग पर अपना बहुमूल्य समय देकर उसे पढ़ा…वैसे आशीष जी महाभारत बचपन में ही पढ़ी थी और उसे फ़ाड़ भी दिया था अब फ़टे हुए पन्ने मेरे पास कही पड़े है चाहे तो आप को दे दूं बेहतरीन ड्रामा है जरूर पढिएगा..
जुलाई 22, 2012 at 7:37 अपराह्न
to filhal ap kon si kitab pad rahain hain…..sayad aap ke pas koi aise kitab nahi hogi main janta hoon aap pahle likhgain phir padhegain
kyunki jis pustak ka naam le rahain ye vishwaw ki 10 pramukh puston main aata hai
सितम्बर 10, 2014 at 9:04 अपराह्न
aap nihayat hi ghatiya insaan ohhh soory ap to haramiyo ke bhi harami nd ap ki maa,behan beti baap sbhi harami aur harami ki aulad rhe honge then apko paida kiya aur ap to unke bhi baap nikle ….good.
ap jaise log kbhi ni samajh sakte ki sanatan kya arya kya nd dharma kya…
सितम्बर 21, 2014 at 1:55 अपराह्न
तो ये बचपन की जानकारी व ज्ञान ही यहाँ प्रदर्शित होरहा है …..बाद में कुछ नहीं पढ़ा …..ज़रा अरब , तुर्की, योरोप, आदि देशों के पुराने इतिहास पढो ..तो पता चलेगा की ..वहां के सभी अज्ञानी , अनपढ़ लोगों को भारत से गए आर्यों…….विक्रमादित्य आदि द्वारा भेजे गए विद्वानों ने ज्ञान का सवेरा दिखाया….कुछ अरबी साहित्य व कविताओं का अध्ययन करो…मोहम्मद से पहले आर्यों ने ही वहां पर जाकर जागरण किया ….
—अन्कशात्र को अरबी भाषा में ..हिन्दसा.. कहा जाता है ….
सितम्बर 18, 2015 at 6:06 अपराह्न
Is lekh me dharm aur sanskriti ki aalochana prateet hoti hai, kripaya iska Sheershak badal de. Aur HINDU DHARM AUR SANSKRITI ME CHHUPE HUVE GYAN VIGYAN AUR SAMAJIK SUKRITIYO KI VYAKHYA KARE.
Aap ne kisi k dvara thage jane ke bad ki pratikriya jaisa kuchh likhane ka prayas kiya hai, aur jo vastavikata me aap prakat karna chahate hain use sadharan janmamas nhi samajh sakega apitu bhartiya va hindu sanskriti ko kunthit ho kar dekhege.
सितम्बर 15, 2011 at 4:21 अपराह्न
काश आपने महाभारत पढ़ा होता, और खास कर वो फटे हुए पन्ने! खैर! मेरा मकशद आप के अहम् को ठेस पहुँचाना नहीं था! अगर आप अपने मत में खुश है तो किसी को इसमें परेशानी नहीं होनी चाहिए!
हर धर्म में कुछ अच्छी और कुछ बुरी धारणाये होती है! हिन्दू / सनातन / आर्य धर्म भी इसका अपवाद नहीं है! अच्छा हो अगर आप सजगता से उन बुराइयों को उजागर करें और कोशिश करें की उन्हें हम अपने समाज से बहार पाए!
एक बात पूछना चाहूँगा, क्या आप ने कभी सोचा है की हम आर्य आज तक अपनी पहचान को जीवित क्यों रख पाए जबकि इस पृथिवी पर विकसित हुई बाकि सभ्यताएं एक के बाद एक समाप्त हो गयी! ये हमरी आश्था और हमारा विस्वाश है, अपने धर्म में, जो हमारे वजूद को मिटने नहीं देती!
और एक आखरी बात, हम सब कितना भी बोल ले, कितना भी मन को बहला ले…पर सत्य यही है की हम सब उस सनातन परमात्मा की संतान है!
हम सब “हरामखोर आर्य” है!
जनवरी 25, 2012 at 8:55 अपराह्न
Well…bco’z i am also an INDIAN, aur mujhe paresani hai, us sab se jo log ise kisi bhi rup me nicha dikhane ki kosis karte hai, aur mujhe lagta hai ki aap sabhi ko bhi hona chaiye if ever u feel like an indian, agar other nationality ke ho to alag baat hai….Bande Matram
सितम्बर 15, 2011 at 4:30 अपराह्न
और हाँ अगर आप अपने आप को आर्य नहीं कुछ और मानते है तो कृपा कर बताइए की आपने अपना genetic टेस्ट कहाँ से करवाया और ये किस के साथ मैच करता है…अंग्रेजों के साथ?
जनवरी 19, 2014 at 5:02 अपराह्न
Angrej ourte to sath laye nahi the . Isleye asli our nkli kise bana gaye pahle apne aap ka DNA chek karao.
अक्टूबर 30, 2011 at 5:15 अपराह्न
Hi Mr Krishna Kumar Mishra
only three words for u
You are sick
नवम्बर 4, 2011 at 6:51 अपराह्न
my dear neeraj, my sickness can improve your mind!!!
सितम्बर 21, 2014 at 2:00 अपराह्न
बड़ी गंभीर सिकनेस है …….कि मेरी सिकनेस से लोगों के माइंड इम्प्रूव होंगे ……कंस, रावण, हिटलर, मुसोलिनी सभी को यही सिकनेस थी…..
सितम्बर 30, 2016 at 11:48 पूर्वाह्न
Sir Apka ye lekh sarahneey h. Such Bolne wake ko aisi hi Pratikriya Milti h.
जुलाई 26, 2016 at 4:19 अपराह्न
कृष्णा नहीं तुम बीमार हो
अक्टूबर 31, 2011 at 5:13 अपराह्न
dear kindly read this artical
असलियत आर्य-द्रविड़ भाषाओं के विभाजन की
आलेख: डॉ0 परमानंद पांचाल ; नई दिल्ली
दिनांक: 04 अगस्त 2010 समय: 12:31
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा निरंतर यह भ्रम फैलाने को प्रयत्न किया जाता रहा है कि आर्य भारत में बाहर से आक्रामक के रूप में आए और उन्होंने यहां के मूल निवासी द्रविड़ों को उत्तर से भगा दिया, जो आज दक्षिण में रह रहे हैं। इस मिथ्या प्रचार का दुष्परिणाम निकला- भारत का उत्तर और दक्षिण के रूप में अनुवांशिक आधार पर विभाजन और परस्पर जातीय वैमन्स्य। ब्रिटिश साम्राज्य को अपनी जड़ें मजबूत करने में इस सिद्धांत से अपेक्षित सहायता भी मिली। हमारे इतिहासकारों और भाषा वैज्ञानिकों ने शिक्षा के क्षेत्र में इसका प्रचार किया। परिणामत: उत्तर और दक्षिण के बीच जातीय आधार पर जो खाई उत्पन्न हुई, उसके घातक परिणाम सामाजिक और राजनैतिक क्षेत्र में भी देखने को मिले। सभी जानते हैं कि एक प्रांत का नाम तो मात्र प्रजातीय आधार पर ही रखा गया। यही नहीं, एक दो राजनैतिक दलों का गठन भी द्रविड़ शब्द को आधार मानकर किया गया, जिसकी पृष्ठभूमि में स्पष्ट रूप से जातीय पृथकता की गंध आती है। देखा जाए तो श्रीलंका के लम्बे जातीय संघर्ष के पीछे भी यही तत्व विद्यमान रहा है।
प्रसन्नता का विषय है कि हार्वर्ड विश्वविद्यालय और भारतीय शोद्यार्थियों के एक दल ने अपने एक नवीनतम अध्ययन के आधार पर अब यह मत प्रकट किया है कि आर्य और द्रविड़ विभाजन महज एक कल्पना है। इससे सदियों से चली आ रही यह मान्यता कि उत्तर भारतीय लोग आर्य हैं और दक्षिण भारतीय द्रविड़ जाति के हैं, एक कपोल कल्पना के अतिरिक्त कुछ नहीं है।
कोशिकीय तथा आणविक जीव विज्ञान केन्द्र (सेंटर फोर सेल्यूलर एंड मॉलिक्यूलर बायॉलजी) अर्थात सीसीएमबी ने इस अध्ययन को हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, ऑफ पब्लिक हैल्थ ब्रॉड इन्स्ट्िटयूट ऑफ हार्वर्ड एमआईटी के सहयोग से अंजाम दिया है।
इस अध्ययन के परिणामों ने इतिहास को एक नया मोड़ दे दिया है। इसके अनुसार सभी भारतीय अनुवांशिक रूप में जुड़े हुए हैं। सभी भारतीय एक हैं। उत्तर और दक्षिण भारतीयों के पुरखों का जिनेटिक अंश एक है। सीसीएमबी के वरिष्ठ वैज्ञानिक, के- तंगराज कहते हैं कि ‘आर्य द्रविड़ सिद्धांत’ में जरा भी सच्चाई नहीं है।
यह सिद्धांत उत्तर भारतीयों और दक्षिण भारतीयों के अपनी-अपनी जगह जम जाने के सैंकड़ों वर्ष बाद आया। इतिहास की सच्चाई में एक नया मोड़ देने वाले इस अध्ययन के ‘को-ऑथर‘ और सीसीएमबी के पूर्व निदेशक श्री लालजी सिंह का कहना है कि यह शोध-पत्र इतिहास को नए सिरे से लिखेगा। इस अध्ययन के अनुसार 65,000 वर्ष पहले दक्षिण भारत और अंडमान में बस्तियां वजूद में आईं और उसके 25,000 वर्ष बाद उत्तर भारत आबाद होने लगा। धीरे-धीरे उत्तर और दक्षिण भारतीयों का मिलन हुआ और एक मिश्रित पैदाइश ने आकार ले लिया। इस प्रकार दक्षिण और उत्तर भारतीय लोग आनुवांशिकी दृष्टि से परस्पर सम्बद्ध और एक हैं। इससे पूर्व भी विद्वानों ने आर्य और द्रविड़ विभाजन के सिद्धांत का पूर्णत: खंडन किया है। सरस्वती नदी, जो 2,000 ई- पूर्व में सूख गई थी, के अवशेषों की खोज ने भी यह सिद्ध कर दिया है कि सरस्वती घाटी की सभ्यता हजारों वर्ष पूर्व की एक विकसित सभ्यता थी। ऋग्वेद में सरस्वती नदी का बहुलता से गुणगान है, जो हिमालय से निकलकर अरब सागर में मिलती थी। वास्तव में सिंधु और सरस्वती घाटी की सभ्यताएं इसके प्रमाण हैं कि हड़प्पा सभ्यता जो सिंधु से राजस्थान, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक फैली थी, वह एक ही सभ्यता के विभिन्न रूप थे। अब सिंधु घाटी सभ्यता के चिह्न सुदूर केरल के एडक्कल और तमिलनाडु में भी ऐसे अवशेष मिले हैं, जो सिंधु घाटी सभ्यता जैसे हैं। प्रसिद्ध इतिहासकार एमआर राघव वेरियर के अनुसार एडक्कल गुफाओं में प्राप्त ‘घड़ा‘ सिंधु सभ्यता के अवशेषों से बिल्कुल मिलता-जुलता है। सिंधु लिपि के चिह्नों की यहां विद्यमानता सिद्ध करती है कि प्रागैतिहासिक काल में यहां समान सभ्यताएं विकसित थीं। फिर आर्यों का बाहर से आने का सिद्धांत और आर्य द्रविड़ विभाजन पूर्णत: काल्पनिक और साद्देश्य मात्र रह जाता है।
हाल ही में हार्वर्ड में हुए एक अध्ययन से स्वत: ही आर्य और द्रविड़ परिवार की भाषाओं का मिथक भी ध्वस्त हो जाता है। जब आर्य और द्रविड़ का विभाजन ही काल्पनिक है तो आर्य और द्रविड़ नाम के भाषाई परिवारों की कल्पना भी कपोल कल्पित होने के सिवा कुछ नहीं है। आर्य और द्रविड़ परिवार के भाषाओं के सिद्धांत ने भारत में एक भाषाई वैमन्सय और उन्माद को जन्म दिया, जिसका लाभ साम्राज्यवादी शक्तियों ने उठाया और भारतीय अस्मिता को धूमिल करने में सहायता की। भारतीय भाषाओं के बीच जो दरार पैदा की गई उसका भरना आसान नहीं है। राष्ट्रीय एकता के लिए महात्मा गांधी और देश के अन्य अग्रणी नेताओं ने राष्ट्रभाषा के रूप में जिस भाषा की पहचान की थी, उसको सिरे ही नहीं चढ़ने दिया गया। उसके मार्ग में प्रमुख अवरोध का कारण भी यह सिद्धांत ही बना कि हिंदी आर्य परिवारों की भाषा है।
अगर मैं यह कहूं कि शुद्धता के नाम पर भारत की इस प्राचीन और समृद्ध भाषा तमिल के स्वाभाविक और प्रगामी प्रवाह को रोकने का भी एक कृत्रिम प्रयत्न किया गया, तो कोई अत्युक्ति न होगी, क्योंकि भाषा तो बहता नीर है।
जैसा कि पहले कहा गया है कि ‘आर्य‘ कोई जाति नहीं थी। ‘आर्य‘ और ‘द्रविड़‘ नाम से जातियों की कल्पना महज एक मिथक है। ‘आर्य‘ का अर्थ है- श्रेष्ठ, आदरणीय, योग्य आदि। (शिवाराम वामन आप्टे का संस्कृत हिंदी कोश, पृ0 159) ऋग्वेद का एक मंत्र है- ‘इन्द्र वर्द्वंतु अप्तुर: कृण्वन्तो विश्वमार्यम‘ अपध्नन्तो अराव्ण: अर्थात्- हम सज्जनों की वृद्धि का प्रयास करें और विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाते चलें और दुष्टों का नाश करते चलें।
इसमें विश्व को आर्य (श्रेष्ठ) बनाने का आह्वान है। जाति का नहीं। क्योंकि किसी जाति (रेस) को कैसे बनाया जा सकता है? उसे तो श्रेष्ठ ही बनाया जा सकता है। स्पष्ट है कि आर्य कोई जाति नहीं थी और न वह भारत में बाहर से आई थी। आर्य को एक जाति (रेस) के रूप में स्थापित करने वाले एएफआर हर्नले ने कम्पैरेटिव ग्रामर ऑफ गौडियन लैंग्वेज में यहां तक लिखा है कि भारत में आर्य कम से कम दो बार में आए। इसी प्रकार कई भाषाविज्ञानियों और इतिहासकारों ने भी आर्यों को आक्रामक के रूप में बाहर से आने वाले बताया है। यह सत्य है कि भारतीयों का संबंध प्राचीन काल से ही मध्य एशिया और यूरोपीय देशों से रहा है। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि यहां आर्य नाम से कोई जाति बाहर से आई थी। इसका कहीं भी कोई प्रमाण नहीं मिलता।
विशप रावर्ड कॉल्डवैल (1814-1841) ने ‘दि कम्पेरिटव ग्रामर ऑफ द्रविडियन लैंग्वेजेज‘ (1856) में ब्रिटिश साम्राज्यवाद की सुदृढ़ता के लिए अपना सिंद्धात रखा था जो राजनैतिक, शैक्षिक और नंवजागरणवाद के उद्देश्यों पर आधारित था, जिसने 20वीं शती में ‘द्रविडियन‘ राष्ट्रवाद का प्रचार किया। इसने निश्चय ही भारत के राष्ट्रीय आंदोलन को धीमा करने में सहायता की। कॉल्डवैल तत्कालीन यूरोप के वैज्ञानिक जातीय सिद्धांत से प्रभावित था। इसलिए उसने आर्य-द्रविड विभाजन सिद्धांत को हवा दी। द्रविड़ भाषाएं नाम की उत्पत्ति उसी की देन है। चार्ल्स ई गोवर तथा डीपी शिवराम (1871) ने काल्डवेल की मान्यताओं का प्रतिवाद किया है और उन्हें निराधार बताया।
यहां मैं यह भी स्पष्ट कर दूं कि देश को जातीय आधार पर विभाजित रखना ब्रिटिश राज के हित में था। ईस्ट इंडिया कम्पनी के इतिहास को देखने से स्पष्ट हो जाता है कि जब कम्पनी का चार्टर नया किया गया तो सर जान मेल्कम ने कहा कि संसदीय राजसत्ता के विरुद्ध किसी विद्रोह की संभावना नहीं है।
यदि हम लिपि की दृष्टि से देखें तो भारत और प्रमुख भाषाओं की लिपियों की उद्गम एक ही लिपि ब्राह्मी लिपि रही है। कश्मीर से कन्याकुमारी तक की सभी भाषाओं की लिपियां ब्राह्मी की वंशज हैं। यदि जातीय आधार पर आर्य और द्रविड़ परिवार की भाषाएं अलग हैं, तो द्रविड़ परिवार की भाषाओं की लिपियों का उद्गम भी कुछ न कुछ अलग होना चाहिए था, जो नहीं है। वास्तविकता तो यह है कि ब्राह्मी और कालांतर में देवनागरी लिपि का प्रचलन भी सर्व प्रथम दक्षिण में ही हुआ था। भाषाविद श्रीनिवास रिती की दृष्टि में अशोक-पूर्व ब्राह्मी ध्रुव दक्षिण में उत्पन्न हुई थी और आंध्र प्रदेश होते हुए उत्तर में गई। प्रारंभिक ब्राह्मी अभिलेख पांड्य प्रदेश की राजधानी मदुरा में प्रचुर संख्या में मिले हैं। अत: लिपि के आधार पर भी आर्य-द्रविड़ पृथकता का सिद्धांत खरा नहीं उतरता।
इस प्रकार हम देखते हैं कि साम्राज्यवाद के हित में ब्रिटिश इतिहासकारों और भाषा वैज्ञानिकों ने देश को विभाजित रखने और यहां के लोगों को जातीय और भाषाई आधार पर बांटे रखने के लिए जो प्रयास किए थे, आज उन पर पुनर्विचार करने की परम आवश्यकता है।
मार्च 30, 2015 at 1:47 पूर्वाह्न
Mr. Neeraj’s knowledge is perfect and correct, please read this.
अगस्त 4, 2015 at 12:16 अपराह्न
भारत में धर्मान्तरण के नाम पर राष्ट्रान्तरण करने वाली भारती विरोधी गुण्डी गैंग द्वारा पोषित कुतर्क का अत्यन्त सुन्दर एवं तार्किक उत्तर आभार
डॉ. दिलीप कुमार नाथाणी
अक्टूबर 31, 2011 at 5:20 अपराह्न
द्रविड़ शब्द अंग्रेजों की दें है वास्तव में व्यापर करने वाले आर्यों को द्रमिल कहा जाता था सिन्धु प्रदेश व्यापारिक केंद्र था सरस्वती नदी के प्रकोप से यहाँ विनाश हुआ बाद में अंग्रेजो ने इसे द्रविड़ और आर्य दो नाम दे दिए रंग भेद भी बता दिया आज भी आप समुद्र के किनारे दक्षिण भारत में रहने लगो तो आप की आने वाली पीढ़ी दक्षिण भारतियों जैसी ही दीखेगी. सत्य तो यही है की समुद्र या नदियों के माध्यम से व्यापर करने वालो को द्रमिल कहा जाता था जो बाद में द्रविड़ बना वरना द्रविड़ और आर्य एक ही है
जनवरी 4, 2012 at 10:27 पूर्वाह्न
Krishan kumar misra ji aapne galti se sirf apni hi family ka varnan kiya hai.Aaryo me se aap nahi hai isliye yah aaryo ke bare me nahi hai.Chunati hai aapko ki kabhi bhi aap debate karne ke liye hame bula sakte hai.Debate camera par record hoga aur harne walo ko saja milegi 100 code ki.Aapko apni bate validate karni hogi aur hamko bhi.Dekhte hai aap bulate hai ya nahi
जनवरी 17, 2012 at 10:53 अपराह्न
mr. k.k. mishra, ye aryo k bare me bkwas kr k kya sabit krna chahtey ho, gulam honey k bhut sare karan they, aur ab past ki baat kyo karey hum, ab aisey toh tum “bihario” ne jo gund faila rkha hai useey pura india vakif hai….
hmmmmm…ab lgi na aag…aisey kisi dusri jati k bare me ulta bolney se kuch nhi hoga sir, aaj kaun si jati k log bura nhi kr rhey aur kaun si jati k log acha nhi kr rhey, kya aap kuch galat nhi krtey kya…….main bhi krta hu, jarurt hai khud ko sudharne ki aur acha bn kr logo k samne example establish krne ki…
‘don’t b a problem riser (by pointing finger,thus advertising the problem) rather be a solution’
kha suni maaf
regards
An Indian
जनवरी 25, 2012 at 8:50 अपराह्न
Great…Mera Desh Mahan, aur uske aap jaise mahan log, krishna kumar ji,
Just tell me one thing, aapne itni mehnat ki past ke bare me, to bhaisabh thoda present ke bare me bhi kar lete, akhir hum present me hi jite hai, ki hamre desh me christan and muslim community kya haram khori kar rahi hai, bco’z hamara future present se jurda hai na ki Past se….Wah re mere desh ke sache saput, islye hi kaha hai ki loktantra ki yahi kami hai jise dekho kuch bhi bol deta hai…
फ़रवरी 6, 2012 at 10:46 अपराह्न
aar aaj anaary ho rahe hai, aur iski vajah b pandit hi hain.
फ़रवरी 6, 2012 at 10:53 अपराह्न
aaj ham aaryon k niymo aur anushashan me chalne ki bajay angrajon k hi kanoon par chal rahe hain. kyoki congrace party ne bharat ko aajadi nhi dilwae balki angrejon se sauda kiya, shiksha ka, kanoon ka, sanvidhan ka, aur janta ko vivash kar diya, nirankush aajadi me sans lene k liye. gandhi shabd bharat ka abhishap ban gaya hai. yah shabd jab tak yojnaon me, noton me, school & college k naam par, history me rahega, bharat ka uddhar sambhav nhi hai,
नवम्बर 28, 2015 at 5:51 अपराह्न
Vivek Kumar Pandey aap kaise kah sakte Ho Ki aaryo ke niyam aur anushashan par chalna . Kya aap bhul Gaye ya aapne apne hi shastra pade nahi lagta jise aap jaise logo ne banaye. Jisme padne ka adhikar sirf aap logo ke liye rakha Gaya. Kya aap aisa Bharat chahte Ho jisme sirf kuch hi logo Ki unnati Ho taras aata hai aapki soch par. Mujhe garv hai apne sanvidhan par jisme sabhi ko har chij ke liye saman haq aur adhikar Diya. Aapne ek baat sahi kahi Ki Gandhi abhishop hai hamare desh ke liye lekin hamara sanvidhan apratim hai jo Kisi ek dharm ya vyakti Vishesh ko manyta nahi deta. Agar aaryo ke niyam ya anushashan par hum dobara chal nikle to phir se is desh me kabhi Portugal kabhi Dutch kabhi mugal to kabhi angrej yaha aakar raj karege kyoki aaryo ke niyam hi hame aapas me bat deta hai.
नवम्बर 28, 2015 at 6:41 अपराह्न
Vivek Kumar Pandey aap kaise kah sakte Ho Ki aaryo ke niyam aur anushashan par chalna . Kya aap bhul Gaye ya aapne apne hi shastra pade nahi lagta jise aap jaise logo ne banaye. Jisme padne ka adhikar sirf aap logo ke liye rakha Gaya. Kya aap aisa Bharat chahte Ho jisme sirf kuch hi logo Ki unnati Ho taras aata hai aapki soch par. Mujhe garv hai apne sanvidhan par jisme sabhi ko har chij ke liye saman haq aur adhikar Diya. Aapne ek baat sahi kahi Ki Gandhi abhishop hai hamare desh ke liye lekin hamara sanvidhan apratim hai jo Kisi ek dharm ya vyakti Vishesh ko manyta nahi deta. Agar aaryo ke niyam ya anushashan par hum dobara chal nikle to phir se is desh me kabhi Portugal kabhi Dutch kabhi mugal to kabhi angrej yaha aakar raj karege kyoki aaryo ke niyam hi hame aapas me bat deta hai.Vivek Kumar Pandey aap kaise kah sakte Ho Ki aaryo ke niyam aur anushashan par chalna . Kya aap bhul Gaye ya aapne apne hi shastra pade nahi lagta jise aap jaise logo ne banaye. Jisme padne ka adhikar sirf aap logo ke liye rakha Gaya. Kya aap aisa Bharat chahte Ho jisme sirf kuch hi logo Ki unnati Ho taras aata hai aapki soch par. Mujhe garv hai apne sanvidhan par jisme sabhi ko har chij ke liye saman haq aur adhikar Diya. Aapne ek baat sahi kahi Ki Gandhi abhishop hai hamare desh ke liye lekin hamara sanvidhan apratim hai jo Kisi ek dharm ya vyakti Vishesh ko manyta nahi deta. Agar aaryo ke niyam ya anushashan par hum dobara chal nikle to phir se is desh me kabhi Portugal kabhi Dutch kabhi mugal to kabhi angrej yaha aakar raj karege kyoki aaryo ke niyam hi hame aapas me bat deta hai.
मार्च 26, 2012 at 8:30 अपराह्न
hello to all
Listen Rajiv dixit in http://www.rajivdixit.com
to know the rality of Past India with proof and evidence.
Nitendr Raajput
अप्रैल 4, 2012 at 11:27 पूर्वाह्न
bhai waah kya visleshan hi Mishra ji ka ……….. jab tak aap jase jaichand ….. meer jafar ….. paida hote rahenge tab tak Hindustan ko Pakistan jase desho ki avasyakta hi nahi padegi………. vedik dharm ko vigyan ke chasme se poori duniya yaha tak ki NASA bhi dekh raha hi aur aap ise …… haramkhoro ki sabhyata bata rahe hi……. science ki history uthaoo sir…. adhi se jyada invension ……yha tak ki jis computer aur internet ko hum aap use kr rhe hi vo bhi …isi so called “haramkhor” ki calculation ki vajah se hi…jyada jankari ke liye Wikipedia me Charles babbage ki history pad lo…… shame on u ….. Jise apni sanskrati par proud nahi hi vo apne desh ke liye kya kaam kar sakega?? isme aap ki galti bhi nahi hi…….. hamare yha unhi agrejo ka high profile nukar banne ka jo ek prachalan chal pada hi!… called MNC’s …. bhai hame aajadi mili thi aapne ko agrejo ki gulami chodne ko … Hamare ancestor’s ne shocha tha ki hamare baccho ko aangrejoo ki gulami na karni pade …. becharoo ko kya maaloom tha ki unke bacche khusi khusi unki nukari aajadi ke baad bhi karenge….Hail Makale…… good job with great thinking…
जून 4, 2012 at 10:35 पूर्वाह्न
The design for the site is a little bit off in Epiphany. Nevertheless I like your weblog. I might have to install a normal web browser just to enjoy it.
जून 20, 2012 at 11:24 अपराह्न
kuch karne ke liye DIL ka ek pal ke liye hi saaf hona paryapat h……………..usko aap koi anya sabdo ka nam lekar ………uske achche kam kai burai na kare……………..yahi vinay!
जुलाई 22, 2012 at 7:18 अपराह्न
lok priyta pane ke bagut ganda shrishak chuna gaya…………..yeh karoro log ke mann ko thesh pahucheye ga………web per diye gaye lakhan ki aajadi yeh bahut bara durpoyog hai.
अगस्त 16, 2012 at 8:09 अपराह्न
aapki mahiti kam hai..kripya Satyarth Prakash padhiye ya kisi Arya Samaj Mandir me jaakar shanka samadhan kijiye ya visit http://www.Agniveer.com
अगस्त 19, 2012 at 3:20 पूर्वाह्न
sara padha ….bada aannd aaya …lekhn jimmedaari bhara kaam hai mitron :))
सितम्बर 12, 2012 at 12:14 अपराह्न
mitra apne bahut sunder likha ..mera bhi namis kai bar jana hua hai ..iswar ki kripa se mai bhi itihas ki thodi bahut jankari rakhta hu..apki sari bate veecharneeya hai..lekin haramkhor aarya khna uchit nahi arya koi vishesh vyakti nahi arya ka matlab uccha ,shrestha hota hai ..to jin haramkhor pando ke bare me apne likha hai vo arya kaise ho sakte hai ..vo to chor lutere hai …
दिसम्बर 1, 2012 at 4:28 अपराह्न
to phir un logan ko mention karo jo galat hain na ki “arya” sabd.
सितम्बर 28, 2012 at 1:20 अपराह्न
really feel good to see youth of my nation also think about it and its history……lekin mishra g plz bina kisi logic k apni personal thinking ko aise samagic sites par na dale….thik h apko jo shi lga apne likha or ek bat main apse bat kar rha hu kyonki ap aise hi koi bat nhi keh rhe kyonki apki jyatar bat sach h……….lekin apne jo kaha arya bahar se aye the to ek bar search kro ke aryavarta ki seemayein kahan tak thi apka sak mit jayega…..aur kisi achi jankari wale insaan se puchna ki vedo k anusaar is srishti ki uttpatti kahan hui ………jis madhya asia ki bat ap kar rhe ho wahan tak aryavarta ki hi seemaye thi …….aur ap ye bhi keh rhe ho k arya ka matlab h shreshth or jo shi nhi h wo arya nhi to phir arya haramkhor kaise ……ap apni hi bat se sehmat nhi ho…..or thik chalo apki bat mante h arya galat ved galat anrej galt muslim gal ab ap ye batane ki kripa karein ki shi kon h…………….
अक्टूबर 10, 2012 at 7:51 अपराह्न
”मैँ भारत काफी घूमा हूँ, इधर उधर मैँने यह देश छान मारा।
और मुझे एक भी भिखारी बल्कि एक भी चोर देखने को नहीँ मिला
यह देश इतना समृध्द हैँ और इसके नैतिक मूल्य इतने उच्च हैँ, यहाँ के लोग इतनी सक्षमता और योग्यता लिये हुये हैँ कि इस देश को कभी हम जीत सकते हैँ यह मुझे नहीँ लगता।
इस देश की आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक पंरपरा इस देश की रीढ़ हैँ
और अगर इस देश को जीतना तो इसे तोड़ना ही पड़ेगा
उसके लिये इस देश की प्राचीन शिक्षा पध्दति और संस्कृति बदलनी ही पड़ेगी
भारतीय लोग यदी यह मानने लगे कि ब्रिटिश जो हैँ वो श्रेष्ठ हैँ, अपनी स्वंय की संस्कृति से भी ऊचेँ हैँ
तो वे अपना आत्म सम्मान गवां बैढ़ेंगे और फिर शायद हमारे कहने पर चलेँगे”-
लार्ड मैकाले, ब्रिटेन पार्लियामेँट ,2 फरवरी 1835.
“English translation-
one thing if arya comes from other country then how ram setu was founded ion the way to lanka , why dwarka puri founded in sea as it is mentioned in hindu scriptures .
जनवरी 26, 2014 at 10:20 अपराह्न
Kuaa ke medak ho.ydi itni hi smradi hai to desh ki prtibhaye videsh kyo ja rahi hai
अप्रैल 21, 2014 at 3:32 अपराह्न
हमारे देश के गंदे और कमजोर कानून की वजह से। क्योंकि ये एक ऐसा देश है जिसमे आपको आपकी प्रतिभा पूछकर नहीं बल्कि जाति पूछकर नौकरी आदि सभी सरकारी सुविधाएँ दी जाती है।
अगर आप उस जाति विशेस के हो तो ठीक नहीं तो आपकी कोई कद्र नहीं। इसीलिए उस जाति विशेस से बाहर की प्रतिभाओं को देश छोड़कर मज़बूरी में जाना ही पड़ता है, क्योंकि दुनिया के अन्य देश उनसे उनकी जाति नहीं बल्कि प्रतिभा के आधार पर व्यव्हार करते हैं।
सितम्बर 21, 2014 at 2:17 अपराह्न
उसे कारण से जो मैकाले के वर्णन से ध्वनी निकलती है…….आप अपने को भूल गए चोर-लुटेरे-लम्पटों के बहकावे में आकर…..
दिसम्बर 18, 2015 at 1:18 अपराह्न
very bad logic, mr.r k maurya. no body in the world produce anything at home.to earn your bread and butter you have to leave home .be it from bihar to delhi/mumbai or from punjab/kerala to gulf/canada.there is nothing wrong in earning outside and enjoy it at home.
दिसम्बर 27, 2012 at 12:50 पूर्वाह्न
Hamari sanskriti mahan thi, mahan hai aur mahan rahegi. Ye kuch Angrejo ke manas putra hai jo is sanskriti ko badanam karne per tule hue hai. Pahle k jamane me kuchh brahman hue jo khudko sabse upper batakar is mahan si sanskriti ka satyanash karwa gaye, Apni panditai ki chhap chhodne. phir angrej aaye to yaha k kuchh gaddar unke sath ho gaye apne swarth ki roti sekne. is sanskriti per kai tarike ke nasty comment kiye. Phir abhi kuchh padhe likhe gawar, jinko kawadi ka gyan nahi sirf angerejo ki kitabe padh lene se khud ko gyani samajhate hai wastav me kore bewkoof hai. Hamari sanskiri, hamare naitik mulya, hamari jivancharya, hamara darshan, hamari chikitsa, hamara adhyatmik gyan, hamara vyapar, hamari sadgi, aur hamari soch itni mahan thi ki duniya k log yaha ye sab sikhne ate the. Jab angrejo ka astitva hi nahi tha. Aur vigyan ka aur duniya me padhai likhai ka koi astitva nahi tha, hamare desh me mahan lekhak, mahan darshnik aur vigyanik drishtikone aur vigyan ki samajh wale log the. Lekin hamare purvaj bahimurkhi hone ki apechha antarmukhi the, isliye unhone bhoutik gyan se jyada adhyatmik gyan ko jyada mahatva diya. Isliye hamare desh me kai adhyamic darshan shashtra, yog ka vikas hua. hamari mahantam sanskiriti ka both yahi se lagaya ja sakta hai ki, jab duniya k logo ko shayad chadi pahanna yad nahi tha tabhi rishi yagyavalk ne kaha ki, “Vaktyi swatantra janm leta hai, swatantra hi jina chahiye aur swatantra hi mar jana chahiye”.
Vidur niti kahti hai,”Dusro k sath vah vyahhar mat karo jo tumhe khud pasand nahi.
Upnishad kahte hai,” satya ek hai, gyani lok use alag alag nam se pukarte hai”.
Manu ne kaha hai, ” jaha nari ki puja hoti hai, waha devta was karte hai”
aur manu ne kaha hai,” 100 murkh ladko se achhi ek vidushi ladki achhi jo apne samaj, desh ka nam ucha kare”.
Sukti kahti hai,” jaise rath(chariot) ek pahye se nahi chal sakta, waise hi bhagya purusharth ke bina kuchh nahi kar sakta.
Bhagwad gita me likha hai,” jo vyakti hathi me, kutte me, chitti me, me,ya chandal me bhi usi ishwar ko mahsoos karta hai wo sabhi dharmo se shreshta hai”.
aur likha hai,” gyan k saman pavitra vastu is sansmar me dusri koi nahi hai”.
Ye hamari sanskriti ki mahan dharovar hai. Angrejo ne, ya samaj k thekedaro ne in bato k taraf aur aisi hajaro mahan bate jo hamare shastro me likhi gayi hai k taraf apna dhyan ko nahi diya.
Hamara dharm mahan hai isliye hum aaj bhi apne ma, baap ko, guru ko, bhagwan mante hai. sirf aur sirf hamara desh ki sanskriti ya dharm hi ye bata sakta hai ki duniya me sabhi striyo me hamari khud ki ma, beti ya bahan ki drusthi se dekho, ye bat alag hai ki hum us virasat ko bhul gaye aur hamara naitik patan ho gaya, aur jaise ki mackaley ne kaha tha ki is desh ka naitik mulya girane se hi ye desh gulam hoga, result hamare samne hai.
Dhanyawad
Anirudra
मार्च 27, 2013 at 11:51 अपराह्न
aryans ek mahan jati hai sabhy logo ko aryans kaha jata tha tum englishman or lord Mekale ke phelaye gaye roag se ab tak mukt nahi ho paye ho bhai
tumhare pass koyi pukhta sabut hai ki aary bahar se aaye hai or agar aarye ne dharm ka prachar kiya to Hindu religion ko banaya kisne ye bata ? kisi particular aadmi ne banaya hoga
Gaurav Tripathi
The Ancient Indian
Bharat ki prachin sanskriti ka punah jagran naveeenta k sath
आर्यों एक महान जाति है सभ्य लोगो को आर्य कहा जाता था तुम अंग्रेज या प्रभु Mekale के phelaye गए roag से अब तक mukt नही हो Paye हो भाई
तुम्हारे से गुजारें koyi pukhta sabut hai ki aary बहार से आए hai या अगर aarye पूर्वोत्तर dharm का प्रचार हिंदू धर्म को बनाया kisne तु बाटा किया? Kisi विशेष आदमी ने बनाया होगा
गौरव त्रिपाठी
प्राचीन भारतीय
भारत की प्राचीन संस्कृति का punah जागरण naveeenta कश्मीर sath
मई 1, 2013 at 3:00 अपराह्न
कृष्णकुमार जी!!..मैं आपका दुख,आपकी पीड़ा,आपकी अंतर्व्यथा सब समझ रही हूँ…इसी वजह से आपकी उत्तेजना इस लेख में दिखाई देती है…सामाजिक हो, राजनैतिक हो आर्थिक हो या नैतिक हो, हर जगह यही आम आदमी पिसता रहता है…जिसका आपने उल्लेख इस लेख में किया है….जब हर क्षेत्र में इसका इस्तेमाल हो ही रहा है…तो…धार्मिक क्षेत्र कैसे छूट सकता था!!!??….यहाँ तो बल्कि और भी सरल और सीधे तरीके से इसका इस्तेमाल किया जा सकता है….जिस तरह आप नैमिषारण्य की बात कर रहे हैं; मैं भारत में कई धार्मिक स्थलों का ये हाल देखती आ रही हूँ….हाल ही में अयोध्या में भी यही सब देखने को मिलता है…बस…इंसानियत ही कहीं नहीं दिखती है!!!…
मई 1, 2013 at 3:29 अपराह्न
बस…इतना ज़रूर कहना चाहूँगी,कि आप कुछ वैचारिक लिख रहे हैं; तो वो ज़िम्मेदार रूप से गम्भीर लगना चाहिए इसलिए भाषा और शब्दों के चयन पर अंकुश हो…ये ज़रूरी है!!!…शुभकामनाओं सहित!!!
अगस्त 31, 2013 at 12:59 पूर्वाह्न
Sri krishna kumar ji Aap ke lekh se lagta hai ki aap kisi pustak ko padhkar
manthan nahi karte hai aor aesa koi lekh jo aapki bhavnao ko thes pahunchata hai vahi aapke man – mashtiks me krodh autpan karne ka karya karta hai aor krodh se mashtiks gyanheen ho jata hai, gyanheen kabhi satya
ko nahi pa sakta hai aor satya jaisa sundar aevm kalyankari dusri cheej nahi hai.
Aapki jankari ke liye: Aaryan Bharat ke hai
Padhiye: (1) VED visva sahitya ke sabse prachin granth hai
(rigved, yajurvved, samved, athrvaved )
(2) Aadi kavi Valmiki ka mahakavya Ramayan
In me Aarya, Anarya, Vanarya, Dettya, Danav samudayo ka varnan hai
Dravid, Nishad, Nigro ka nahi isliye yaha malum hota hai ki vedic kal tak
dravid nahi the aor Dravid ka vivran hame paschatya kal me milta hai
Vishesh: In grantho me prachin Bharat ka hi nahi balki Visva ka itihas aevm
sanskriti ka varnan hai.
सितम्बर 21, 2014 at 2:23 अपराह्न
सही कहा…द्रविण ….का अर्थ व्यापारी …दक्षीणापथ( भारतीय प्रायद्वीप) से आये व्यापारी लोग……धनी लोग जो ….बाद में …श्रेष्ठी …सेठ ….संस्कृत शब्द ..द्रविणोदा …धनी…कुबेर आदि के लिए प्रयुक्त होता है ….यह भारतीय आर्यों का ही व्यापारी वर्ग था……
अप्रैल 23, 2016 at 10:53 अपराह्न
रूपल जी हम भी इस मूर्ख लेखक की अज्ञानता की पीड़ा समझ सकते हैं जो की लालच की पीड़ा है और कही भी पीड़ा का कोई प्रश्न ही नहीं उठता अगर धार्मिक क्षेत्र में आम आदमी पिसता है तो हम भी तो आम आदमी ही हैं हम क्यों नहीं पिसते
रूपल जी एक और बात में भी ईश्वर में विश्वास रखता हूँ पर फिर भी मुझे कभी किसी पण्डे ने नहीं लूटा किसी ने धर्म के नाम पर मुझे बेवकूफ बनाकर मुझसे पैसे नहीं ऐंठे क्यों की ये लंपट और ढोंगी भी उसे ही लूटते हैं जो खुद अज्ञानी होता है
जिसके मन में खुद लालच भरा होता है और जो बिना कुछ किये ही सब कुछ पाना चाहता है वही ढोंगियों के जाल में भी फंसता है
अगर भगवद् गीता को पढोगे तो उसमे भगवान् ने खुद कहा है कि
श्रयान्द्रव्यमयज्ञह ज्ञानज्ञानाय परंतपः
मतलब हे पार्थ द्रव्य मय यज्ञ(पूजा पाठ तंत्र मन्त्र जप तप कर्मकाण्ड) की अपेक्षा ज्ञान मय(अपने विवेक से किया कार्य) यज्ञ श्रेष्ठ है अतः तू केवल ज्ञान को ही मार्ग बना
और जब स्वयं भगवान ही यही कहता है वे फिर भी हम कर्मकाण्ड का मार्ग अपना कर मूर्ख बनते हैं तो इसमें गीता लिखने वाले की या बोलने वाले की क्या गलती है ये तो हमारी ही मूर्खता है जो हमें बेवकूफ बनती है पंडित किसी से जबरदस्ती तो नहीं कहते की पूजा पाठ करो दान दक्षिणा दो ये तो हमारी ही बुद्धि है जिसके कारण हम मूर्ख बनते है कोई आपको जबर्दस्ती तो पूजा पाठ या कर्मकाण्ड के लिए नहीं कहता
और एक और बात रूपल जी अगर वाकई धर्म क्षेत्र भी नहीं छुटना चाहिए तो केवल हिन्दू धर्म ही क्यों
इस्लाम और ईसाइयत और अन्य धरम क्यों नहीं
इससे ही पता चलता है की मिश्र जी किसी के द्वारा ख़रीदे गए हैं वरना आडम्बर तो बाकी धर्मो में भी हैं
जुलाई 20, 2013 at 10:54 पूर्वाह्न
श्री कृष्णा कुमार अंग्रेजो के द्वारा लिखित इतिहास पढकर मूर्खतापूर्ण प्रलाप न करे बेहतर होगा की भारतीय इतिहास का गंभीरता से अध्ययन करे
अगस्त 9, 2013 at 3:04 पूर्वाह्न
mr kk apko abhi aur gyan lne ki aavshyakta h, ……apne ki ye bekar ki theory itihas ki sachchai ko nhi badal degi,,, ham arya h, hm aryavart ke rhne wale h
सितम्बर 6, 2013 at 11:06 पूर्वाह्न
Krishn kumar ji apna dna test karao kahi tum mugal ke vanshj to nahi.
सितम्बर 23, 2013 at 9:25 अपराह्न
my dear mishra ji,bhadas nikalne ka aapka tarika bahut hi 3rd.class hai.mere vichar se to aap ko kisi acche dr./PHY.ko dikha ke dava khae kuch din aaram kare phir apna gyanvardhan 20 yr. tak kare.uske baad vichar vyakt kare.bhagvan aapki atma ko shanti pradan kare.
नवम्बर 14, 2013 at 10:28 पूर्वाह्न
krishna kumar mishra ji arya ka matlab …..Origin and Meaning of the Name Arya
Meaning:Noble; great; truthful
Origin:Sanskrit
Meaning:Noble; great; truthful
Origin:Indian
Gender:Both
aur app ka jo title hai haramkhor shayad …… app un pandito ko bol rahe hai jinka detail swami dayanand ji ne ….satyarth prakash chapter 10 mein bahut ache se bataya hai ….app ko meri niji salah hai satyarth prakash pade
मार्च 30, 2015 at 1:52 पूर्वाह्न
Good Advise
नवम्बर 20, 2013 at 5:42 अपराह्न
HINDUSTANIO KO DHARAM K NAME PER CHUTIA BANNE KE AADET H ,
ENKE ANDER YE ADET DALO TAKE YE OR CHUTIA BANE.
जनवरी 9, 2014 at 9:38 अपराह्न
is ko to des nikala dedowahi sahi hai akal hai nahi or vidvan bante hai isko to ye bhi nahi pta ki pure bhartiyo ka ek hi dna hai or ye apni hi bejti kar raha hai
जनवरी 19, 2014 at 4:21 अपराह्न
Itihas ke pramanik jankari ke liy thank,s.
फ़रवरी 9, 2014 at 10:57 अपराह्न
janab aap khichdi achchi bna lete h yani bandar ke hath me banduk vali bat h, aapko pta nhi, aapki MA ne kyun janm diya aap jaise bander ko //////////// aap ne aane to apne vidhwan hone ke liya ye bander baji ki kya bat h aapki //////////////////////////////// ab aap ek kam kijye es desh ke tin bade vaigyaniko ko goli mar de to ho sakta h es ke bad koe chutiya ensan aap ki bat man le ab aapko krna kya h ki 25/12/2013 ki india today maigjin ko padna h ////////////////// kyo ki aap ki pita ji jarur ARYAN HONGE
मार्च 2, 2014 at 9:16 पूर्वाह्न
Bharat jab tak mansik gulami keep bahar nahi nikalega tab tak vikas asmbhav hai.isliye bharat me aaj bhi videsi bhasa ki gulami hamsre vikas ko puri Torah se rok raka hai.rastra gorav ke bina aajadi asmbhav hair.
मार्च 11, 2014 at 9:47 पूर्वाह्न
आर्य प्रजाति की आदिभूमि
आर्य प्रजाति की आदिभूमि के संबंध में अभी तक विद्वानों में बहुत मतभेद हैं। भाषावैज्ञानिक अध्ययन के प्रारंभ में प्राय: भाषा और प्रजाति को अभिन्न मानकर एकोद्भव (मोनोजेनिक) सिद्धांत का प्रतिपादन हुआ और माना गया कि भारोपीय भाषाओं के बोलनेवाले के पूर्वज कहीं एक ही स्थान में रहते थे और वहीं से विभिन्न देशों में गए। भाषावैज्ञानिक साक्ष्यों की अपूर्णता और अनिश्चितता के कारण यह आदिभूमि कभी मध्य एशिया, कभी पामीर-कश्मीर, कभी आस्ट्रिया-हंगरी, कभी जर्मनी, कभी स्वीडन-नार्वे और आज दक्षिण रूस के घास के मैदानों में ढूँढ़ी जाती है। भाषा और प्रजाति अनिवार्य रूप से अभिन्न नहीं। आज आर्यों की विविध शाखाओं के बहूद्भव (पॉलिजेनिक) होने का सिद्धांत भी प्रचलित होता जा रहा है जिसके अनुसार यह आवश्यक नहीं कि आर्य-भाषा-परिवार की सभी जातियाँ एक ही मानववंश की रही हों। भाषा का ग्रहण तो संपर्क और प्रभाव से भी होता आया है, कई जातियों ने तो अपनी मूल भाषा छोड़कर विजातीय भाषा को पूर्णत: अपना लिया है। जहां तक भारतीय आर्यों के उद्गम का प्रश्न है, भारतीय साहित्य में उनके बाहर से आने के संबंध में एक भी उल्लेख नहीं है। कुछ लोगों ने परंपरा और अनुश्रुति के अनुसार मध्यदेश (स्थूण) (स्थाण्वीश्वर) तथा कजंगल (राजमहल की पहाड़ियां) और हिमालय तथा विंध्य के बीच का प्रदेश अथवा आर्यावर्त (उत्तर भारत) ही आर्यों की आदिभूमि माना है। पौराणिक परंपरा से विच्छिन्न केवल ऋग्वेद के आधार पर कुछ विद्वानों ने सप्तसिंधु (सीमांत, उत्तर भारत एवं पंजाब) को आर्यों की आदिभूमि माना है। लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने ऋग्वेद में वर्णित दीर्घ अहोरात्र, प्रलंबित उषा आदि के आधार पर आर्यों की मूलभूमि को ध्रुवप्रदेश में माना था। बहुत से यूरोपीय विद्वान् और उनके अनुयायी भारतीय विद्वान् अब भी भारतीय आर्यों को बाहर से आया हुआ मानते हैं।
अब आर्यों के भारत के बाहर से आने का सिद्धान्त (AIT) गलत सिद्ध कर दिया गया है। ऐसा माना जाता है कि इस सिद्धान्त का प्रतिपादन करके अंग्रेज़ और यूरोपीय लोग भारतीयों में यह भावना भरना चाहते थे कि भारतीय लोग पहले से ही गुलाम हैं। इसके अतिरिक्त अंग्रेज इसके द्वारा उत्तर भारतीयों (आर्यों) तथा दक्षिण भारतीयों (द्रविड़ों) में फूट डालना चाहते थे। इसी श्रंखला में अंग्रेजों ने शूद्रों को दक्षिण अफ्रीका से अपनी निजी सेवा व् चाटुकारिता के लिए एवं भारत में आर्यों से युद्ध करने के लिए अपनी सैनिक टुकडियां बनाने हेतु लाया गया बताया है ! जबकि वास्तव में शुद्र वो लोग थे जो अर्धनग्न अवस्था में जंगलों में अशिक्षित व् पशुओं जैसा जीवन व्यतीत करते थे !
महर्षि अरविन्द के विचार
आर्य लोग जगत के सनातन स्थापना के जानकर थे उनके अनुसार प्रेम शक्ति सत् के विकास के लिए सर्व्यापी नारायण या ईश्वर स्थावर-जंगम मनुष्य-पशु किट-पतंग साधू-पापी शत्रु-मित्र तथा देवता और असुर में प्रकट होकर लीला कर रहे है| अरविन्द घोष के अनुसार अर्यालोग मित्र कि रक्षा करते और शत्रु का नाश करते किन्तु उसमे उनकी आसक्ति नहीं थी| वे सर्वत्र सब प्राणियों में सब वस्तुओं में कर्मो में फल में इश्वर को देखा कर ईष्ट अनिष्ट शत्रु मित्र सुख दुःख सिद्धि असिद्धि में समबाभाव रखते थे| इस समभाव का परिणाम यह नहीं था कि सब कुछ इनके लिए सुखदायि और सब कर्म उनके करने योग्य थे
बिना सम्पूर्ण योग के द्वंद्व मिटता नहीं हे और यह अवस्था बहुत कम लोगो को प्राप्त होती है , किन्तु आर्य शिक्षा साधारण आर्यों कि सम्पति हे | आर्य इष्ट साधन और अनिष्ट को हटाने में सचेत रहते थे, किन्तु इष्ट साधन से विजय के मद में चूर नहीं होते थे और अनिष्ट समपादन में डरते भी न थे | मित्र कि सहायता और शत्रु कि पराजय उनकी चेष्टा होती थी लेकिन शत्रु से द्वेष और मित्र का अन्याय भी सहन नहीं करते थे | आर्य लोग तो कर्त्तव्य के अनुरोध से स्वजनो का संहार भी करते थे और विपक्षियों कि प्राण रक्षा के लिए युद्ध भी करते थे| वे पाप को हठाने वाले और पुण्य को संचय करने वाले थे लेकिन पुन्य कर्म में गर्वित और पाप में पतित होने पर रोते नहीं थे वरन शारीर शुद्धि करके आत्म उन्नति में सचेष्ट होजाते थे | आर्य लोग कर्म कि सिद्धि के लिए विपुल प्रयास करते थे, हजारों बार विफल होने पर भी वीरत नहीं होते थे किन्तु असिद्धि में दुखित होना उनके लिए अधर्म था |[2] [3]
आर्य-आक्रमण के सिद्धांत में समय के साथ परिवर्तन
आर्य आक्रमण का सिद्धांत अपने आराम्भिक दिनों से ही लगातार परिवर्तित होते रहा है. आर्य-आक्रमण के सिद्धांत कि अधुनिक्तम परिकल्पन के अनुसार यह कोइ जाति विशेष नही थी अपितु यह केवल एक सम्मानजनक शब्द था जो कि आन्ग्ल्भाषा के SIR के समनर्थाक था | आर्यो के आक्रमन की कल्पान के समर्थन के सभी तथ्य भ्रमक सिद्ध हो चुके है | सन्दर्भ – आर्य कौन थे – लेखक – श्री राम साठे अनुवादक – किशोरी लाल व्यास प्रकाशक – इतिहास संकलन योजना
http://hi.wikipedia.org/wiki/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF
मार्च 29, 2014 at 5:32 अपराह्न
kitane gadhe murde ukhad feke,kitna prayas kiya.koda pahad nikala chuha.Aaj kya ho raha hai ?hajaro salose jis shudra jatine (ye jat aai kahase?Bharatke itihaska sabase kala panna sirf yahi hai.jise hamari sabase inchi kahalane wali jatine sirf apane swarthkeliye, kabhi safed nahi hone diya.Aaj Annake rupme aur Kejriwalkerupme desh parivartnki ghadi dikhai dene lagi thi.garib.lachar.kaman aadmiko lagane laga tha ab hamare din badal jayenge.lekin donohi apane swarthkeliye kamine nikale.wo apnehi sapanome jiye aur samany janatako bhool gaye.samany aadmiko kaun aary tha ya anarya tha usakebareme kuchh lena dena nahi.unhe chahiye roti, kapada aur anaj aur kuchh jaruri jarurate.Kejriwal sachmuch achchha insaan hai lekin rasta jo apna raha hai wo thoda bhatak gaya hai use achchhe salahgarki jarurat hai.maine ek kitab likhi hai jadoochi kandi muze vishwas hai kejriwal jaisa padheto jarur is mahan deshse bhrshtacharko hata sakata hai.Ek bhrshtachar jayeto is desh jaisa desh is duniyame nahi ho sakata.
ek baat aur kahana chahata hoo. aaj jati rahi kaha hai? hindu-ladka+muslim ladaki,vice versa –issue M/Fm.+Bauddh-issue m/fm +christan-issuem/f.+m sikh issue m/f + +++++ what jaat will really have .nonne can answer correctly as reply Pl aap apana wakt falatoo batose nakalkar jo aajki samsya hai is deshko sachcha lokshahi desh banana.har insaanko usaka hakk denekiliye apni puri takat laga dena. Jai Hind.
अप्रैल 19, 2014 at 4:32 अपराह्न
Arya bharat aye isme koi sandeh nahi aur hindu ka original naam hi arya hai jo bharat mein akar bas gaye aur dheere-dheere apne paksha ki jhoothi batein pothi patron vedon ke madhyam se logo se manbane lage aur bhartiyon ko gumrah kar hindu ki upadhi dene lage bharat me rehne wale lagbhag sabhi hindu bhartiya hai yani jain dharm ya manu parampara ke hi bacche hai jo har prani ka dharm hai ahinsha parmo dharma.
अप्रैल 21, 2014 at 3:39 अपराह्न
पंकज जी जिस विषय का ज्ञान ना हो उसके बारे में कुछ भी लिख देना अपने ज्ञान का परिचय देना होता है। और आपे भी वही किया है।
यही बेवकूफी इस लेख के लेखक कृष्ण कुमार मिश्रा ने भी की है।
नवम्बर 28, 2015 at 6:29 अपराह्न
Vivek Kumar Pandey aap kaise kah sakte Ho Ki aaryo ke niyam aur anushashan par chalna . Kya aap bhul Gaye ya aapne apne hi shastra pade nahi lagta jise aap jaise logo ne banaye. Jisme padne ka adhikar sirf aap logo ke liye rakha Gaya. Kya aap aisa Bharat chahte Ho jisme sirf kuch hi logo Ki unnati Ho taras aata hai aapki soch par. Mujhe garv hai apne sanvidhan par jisme sabhi ko har chij ke liye saman haq aur adhikar Diya. Aapne ek baat sahi kahi Ki Gandhi abhishop hai hamare desh ke liye lekin hamara sanvidhan apratim hai jo Kisi ek dharm ya vyakti Vishesh ko manyta nahi deta. Agar aaryo ke niyam ya anushashan par hum dobara chal nikle to phir se is desh me kabhi Portugal kabhi Dutch kabhi mugal to kabhi angrej yaha aakar raj karege kyoki aaryo ke niyam hi hame aapas me bat deta hai.
जून 4, 2014 at 3:18 अपराह्न
chup kar gadhe… jab kuch malum na ho to kutte ki tarah kuch bhi mat bhauka kar..
मई 31, 2014 at 1:29 अपराह्न
Krishna kumar ji me bahut let ho gaya hu. aapne apne vichaar 2011 me rakhe the. me aaj pad raha hu. pad kar achchha laga ki koi to hai sachchaai janta hai. aapne sachch bolane ki jo himmat ki hai jo kabile tariff hai. jin logo ne aap ke suvichaar pade hai un logo ko bura jarur laga hai aur lagana bhi chahiye kyon ki unhone sach kabhi suna hi nahi hai. Jaise mahabharat me karn ka kaan se paida hona, sita ka jamin se prakat hona, ram & brothers ka janm ek fruit se hona, lav ka janm sita dwara ram ko yaad karne se hona, kush ka janm ek tinke se hona aur hanumaan ka suraj nigal jaana na jaane kitne jhoot bhagwat,mahabharat aur ramlila, krishn lila dwara bataaye jaate hai.in logo ne kabhi jaan ne ki koshish nahi ki. jo bataaya gaya wahi maanate aa rahe hai. in logo ko ye bhi pata nahi hai ki insaan inssan ke saath itna bada bhed bhaw kyon karta hai. ye log samajhte hai ki sab ishwar ne banaya hai. jab aap ne in logo ke samne sachchai rakhi to ye log pareshaan ho gaye hai. khair koi baat nahi aap sachchai batlate rahe.
जून 4, 2014 at 3:19 अपराह्न
Zzz
जून 8, 2014 at 7:14 पूर्वाह्न
Good Morning Sir ji,
Aapne bahot hi behatrin tarike se sachchayi pesh ki. Mai aapko thank you kehta hu aur congratulations bhi.
Keep it up…
जून 8, 2014 at 2:21 अपराह्न
jo bhi likha hai , ghtiya likha hai……
जून 22, 2014 at 12:42 अपराह्न
right
जून 25, 2014 at 6:05 अपराह्न
mai bhi sahmat hoo, par mai aap se zyada zanta hoo, arya kaha se aaye aur wo kis prajati k hai ye bhi. aap anthropology zaroor padhe aur usme bhi keval Nordics aur Caucasians k barey me zaroor padhe uske baad koi aap blog likhe to aap k blog ko koi nakar nahi sakta.
जून 26, 2014 at 12:36 पूर्वाह्न
BHAGAT SINGH JI AAP DELHI SE HAI KOLKATA SE AIRCEL SE MESSAGE KIYE AAP …AAP JAANTE HAI TO HUME JAROOR BATAYE ..MAI PADHTA NAHI HU AAJKAL UMRA NAHI RAHI PADHNE KI SIRF OBSERVATIONS KARTA HU JO DEKHTA HU USE…AAP JARUR BATAYE IS SUBJECT ME MUJHE …MAI TO DEHAATI VYAKTI HU..AAP SAB SE HI SEEKHTA HU BANDHU …ANYATHA MAT LIJIYEGA…PAR IS VISHYAY PAR LIKHE HAI TO GALIYAA BAHUT MILI HAI AAP NE NAHI KAHA BURA BHALA YE ACHCHHA LAGA BHAI….AAP KA KRISHNA
जुलाई 11, 2014 at 2:32 अपराह्न
दुनिया के शायद हम पहले देश होगे ,,जो अपने गुलामी की निशानी को करोड़ो रुपए खर्च कर सहेज रहे हैं,,हमें मजा आता है,,और अबतक की सरकार भी उसमें भरपूर सहयोग प्रदान किया करती थीं,,कला फिल्म वही राष्ट्रीय सम्मान की हकदार होगी जिसमें भारत की कुंठा,,गरीबी ,रुढीया ,झोपडीयो का गुणगान हुआ हो,,कुल मिलाकर भारतीय संस्कृति का मजाक उड़ाओ ,सम्मान पाओ,,किसी को गंगा नदी की महानता नहीं दिखाई देती,,कचरा मलमूत्र जरूर दिखाई देता है,,जहाँ विदेशीयो के सामने लोग अपने कमीयो को छिपाते और संस्कृति का सम्मान पेश किया जाता हैं वहीं भारतीय मनिषी यहाँ की दरीद्रता ,गरीबी ,रुढीया ,झोपडीया प्लेट में सजा कर पेश करते आ रहे हैं,,और जब विदेशी मेहमान नाकभौ सिकोड़ते हैं ठिक उसी समय हम खुद को धन्य समझते है,,ऐसे कुछ लोग सरदार वल्लभ भाई पटेल की विशाल प्रतिमा का विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं,,मे तो कहता हूँ,,तोड़ दो सारी गुलामी की मूर्तियां जिसके रखरखाव पर लाखों रुपए व्यय हुए जा रहे हैं,,गर्व होना चाहिए खुद पर ,,खुद की संस्कृति पर ,,हम किसी से कम नहीं,,किस देश में स्लम वस्तीया नहीं है,,किस देश में रुढीया नहीं है,,फिर क्यों ढोए ,,उपरोक्त लेख से कुछ और लोगों को समाज को मुख्यधारा से अलग करने का प्रयास भर किया गया है,,आशा है अन्य धर्मों पर भी विचार रखेंगे,,नोट-मै भी वैष्णव हुँ ,पर कोई ऐसी बात से बचता हु जिससे हिन्दू समाज को कष्ट हो,,मिलाना हैं
जुलाई 11, 2014 at 3:48 अपराह्न
मै बड़े सोच में था,,कि कांग्रेस में एक से एक बुजुर्ग प्रभावशाली,,विचारकों के मौजूदगी में भी नेतृत्व की इतनी कमी कैसे की सबको दरकिनार कर कम तजुरबेकार अपरिपक्व नेतृत्व को शिरोधार्य क्यों कर लिया गया है,,अब समझ आया,,
अंग्रेज और इटैलियन विदेशी लोग चाहे भी हो,,हमारे बाप की गद्दी पर उनका ही हक है,,इतने वर्षों की गुलामी हमारी इसी मानसिकता को पोषित करती हैं,,गांधी जी की बकरी बाधने की रस्सी,,या अकबर का अंतर्वस्तु तो हमारे संग्रहालय में स्थान प्राप्त लेती हैं,पर वीर शहीद भगत सिंह और राजगुरु की वो रस्सी जिस पर झुलकर उन्होंने माँ भारती का गौरव बढ़ाया वह कतई नहीं हैं,,हम आर्य,,वो द्रविड़,,वो गौण,,बांटो ,,एही तो प्रमुख निती थी अंग्रेजी शासन की,,
जुलाई 12, 2014 at 1:46 अपराह्न
sabhi jankari galat h , iss writer ko koi knowledge nahi h … agar ye writer mujhe milgaye to me iski jhabak tar du…….
जुलाई 22, 2014 at 2:54 अपराह्न
mujhe to aap par bhi shaq ho raha hai Krishna Kumar Mishra ji ki kaHI AAP hi farji na ho
जुलाई 24, 2014 at 6:21 अपराह्न
कृष्ण कुमार मिश्रा जी ,आपके और दुसरे लोगों के विचार पड़े ,एक दुसरे के ऊपर कीचढ उछालना नहीं चाहिए बल्कि तर्क वितर्क से काम लेना चाहिए !किसी विद्वान आर्य सन्यासी या वैदिक प्रवक्ता से किसी आर्य समाज के द्वारा सम्पर्क करें अथवा निष्पक्ष होकर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी द्वारा लिखित अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश पढ़ें,!आपकी सभी भ्रांतियो और शंकाओं का ईश्वर कृपा से समाधान हो जायेगा !धन्यवाद
अगस्त 24, 2014 at 10:53 अपराह्न
apni hi jati ke naam par kalank ho tum apni adhuri gyan ke karan.
अगस्त 29, 2014 at 2:55 अपराह्न
krishna kumar Mishra jee
sach mein aapne bade sahas ka parichay diya hai. Aakhir hum kab tak sach se muh ferte rahenge.Itihas ki baat aagar chod di jay to bhee aaj humare kis taraf anyay bhrashtachar nahi dikhta hai. sach yehi hai ki jin logo ne aapke lekh ke virudh tippadiya di hai unmese adhikansh esi anyay bhrastachar ki santane hai, unhone jameen ki jindagi nahi jee hai to unhe kya pata ki sach ki jameen kitni katili hoti hai. Unhone to kitabo me padha hai ke sach ki jameen bahut pathrili hoti hai. Aur esi se velog dar jate hai aur sach nahi kah pate.
tumhare andar sakti hai samarth hai. es diye ko jalne dena.
saabash.
A K Prasad my e- mail id is – keotalia@rediffmail.com
अगस्त 31, 2014 at 2:37 अपराह्न
सब लोगों का reply पढा अेक बात निश्चित है कि दुनिया में कहीं पर भी cast नही है मनुष्य उच्च जाति का कोई निच जाती सिर्फ भारत मे ही है।जैसे दुनिया में सभी भारत समान है अैसे भारत में भी सभी मनुष्य समान थे .परन्तु जब से भारत में आयॅ ब्राह्मण आये हैं ओर विदेशी आयॅ ब्राह्मणों ने भारत के मुलनिवासि लोगो को गुलाम बनाके रखने के लिए जाती (cast ) बनाइ है और जाती सिस्टम खत्म ना हो इसलिए हिन्दू धर्म का नाम लेकर विदेशी ब्राह्मणों ने भारत के मुलनिवासि लोगो को गुलाम बनाके रखा है।अगर भारत में जाति खत्म होती है तो ब्राह्मणों की गुलामी खत्म होती है।इसलिए विदेशी ब्राह्मण कभी जाती खत्म करने का प्रयत्न नहीं करेंगे जब तक भारत मे जाती सिस्टम है तब तक कोई भी विदेशी आयॅ ब्राह्मण अच्छा नहीं हो सकता।जो ब्राह्मण कहता है में जाति नहीं मानता वो सबसे बड़ा षड्यंत्रकारी है।जो जाती नहीं मानता उसकी कोई जाति नहीं होती जो खुद को ब्राह्मण मानता है मतलब जाती मानता है। दुनिया में सबसे घटिया चिज जाती सिस्टम है।इसलिए भारत के देशभक्त ओर ईमानदार लोगों को अगर भारत मे जाती (cast ) सिस्टम खत्म करना चाहते हो तो भारत के मुलनिवासि लोगो को जगाना होगा ओर विदेशी ब्राह्मणों को अलग करना होगा ।जब तक किसी भी अच्छा बुरा विदेशी ब्राह्मण को साथ में रखकर जाती खत्म करना चाहेंगे तो कभी जाती सिस्टम खत्म नहीं होगी। भारत में सिर्फ विदेशी ओर मुलनिवासि आंदोलन से ही जाती सिस्टम खत्म होगी। जय मुलनिवासि जय भारत
सितम्बर 1, 2014 at 3:45 अपराह्न
kyaa aap bataa sakte hai…. ye tathaa kathit aarya kab bhaarat me aaye to mai aapko aage bataauu mujhe kyaa kahenaa hai….
सितम्बर 3, 2014 at 12:26 अपराह्न
kyaa aap ye bataane kaa kasht karenge kii…. aarya bhaarat me kab aaye…?????. ye bataaye
सितम्बर 23, 2014 at 7:54 अपराह्न
Bura mt maniyega mishra ji pr aapka yah lekh ashantusht eavam apoorn pratit hota hai. mai ancient indian history and culture ka student hu aur maje ki bat ye hai ki mai sanskrit vyakran ka bhi vidhyarthi hu atah maine jyada avlokan karane pr yah prapt kiya ki hmare vadic culture aur purans k richao aur mantro ko viddwan jo ki sanskrit vyakaran k maheshwar sootra se parichit nhi the unhone bhi vyakhyaye kar apane mat de dale agar mai aap ko apane pita k bare me likhne ko khu to aap usme shayad hi burai likhe pr ye aap bhi jante hai ki “any one not perfect”. mtlb jinhone vyakhyaye ki vo poorva grahi the atah wah apni kalpna aur toote foote gyan k aadhar par jo bna vo bol pade. ab dukh ki bt yah hai aap jaese vidwanjan bhi porvagrahi hokar galat vyakyan kr rhe hai. han vaidik culture me madhyakal me visangatiya aai. aur rahi bat sindhu ke vinash ki touska sabse bda reasone bhadh akal tha yah pramanit hai aur vadic culture me eavam sindhu ghati shabhyta me god worship k tarike bilkul ek se hai. aakhir jin do samudayo me ek hi manyataye ho vah alag ya virodhi kaese ho sakte hai. sorrry sir.
सितम्बर 28, 2014 at 7:35 अपराह्न
मुर्ख की लेख ऐसा होना भी चाहीए krishana kumar mishra ji
अक्टूबर 6, 2014 at 5:34 अपराह्न
krishna kumar mishraji apne adhure gyan ka parichay de rahe he.
unhone vahi likha hai jo padha hai.
satya ki khoj ki hi nahi.
me unse puchna chahta hu ki aap aryo k vanshaj hai ki nahi?
arya is duniyame sabse purani jati he. aur sare manushya aryo ki hi santan hai.
bharat hi aryo ka mul desh hai aur yaha sehi vo duniyabhar me faile hai.
jyada jankari k liye Swami Dayanand Saraswati rachit Satyarth Prakash padhe. mishra ji jaise logo k bahkave me aane se bache.
अक्टूबर 25, 2014 at 9:32 अपराह्न
krishna kumar mishra , pita ,pitamah prapitamah ki bhabya chitro par thuk kar sharm nahi es liye ki ye to sirf aur sirf chand kagaj ke tukade hai. jin par aap ke purvajo ke chitra bhi ho sakte hai aur aapke liye gali bhi.
अक्टूबर 29, 2014 at 9:11 पूर्वाह्न
कृष्ण कुमार आप हिन्दू धर्म की ही आलोचना कर सकते क्यों कि इस धर्म का दिल सागर के समान है जो आलोचना रूपी नदियों को स्वयं में समाहित कर लेता है।मुस्लिम धर्म और हजरत मोहम्मद साहब का इस तरह आलोचना कर देखिए तो सही, इस धरती पर जिन्दा न रहेगे।शायद ये बात आप भी जानते है तभी तो आपके आलोचना का लक्ष्य सिर्फ हिन्दू धर्म है
नवम्बर 6, 2014 at 11:04 पूर्वाह्न
ap ye jante h ki bhagwan ram ko bhi aryaputra kaha gya h sahi me apko menteli problem h ap uska jitne jaldi ilaj kra sake utna achha rhega
नवम्बर 8, 2014 at 6:50 अपराह्न
srimaan ji
padh kar achha laga
badi mehnat ki hai aap ne
ab jara ek baar aur bhi mehnat kar ke
islam pr bhi ek aisa hi lekh taiyar kar ke post kar de
aap ki mahan kripa hogi
aap jb islam par aise lekh net par dalenge to
yakeen maane
bura na maniyega
aap jaha na sochte honge vaha se danda daal denge vo log
aap jaise log bs hindu dharm ko hi nisana kyu bana rahe hai
kabhi dusre dharmo ka bhi darsan kare vislesan kare
ya sara gyan bas hindu ke virodh me hi lagayenge
aap islam par post kare mai padhna chahunga
bura laga ho to naitikta ke nate sorry bol raha hu
नवम्बर 12, 2014 at 1:21 अपराह्न
हिन्दू चादरब्राह्मण को पता है कि जब तक उसने “हिन्दू” नामकी चादर ओढ़ी है, तब तक ही उसका वर्चस्व भारतपर है, जिस दिन यह चादर खुल गयी, कुत्ते की मौतमारा जाएगा, इसीलिए ब्राह्मण दिन रात हिन्दू -हिन्दू रटता रहता है, क्योंकि ब्राह्मण यह जानता हैकि हिंदू नाम का कोई धर्म नही है. हिन्दूफ़ारसी का शब्द है.हिन्दू शब्द न तो वेद में है, न पुराण में, न उपनिषदमें, न आरण्यक में, न रामायण में, न ही महाभारत में.स्वयं दयानन्द सरस्वती कबूल करते हैं कि यहमुगलों द्वारा दी गई गाली है.1875 में ब्राह्मण दयानन्द सरस्वती ने आर्यसमाज की स्थापना की हिन्दू समाज की नहीं. अनपढ़ब्राह्मण भी यह बात जानता है. ब्राह्मणों ने स्वयंको हिन्दू कभी नहीं कहा. आज भी वे स्वयंको ब्राह्मण कहते हैं लेकिन सभी शूद्रों को हिन्दूकहते हैं.जब शिवाजी हिन्दू थे और मुगलों के विरोध में लड़ रहेथे तथा तथाकथित हिन्दू धर्म के रक्षक थे, तबभी पूना के ब्राह्मणों ने उन्हें शूद्र कह राजतिलक सेइंकार कर दिया. घूस का लालच देकर ब्राह्मणगागाभट्ट को बनारस से बुलाया गया. गगाभट्ट ने”गागाभट्टी” लिखा उसमें उन्हेंविदेशी राजपूतों का वंशज बताया तो गया लेकिनराजतिलक के दौरान मंत्र “पुराणों” के ही पढ़े गएवेदों के नहीं. तो शिवाजी को हिन्दू तब नहीं माना.ब्राह्मणों ने मुगलों से कहा हम हिन्दू नहीं हैं,बल्कि तुम्हारी तरह ही विदेशी ब्राह्मण हैं.परिणामतः सारे हिंदुओं पर जज़िया लगाया गया लेकिनब्राह्मणों को मुक्त रखा गया.1920 में ब्रिटेन में वयस्क मताधिकार की चर्चा शुरूहुई. ब्रिटेन में भी दलील दी गई कि वयस्कमताधिकार सिर्फ जमींदारों व करदाताओंको दिया जाए. लेकिन लोकतन्त्र की जीत हुई.वयस्क मताधिकार सभी को दिया गया. देर सबेरब्रिटिश भारत में भी यही होना था.तिलक ने इसका विरोध किया. कहा – “तेली, तंबोली,माली,कूणबटों को संसद में जाकर क्या हलचलाना है?”ब्राह्मणों ने सोचा भारत में वयस्क मताधिकारयदि लागू हुआ तो अल्पसंख्यक ब्राह्मणमक्खी की तरह फेंक दिये जाएंगे. अल्पसंख्यकब्राह्मण कभी भी बहुसंख्यक नहीं बन सकेंगे.सत्ता बहुसंख्यकों के हाथों में चली जाएगी. तबसभी ब्राह्मणों ने मिलकर 1922 में “हिन्दू महासभा”का गठन किया.जो ब्राह्मण स्वयं हो हिन्दू मानने कहने को तैयारनहीं थे, वयस्क मताधिकार से विवश हुये. परिणामसामने है. भारत के प्रत्येक सत्ता के केंद्र परब्राह्मणों का कब्जा है. सरकार में ब्राह्मण, विपक्षमें ब्राह्मण, कम्युनिस्ट में ब्राह्मण, 367एमपी ब्राह्मणों के कब्जे में हैं.सर्वोच्च न्यायलयों में ब्राह्मणों का कब्जा,ब्यूरोक्रेसी में ब्राह्मणों का कब्जा, मीडिया, पुलिस,मिलिटरी, शिक्षा, आर्थिक सभी जगहब्राह्मणों का कब्जा है.एक विदेशी गया तो दूसरा विदेशी सत्ता में आ गया.हम अंग्रेजों के पहले भी ब्राह्मणों के गुलाम थे,अंग्रेजों के जाने के बाद भी ब्राह्मणों के गुलाम हैं.यही वह हिन्दू शब्द है, जो न तो वेद में है, न पुराणमें, न उपनिषद में, न आरण्यक में, न रामायण में, नही महाभारत में. फिर भी ब्राह्मण हमें हिन्दू कहते हैं.
मार्च 13, 2016 at 1:26 पूर्वाह्न
Sahi kaha apne
नवम्बर 15, 2014 at 10:01 पूर्वाह्न
मिश्रा जी , आर्य शब्द केवल सम्मान सम्बोधन सूचक शब्द है , और कुछ भी नहीं । दूसरी बात यदि प्राचीन भारतीय संस्कृति के विषय मे जानना ही चाहते है , तो पहले इतिहास की द्वितीयक और तृतीयक स्रोतो को किताबों को पढ़ना छोड़ दे ।इतिहास आज विकृतियो के दौर से गुजर रहा है ।इसे पुनः पुनर्लेखनखन की आवश्यकता है । आज समाज घटिया है तो उसके मूल मे विभिन्न संस्कृतियो के परम्पराओ का मिश्रण है ।धर्म मे यदि धंधा और व्यापार की प्रवृति , दिखाई पड़ती है तो उसका कारण अकुशल प्रशाशन , अयोग्यता का चयन , उच्च जीवन शैली की लोभवादी प्रवृत्ति प्रमुख रूप से उत्तरदाई है । और आर्य बाहर से आए या नहीं ये केवल बकवास की बाते है । मैंने जो अध्ययन किया उसके अनुसार वैदिक जन गंगा यमुना दोआब के क्षेत्र से थे न मध्य एशिया या पश्चिमोत्तर भारत के थे । इस धर्म का विस्तार अंदर से बाहर की ओर हुआ है न कि बाहर से अंदर कि ओर ।
अमित दूबे , वरिष्ठ शोध छात्र , प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्त्व विभाग ,वाराणसी , 9196125920 , फेसबूक – ,
नवम्बर 24, 2014 at 9:51 अपराह्न
behtr likhe ho bhai, dhrm ke nam pr loot, astha ke nam pr dhokha or sadhu sant ke nam pr atyachari yhi mila h aam admi ko
नवम्बर 30, 2014 at 4:40 अपराह्न
हरामखोर kisi ko yoh hi kahdena uchit nahi sree maan !!!!! हरामखोर khon hai ye …naa aap pataa kar sakte hai naa ,,,,main pataa kar sakta hu ! sab upar wala hi jaanta hai .
दिसम्बर 10, 2014 at 2:50 अपराह्न
abe 2 cori ke intlectual
aarya bahar se nai aye the balki bhartiyon k hi purvaj the tere jaise log apni aatma bech k khate h
AAryon or Panditon ka raaj sari duniya par tha tere konse baap ne sari dunia pr raaj kia h?
दिसम्बर 10, 2014 at 2:57 अपराह्न
teri is bakwas ka koi prrof h?
m bhi teri faimily ke bare m kuch bhi chaap do toh kaisa lagega?
sala Rothschilld ka kutta
दिसम्बर 15, 2014 at 9:15 अपराह्न
bahut khoob jagane ke liye dhanywad ! aapne bhut achcha likha hai ! aage bhi jagate rahiyega ! thank,s from –hari om
दिसम्बर 23, 2014 at 5:51 अपराह्न
Do not compare Arya culture with evil fake religion chritianity. Aray were not from out side of India Aray were original Indian from more than 1000 thousand years
दिसम्बर 24, 2014 at 10:43 अपराह्न
bhaiyo aise logo ki bato par coment nahi diya jana chahiye.kyoki ye gyan i nahi agyani hai avam tathakathith kuchh pustako ko parhkar aisi dharna bana lete hai..inhe nahi sudhara ja sakta.ye log to asaramram aur rampal banane ki rah par lage huwe log hai.bhagwan is wyaki ko maf kare
……………RAJEEV LOCHAN
जनवरी 13, 2015 at 10:59 अपराह्न
Tum Mishra ke naam par kalank ho,kisi gande naale me doob jaao , dharti ke bojh,nasamajh
जनवरी 23, 2015 at 3:05 अपराह्न
aaryo ke aashramo ke baare me koi batayega please
फ़रवरी 7, 2015 at 11:11 पूर्वाह्न
haramkhor arya nahe balki lekhak he .
फ़रवरी 7, 2015 at 10:07 अपराह्न
Mitra,Aryan kon the.science kya hai,aap ne bani,ya bani banie, mili, bhrahmad ka vistar kitna hai,bolne se nahi,sahbda bharam kya hai…. Jara soach kar batana.aap ka samarthan karooga.agar ek ka bhi zavab doge.
फ़रवरी 18, 2015 at 4:02 पूर्वाह्न
krishan kumar mishr ji gayab ho chuke h.
jivit ho kya plz comment and say sorry
मानव(आर्य)
“सत्यार्थ प्रकाश” पढा या नही
फ़रवरी 18, 2015 at 4:09 पूर्वाह्न
विद्वान बनने के लिए वेदो ki knowledge आवश्यक हे
फ़रवरी 27, 2015 at 5:46 अपराह्न
priya, Jo Haram khor ho yoh arya ho hi nahin sakta…..arya Adarsh charitra vala, Ishvar ke Satya swaroop,uske siddhanton ko janane aur manane ke sath us per chalne vala hi hota hai…anya nahin.Aj har or avidya aur asatya ka bol bala hai log na to dharm ko jante hai aur na hi ishvar ko ?parantu swayam ko dharmik samajhte hain aur us ka dikhawa karte hain. aisa hindu muslim sikh isai ya kathit anya dharm ke manane vale sabhi ek hi thali men alag alag rang va swad ke chatte batte hain.
Jo tathya ya padarth satya hain ve pramanit kiye ja sakte hai ..jaise vigyan arthat (science) thik isi prakar ishver aur dharm hai jo ishver ko janata hai usko pahchanta hai voh hi ishver ko pramanit bhi kar sakta hai…..
Dharm bhi purn satya hai dharm ko janane wala use siddha(pramanit) bhi kar sakta hai.Dharm Hindu,Muslim,Sikkh,Isai,Yahudi,Parasi,Boddh,Jain aadi nahin hai Yeh to manveey chhintan hai.
Dharm,Vishuddh rup men Ishvar(PARMATMA)” ALL: MIGHTY GOD” dwara banaya gaya hai aur PARMATMA apane kisi karya men kisi dusare(Kathit,Paigamber aadi YA Madhyast) ko nahin rakhta KYONKI WOH SARV SHAKTI MAN hai asamarth nahin?
Samajhdar ko ishara hi kafi hota hai….Is liye ek ishara de raha hoon..DMARM Sanskrat ka shabd hai aur sanskrat men shabdo ki rachna DHATUON se hoti hai Saskrat ki Drinch-Dharne Dhatu se ‘DHARM’ SHABD banta jiska shabdik arth hota hai dharan karana. aur isi’DHARAN KARANA’
Shabd men DArm ka ‘RAHASYA’ chupa hai, jo sthir pragya Buddhi dwara
chintan aur manan men sthir ho kar Bahut asani se jana ja sakta hai.Dharm Parmatma ka banaya hua hai isko to sirf itne se hi jana ja sakta hai ki sabhi jante ki ‘AGNI KA DHARM HAI JALANA’,….VAYU ka HDARM hai SUKHANA, MAan ka DHARM hai JANM dena ,aur pita ka DHARM hai palana…JO kisi insan,paigamber,ya madhyast ne nahin banaya.
Aur jab aaj likh hi raha hoon to ek baat aur likh hi deta hoon, halanki bhashan deker ap ko bor karne ka irada to nahin hai agar bor ho rahe hon to alpagya jan kar maf kar deejiyega.
Bat kahana chahta hoon ‘karmfal’ ki,kaise milata hai har jeev ko usake karmon ka fal…???? har jeev jo bhi karya karta hai voh apani indriyon ke aagrah(aadesh) par hi karta hai bhojan ka swad jibhya ke sanket,bhajan sangeet gane ,aadi kart indriya ke sanket par,sparsh ka bhog twacha ke sanket par,gandh ka bhog nasika ke sanket par ityadi…. bar bar ke bhog se indriya usi ki abhyast ya aadi ho jati hain.
Aur jis karya ki indriyan aadi ho jati hai us karya ki bhookh ne mitne par bachain ho kar bhookh mitane (HAWAS) poori karne ko kuch bhi karne ko tatpar ho jati hain.Is bhautik sharir ke sath to bahut si majbooriyan hoti hain ,parantu Atma kisi bandhan main nahin bandhi ja sakti ,mratyu uprant indriyan jeev ki sarathi ban apane isharon par wahin le jati hai jin karyon ki abhyast ho chuki hoti hain,
arthat bure sanskaron ki abhyast indriyo ke marg darshan men jeev nirantar nimnse nimntar yoniyon men girta chala jata hai aur use apane girane (PATAN) ka ahsas bhi naheen ho pata isi prakar indriyan jeev ko nirantar nark ke gart main dhakelati jati hain jeevjanm-mratyu ke chakra main nark bhogta chala jata hai fir na jane kab kiski koi shiksha jeev ke karm ki disha badal deti hai ya karm falo n se dikhee ho kar jeev swayam bure karm chor achhaiyon ki or agrasar hota hua punah atthan prapt karta hua kramshah manav yoni prapt kar jeev apane maram lakshya MOKSH arthat parmatma ko prapt karta hai ya punah indriyon ke chakkar main fans kar hbatak jata hai.
Is liye isi janm se jeev ko indriyon par ankush rakh nirvikar bhav se karm karte hue janm mratyu se mukt ho parmanand parmatma ko prapt karne ke prayas main lagna chahiye.
मार्च 30, 2015 at 1:26 पूर्वाह्न
aap ne diya hai Vedic gyan. Achaa lega. Aryan dharam yahi hai, jo ki Vedic dharam hai.
मार्च 1, 2015 at 2:02 पूर्वाह्न
Pakhnd ke uper tak inhi ki raj hai jai bhim
मार्च 6, 2015 at 9:59 पूर्वाह्न
लगभग ईसा से 3100 साल पहले इडिया में यूरेशिया की एक खूंखार
जाति जिसको आर्य कहा जाता था का आगमन हुआ था। यूरेशिया, यूरोप
और एशिया के बीच की जगह का नाम है और आज भी यह स्थान
काला सागर के पास मौजूद है। इस बात के आज बहुत से प्रमाण भी मौजूद
है। ज्यादा जानकारी के लिए आप लोग हमारा लिखा लेख “DNA
REPORT 2001” पढ़ सकते है। यह आर्य लोग इडिया में क्यों आये यह
बात आज तक रहस्य ही है। बहुत से इतिहासकारों ने इस विषय पर बहुत
सी बाते और कहानियाँ लिखी है लेकिन किसी भी कहानी का कोई
वैज्ञानिक प्रमाण मौजूद नहीं है। भीम संघ की टीम ने अपने शोधों में
पाया है कि आर्य लोग अपनी खुशी से या इंडिया को लूटने के लिए में
नहीं आये थे। असल में आर्य एक बहुत ही खूंखार जाति थी। जिसके
कारण यूरेशिया के लोगों का जीवन खतरे में आ गया था और हर तरफ
अराजकता का माहौल बन गया था। आर्य लोग यूरेशिया के लोगों को हर
समय लूटते और मारते रहते थे। जिस से तंग आ कर वहाँ के राजा ने सारे
आर्यों को इक्कठा करके एक बड़ी सी नाव में बिठा कर मरने के लिए
समुद्र में छोड़ दिया था। यह लोग अपने साथ अपनी औरतों और
बच्चों को नहीं लाये थे। औरतों और बच्चों का ना लाना भी आर्यों के देश
निकले से सम्बन्ध में एक पुख्ता प्रमाण है। पुराने समय में जब पुरुष
को देश निकला दिया जाता था तो बच्चों और औरतों को उसके साथ
नहीं भेजा जाता था। यह बाते हिंदू धर्म ग्रंथों और यूरेशिया के लोगों में
प्रचलित कहानियों के आधार पर भी सही है। आर्य लोग यूरेशिया के रहने
वाले है इस बात के बहुत से प्रमाण है जैसे आर्य लोगों की भाषा का रूस
की भाषा से मिलना, ज्योतिष शास्त्र, वास्तु, तंत्र शास्त्र, और मन्त्र
शास्त्र जो की वास्तव में मेसोपोटामिया सभ्यता की देन है और DNA पर
किये गए शोध आदि। यह सभी वैज्ञानिक प्रमाण है ना की कोई
काल्पनिक प्रमाण है। इंडिया के लोगों के DNA पर कुल दो शोध हुए है।
जिस में से एक शोध माइकल बामशाद ने लिखा था जिसको सुप्रीम कोर्ट
ऑफ इंडिया ने भी मान्यता दी थी, जबकि दूसरा शोध राजीव दीक्षित नाम
के एक ब्राह्मण ने स्वयं किया था। दोनों शोधों में
पाया गया था कि ब्राह्मण, बनिया और क्षत्रिय यूरेशिया मूल के लोग है।
अगर धर्म शास्त्रों को आधार मान लिया जाये तो इस से यह बात
भी साफ़ हो जाती है कि यह आर्य लोग समुद्र में भटकते हुए दक्षिण
इंडिया के समुद्र तट पर पहुंचे थे। ऋग्वेद, भागवत पुराण,
दुर्गा सप्तसती के अनुशार पानी से सृष्टि की उत्पति के सिद्धांत से
भी इस बात का पता चल जाता है कि आर्य लोग इंडिया में समुद्र के
रास्ते आये थे। अर्थात आर्यों को पानी के बीच में धरती दिखाई
दी थी या मिली थी। इसीलिए हिंदू धर्म शास्त्रों में कहा जाता है
कि धरती की उत्पति पानी से हुई है।
उस समय इंडिया के मूलनिवासी बहुत ही भोले भाले और सभ्य होते थे।
इंडिया में सिंधु घाटी की सभ्यता स्थापित थी। जो उस समय संसार
की सबसे उन्नत सभ्यताओं में से एक थी। इंडिया के मूलनिवासी देखने में
सांवले और ऊँची कद काठी के और मजबूत शारीर के होते थे। इसके
विपरीत आर्य लोग यूरेशिया से आये थे जो एक ठंडा देश है। और वहाँ के
लोगों को कम मात्र में सूर्य की रोशनी मिलने से वहाँ के लोग साफ़ रंग के
होते थे। यह बात वैज्ञानिक भी प्रमाणित कर चुके है कि ठन्डे प्रदेश के
लोगों की चमड़ी का रंग साफ़ होता है। इसी चमड़ी के रंग
का फायदा उठा कर आर्यों ने खुद को देव घोषित किया। समय के साथ
आर्यों ने देश में अपनी सता स्थापित करने के लिए प्रयास शुरू किये।
आर्य लोगों ने इंडिया की सभ्यता को नष्ट करना शुरू करके
अपनी सभ्यता स्थापित करने के लिए हर तरह से पूरी कोशिश की। आर्य
लोग छल, कपट, प्रपंच और धोखा देने में प्रवीण थे। जिसके कारण बहुत
से मूलनिवासी उनकी बातों में फंस जाते। आर्यों ने
इंडिया की नारी को अपना सबसे पहला निशाना बनाया, आर्य लोग
आधी रात को हमला करते थे और धन धान्य के साथ साथ
मूलनिवासी लोगों की बहु बेटियों को भी अपने साथ ले जाते थे। बाद में
ब्राह्मणों ने बहुत सी प्रथाओं को लागू करवाया। समय के अनुसार प्रथाएं
परम्पराओं में परिवर्तित हुई और आज भी इंडिया की नारी उन्ही प्रथाओं
के कारण शोषण का शिकार हो रही है।
इंडिया के मूलनिवासी राजा आर्यों के यज्ञ, बलि और तथाकथित
धार्मिक अनुष्ठानों के खिलाफ थे। क्योकि इन अनुष्ठानों से पशु धन,
अनाज और दूसरे प्रकार के धन की हानि होती थी। जबकि धार्मिक
अनुष्ठानों की आड़ में आर्य लोग अयाशी करते थे। ऋग्वेद को पढ़ने पर
पता चलता है कि आर्य लोग धर्म के नाम पर कितने निकृष्ट कार्य करते
थे। अनुष्ठानों में सोमरस नामक शराब का पान किया जाता था, गाये, बैल,
अश्व, बकरी, भेड़ आदि जानवरों को मार कर उनका मांस खाया जाता था।
पुत्रेष्टि यज्ञ, अश्वमेघ यज्ञ, राजसु यज्ञ के नाम पर सरेआम खुल्म
खुला सम्भोग किया जाता था या करवाया जाता था। इन प्रथाओं,
जो आज परम्परायें बन गई है के बारे ज्यादा जानकारी चाहिए तो आप
लोग ऋग्वेद का दशवा मंडल, अथर्ववेद, सामवेद, देवी भागवत पुराण,
वराह पुराण, आदि धर्म ग्रन्थ पढ़ सकते है।
एक समय आर्यों ने इंडिया के एक शक्तिशाली राजा हिरण्यकश्यप के
राज्य पर हमला किया और वहाँ अपना राज्य और
अपनी सभ्यता को स्थापित करने की कोशिश की तो राजा हिरण्यकश्यप
ने भी आर्यों की अमानवीय संस्कृति का विरोध किया। राजा हिरण्यकश्यप
जो की एक नागवंशी राजा था ने नागवंश के धर्म के मुताबिक़
आर्यों को अधर्मी और कुकर्मी करार दिया तथा आर्यों के धर्म
को मानने से इंकार कर दिया। आर्यों ने हर संभव प्रयत्न करके
देखा लेकिन उनको सफलता नहीं मिल पाई। यहाँ तक आर्यों के राजाओं
ब्रह्मा और विष्णु सहित उनके सेनापति इन्द्र को कई बार
राजा हिरण्यकश्यप ने बहुत बुरी तरह हराया। राजा हिरण्यकश्यप
इतना पराक्रमी था कि उन्होंने इन्द्र की तथाकथित देवताओं
की राजधानी अमरावती को भी अपने कब्जे में कर लिया। जब
आर्यों का राजा हिरण्यकश्यप पर कोई बस नहीं चला तो अंत में आर्यों ने
एक षड्यंत्रकारी योजना के तहत विष्णु ने राजा हिरण्यकश्यप को मौत के
घाट उतार दिया। लेकिन आर्यों को हिरण्यकश्यप की मृत्यु का कोई
फायदा नहीं हुआ क्योकि हिरण्यकश्यप की प्रजा ने आर्यों के शासन
मानने से इंकार कर दिया और हिरण्यकश्यप के भाई हिरण्याक्ष
को राजा स्वीकार कर लिया। आर्यों का षड़यंत्र असफल हो गया था।
राजा हिरण्याक्ष भी बहुत शक्तिशाली योद्धा था जिसका सामना युद्ध
भूमि में कोई भी आर्य नहीं कर पाया। राजा हिरण्याक्ष के डर से आर्य
भाग खड़े हुए। यहाँ तक देवताओं की तथाकथित
राजधानी अमरावती को हिरण्याक्ष ने पूरी तरह बर्बाद कर दिया।
हिरण्याक्ष के पराक्रम से डरे हुए आर्यों ने एक बार फिर
राजा हिरण्याक्ष को मारने के लिए एक षड्यंत्र रचा। षड्यंत्र को अंजाम
देने के लिए हिरण्याक्ष की पत्नी रानी कियादु को मोहरा बनाया गया।
विष्णु नाम के आर्य ने रानी कियादु को पहले अपने प्रेम जाल में
फंसाया और उसके बाद रानी कियादु को अपने बच्चे की माँ बनने पर विवश
किया। विष्णु कई बार हिरण्याक्ष की अनुपस्थिति में रानी के पास भेष
बदल बदल कर आता रहता था।
हिरण्याक्ष राज्य के कार्यों में व्यस्त रहता था, जिसके चलते विष्णु और
कियादु के प्रेम के बारे राजा हिरण्याक्ष को पता नहीं चला। समय के साथ
रानी कियादु ने एक बच्चे को जन्म दिया और बच्चे का नाम प्रहलाद
रखा गया। राजा हिरण्याक्ष राज्य के कार्यों में व्यस्त रहते थे इस
का पूरा फायदा विष्णु ने उठाया और बचपन से ही प्रहलाद को आर्य
संस्कृति की शिक्षा देनी शुरू कर दी। जिसके कारण प्रहलाद ने
नागवंशी धर्म को ठुकरा कर आर्यों के धर्म को मानना शुरू कर दिया।
समय के साथ हिरण्याक्ष को पता चला कि उसका खुद
का बेटा नागवंशी धर्म को नहीं मानता तो रजा को बहुत दुःख हुआ।
राजा हिरण्याक्ष ने प्रहलाद को समझाने की बहुत कोशिश की लेकिन
प्रहलाद तो पूरी तरह विष्णु के षड्यंत्र का शिकार हो गया था और उसने
अपने पिता के खिलाफ आवाज उठा दी। इसके चलते दोनों पिता और पुत्र
के बीच अक्सर झगड़े होते रहते थे।
उसके बाद आर्यों ने प्रहलाद को राजा बनाने के षड्यंत्र
रचा कि हिरण्याक्ष को मार कर प्रहलाद को अल्पायु में
राजा बना दिया जाये। इस से पूरा फायदा आर्यों को मिलाने वाला था।
रानी कियादु पहले ही विष्णु के प्रेम जाल में फंसी हुई थी और प्रहलाद
अल्पायु था। इसलिए अप्रत्यक्ष रूप से विष्णु का ही राजा होना तय था।
आर्यों के इस षड्यंत्र की खबर किसी तरह हिरण्याक्ष की बहन
होलिका को लग गई। होलिका भी एक साहसी और पराक्रमी महिला थी।
स्थिति को समझ कर होलिका ने प्रहलाद को अपने साथ कही दूर ले जाने
की योजना बनाई। एक दिन रात को होलिका प्रहलाद को लेकर राजमहल
से निकल गई, लेकिन आर्यों को इस बात की खबर लग गई। आर्यों ने
होलिका को अकेले घेर कर पकड़ लिया और राजमहल के पास ही उसके
मुंह पर रंग लगा कर जिन्दा आग के हवाले कर दिया। होलिका मर गई और
प्रहलाद फिर से आर्यों को हासिल हो गया। इस घटना को आर्यों ने
दैवीय धटना करार दिया कि कभी आग में ना जलने वाली होलिका आग में
जल गई और प्रहलाद बच गया। जबकि वास्तव में ऐसा नहीं था आर्यों ने
प्रहलाद को हासिल करने के लिए होलिका को जलाया था। हिरण्याक्ष
को आमने सामने की लड़ाई में हराने का सहस किसी भी आर्य में नहीं था।
तो हिरण्याक्ष को छल से मारने का षड्यंत्र रचा गया। एक दिन विष्णु ने
सिंह का मुखोटा लगा कर धोखे से हिरण्याक्ष को दरवाजे के पीछे से पेट
पर तलवार से आघात करके मौत के घाट उतार दिया।
ताकि राजा को किसने मारा इस बात का पता न चल सके। इस प्रकार
धोखे से आर्यों ने मूलनिवासी राजा हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष के
राज्य को जीता और प्रहलाद को राजा बना कर उनके राज्य पर
अपना अधिपत्य स्थापित किया।
हम होली अपने महान राजा हिरण्यकश्यप और वीर होलिका के बलिदान
को याद रखने हेतु शोक दिवस के रूप मे मनाते थे और जिस तरह मृत
व्यक्ति की चिता की हम आज भी परिक्रमा करत
जून 15, 2015 at 1:00 अपराह्न
A C grade story
जुलाई 26, 2015 at 9:39 अपराह्न
बुधाचार जि आपके हिसाब से भारत के लोगो को आज तो काला ही होना चाहीए क्युकी अब तो कोई युरोप से नही आ रहा है आपने सुद्रो का वर्दण नही किया कृपया उनके बारे मे भि खोज करे आपको अपना भि पता चल जयेगा और ये प्राह्लाद वालि और विस्नु कि शेर क मुखौटे वाला स्वपन किसने देखा
मार्च 11, 2015 at 5:57 अपराह्न
आर्यो की संस्कृति दुनिया की सबसे बड़ी विरोधाभास है। ये सिवाय दोगलेपन के और कुछ नहीं है। ये पागल मूर्खो की संस्कृति है। इसका कोई तर्कपूर्ण आधार नहीं है।
एक तरफ स्त्री को पूजा जाता है और दूसरी तरफ मरे हुए पति के चिता पर जलाया जाता है। एक तरफ कन्या पूजन होता है तो दूसरी तरफ बाल विवाह करवाया जाता है।अपने देश में माँ-बाप को ईश्वर का दर्ज़ा प्राप्त है लेकिन ये माँ-बाप बच्चे नहीं बल्कि गुलाम पैदा करते हैं। यहाँ शिक्षक ज्ञान से ज्यादा तकलीफ और पूरी ज़िन्दगी के लिए ख़राब यादें देते है।
और फिर भी लोग कहते मेरा देश महान, मेरी संस्कृति
महान। एक-एक पोल खोल दिया जाये तो आर्य संस्कृति की धज्जी
उर जायेगी।
मार्च 13, 2015 at 2:00 अपराह्न
Thankyou, Krishna Kumar Mishra sir ji Aap to samaj ki Aankhe khool dee, aur aap esi tarah hathiyooo ke tarah dahadte rahiyee, kutte to bhoookate rahte hai, aap apani lekh likhate rahi hamari shubh kamane aap ke sath hai. dhanyabd………………..
फ़रवरी 10, 2016 at 6:27 अपराह्न
Bewàkuf gautam, tujhe is arya vanshi me bare me much pta hai, aur apni maa we jarur puchna apne baap ka naam sayad tubhi kisi dogle ki nishaani ho…musaale sale
मार्च 29, 2015 at 7:26 पूर्वाह्न
Human being if uses senses to know the world, yes he can know. But with senses you can’t know The God. This what basic knowledge Vedas gives to act in what ever direction you want or what goal you want. Rest when Aryans came to India and why, does not matter.
मार्च 29, 2015 at 7:36 पूर्वाह्न
My mean to say is if we run for material we have to get competition of the world, but if you want real peace in life go away from this material, this is what REGVEDA says.
अप्रैल 14, 2015 at 5:53 अपराह्न
Jo bhi aryon ko galat saabit kar sata h to mujhse contect kare9761189798 vo bhi with proof tumhe to ye bhi nahi pata arya kehte kise h. Murkho yadi ramayan ya mahabharat padhi ho to usme shre raam chandra ji, or kirshsn ji ko arya kaha gaya h. Vo to yogi purush the. Pehle kisi k bare me poiri jankari karo tab kisi k baare me boolo. Agar maa ka doodh piya h to mujhse baat karo aryon ko galat bolne walo
अप्रैल 14, 2015 at 6:09 अपराह्न
Kirshna mishra aap keh rahe ho ki arya bahar se aaye to mujhe bataao ki arya kaham se aaye vo bhi with proof. Or ji jagha se bhi aaye to kya us jagha ya desh me aaryon koi nishani baato. Me dave k saath kehta hu ki siva bharat ke aryon ka koi nivas isthan nahi h. Or me ise proof kar sakta ho. Yadi tum meri baat ka javab de sakte ho to jindagi bhar k liye tumhara gulam. Varn fir tum apne aasal baap se paida nahi,..
kirshana mishra kya rsmayan jhooti hai jisme raam ko arya kaha gaya h. Ram ke samaye ko 5 Lakh varas ka samaya ho gaya h proof h amerika k naasa ki raam ke dwara banai gaye raamsetu ki jo riport nasa ne di h use dekh lena. Iska matlab h ki arya bharat me 5 Lakh varas pehlebhi the. Tum bata sakte ho arya bharat kab aaye. Vo bhi with proof.
agar maa ka doodh piya h to java do. Ha me tumhare sare sawalon ka javab de sakta hoon.
अप्रैल 16, 2015 at 12:26 अपराह्न
Tum ghor Chutia Ho, Note It.
अप्रैल 18, 2015 at 3:22 अपराह्न
BILKUL GALAT HAI HAMARI DESH KA NAME ARAYAVRAT HI THA BHARAT TO BAD MI BANA
अप्रैल 23, 2015 at 8:48 अपराह्न
असंसदीय भाषा का प्रयोग न करे इतना ही दम है तो कुरान के बारे मे लिखें ।आप इतने ज्ञानी नही है कि आर्य के बारे मे लिखे ।
मई 14, 2015 at 12:31 अपराह्न
bhart ks kahdhu kis wastu ka tha
मई 25, 2015 at 12:37 अपराह्न
Ramnaresh ji aur sabhi anya log jo is aarticle ko sahi mante hai , aavashya padhe,
Ishwar ne srishti ke aarambh mein , jese koi company ne product ke saath user , mannual ya guide deti hai , usi prakaar parmeshwar ne insano ko ” “VED” diye jisme jeevan jeene ka sahi dhang , jeevan mein kaam aane vaali sabhi vidya jese maths , aayurved aadi , jo bhi vyakti un vedon ke anusaar jivan ko jeeta hai veh vyakti ARYA hai. Isliye aya koi alag mat dharm samraday nahi hai hai , mujhe yeh kehne mein mein Garv Hota Hai Ki Yogeshwar Bhagwan Shri Krishna Maryada Purushottam Bhagwan Shri Ram aur anya Mahanpurish bhi Arya hi the. 5000 varsh purva tak sab log Arya hi the , Mahabharata ke baad bahut si confusions logo ke dimaag me apne fayade ke liye pandito ne peda kar di fir 1875 mein Maharishi Dayanand Saraswati ji ne Aryasamaj nam ki ek sanstha ko sthapit kiya .
Aapko ek aur baat batana chahta hu ki jab hamara desh aazad hua tb kai angrezi akhbaaro me frontpage pr yeh likha tha ki 80 % krantikari Aryasamaj ne diye desh ko, aapko kabhi samay mile toh padhna ki Bhagat Singh Ram prasad bismil, lala lajpat rai aur kitne asankhyo ko Maharishi Dayanand Saraswati aur Aryasamaj ne hi krantikari banaya.
Isiliye bina sachaai jaane kuch na likhe kyonki aryo ko bura kehe ka arth hai desh ki Shri Ram Shri Krishna ki tatha Shaheedo ki besti karna
मई 28, 2015 at 12:07 अपराह्न
हिन्दू धर्म के लोगो हनुमान जी को भगवानमानते है हनुमान जी को ये नही पता संजीवनीजडी बूटी कैसी होती है एक बूटी के लिएपहाड उठा ले आये हनुमान …एक जडी बूटी की पहचान नही फिर भीअन्तर्यामी बोलते हो हनुमान जी को.. अगरतूम पहाड उठाने से कृष्ण हनुमान को भगवानमानते हो तो शेषनाग ने पृथ्वी उठा रखी हैतुम्हारे ही शब्दो मे.. तो हनुमान से बडा तोशेषनाग हुआ…अगर तुम मानते हो राम का नाम लिखने सेपत्थर तैर गये राम ने पुल बना दिया तोअगस्त ऋषि ने सातो समुंद्र पी लिये थे राम सेबडा तो अगस्त ऋषि हुआ.. उसको क्यो भगवाननही मानते…कृष्ण को भगवान मानते हो कृष्ण जी की आखोके सामने 56 करोड यादव द्वारिका मे आपसमे कट कर मर गये.. कृष्ण जी उन यादवो कोनही बचा पाये.. दुर्वाषा ऋषि के श्राप कोनही टाल सके कृष्ण जी फिर काहे के भगवान..द्वारिका भी समुंद्र मे डूब गई उनकी ..राम ने बालि को मारा फिर बालि का आत्माने शिकारी बनकर कृष्ण को मारा.. इनकोभगवान कहते हो जो अपने पाप नही काट सकेवह तुम्हारे क्या काटेगे.. कृष्ण जी के सामनेअभिमन्यु मारा गया कृष्ण भगवान थे क्यो नहीजीवित किया.. क्यो नही 56 करोड यादवोको बचा पाये..कृष्ण के मरने के बाद गोपीयो को भिल्लो नेलूठा अर्जुन को भी पीटा.. दुनिया के लोगकृष्ण की फोटो के सामने अपनी अपने बच्चो कीजान की भीख मांगते है जब कृष्ण जी शरीर मे थेजब वह यादवो और अभिमन्यु को नही बचापाये तुम लोग तो फोटो को भगवान माने बैठेहो तुम्हे कैसे बचायेगे..लोग शिव को भगवान मानते है एक बारभष्मासूर ने तप किया शिव से भष्म कडा लेकरशिव के पीछे भाग लिया.. शिव भगवान डर करआगे आगे भाग रहे थे और उनका पुजारी उनकोमारने के लिए उनके पीछे भाग रहा था. बताओशिव खुद की रक्षा नही कर सकते अगर शिवको भी मरने से डर लगता हैापार्वती हवन कुंड मे कूदकर मर गई थी शिवतो अन्तर्यामी भगवान थे उनको क्यो मालूमनही हुआ.. क्यो पार्वती को जल के मरने दीया।यदि ईश्वर ने वेद दिए है तो भारत में ही क्यों? पूरे विश्व को क्यों नहीं दिए है? इन्सानों में छुआछूत किसकी देन है? किसी को यदि मूर्ख बनाना है तो वेदों का सहारा लो।
जुलाई 6, 2015 at 12:29 पूर्वाह्न
sabse pahale ye shirshak haramkhor …… ki kahani diya he isase hi aapke nich vyaktitva ka bodh ho jata he. har vo vyakti jo isa prakar ki bhasa ka prayog karata he vah us vyakti ki bat par gyani jan apana dhyan bhi nahi dalate aapne itana khoja he to aapko pata hoga ki vani atma ka darpan hoti he. aap sochte he ki aapka virodh bade star par ab tak kyu nahi hua to ek bat janle yadi ham arya nahi hote to abhi aapki jivha ko aapke mukh se nikal kar bahar fek diye hote. kyuki arya kshma karte.or aapko itana bhagvano ke bare me pata he to arya kshma to karte he par dushto ko dand bhi dete he. kahate he ki —-
dhol gavar shudra pashu nari sakal tarana ke adhikari
सितम्बर 29, 2015 at 4:29 अपराह्न
Maharaj apne galat chaupai kah di. ye sabse neech chaupai jiski aaj tak koi safai koi nahi de pa raha hai kyuki ye gavar, shudra, pashu aur nari sabhi ko bematlab tadana ka adhikari manti hai. kewal ye hi ek chaupai poori ram charit manas ko bakwas karne ke liye paryapt hai
दिसम्बर 18, 2015 at 1:34 अपराह्न
what are you???/hindu? by name you are. which god you believe in?what do you know about ”’your god””????nothing. so dont talk foolish about others god, this is the matter of faith and faith do not need logic.
अप्रैल 4, 2016 at 9:01 अपराह्न
Whàt the hell you all are talking about…it’s very simple to abuse anyone and to give pain to others by talking rubbish like all of talking . Be responsible guy’s .think positively. Don’t try to hurt anyone’s feeling ethics……
जून 1, 2015 at 2:13 अपराह्न
bhay kya aap camer ke samne kai vidono se visay par charch kare bahut achha hoga.
जून 1, 2015 at 2:22 अपराह्न
agar aap me jhamta hai to kisi tv show me bat karo.ginke andar dam hota hai piche se war nahi karte ovkat ho tv show me samne aakar bat karo.yese to gagi ke kute bhi apne aapko sher samjhte hai.
जून 7, 2015 at 4:43 अपराह्न
“भारत का इतिहास आर्य ब्राह्मणों की विसमतावादी और बुद्ध की मानवतावादी विचारधारा के बीच क्रांति और प्रतिक्रांति के संघर्ष का इतिहास रहा है।”
सिंधु सभ्यता, मोहन जोदड़ो, हड़प्पा भारत की फली-फूली सभ्यताएं थी इन सभ्यताओ में रहने वाले लोग दैत्य, अदित्य, सूर,असूर, राक्षस, दानव कहलाते थे। तथा इनमे किसी प्रकार का जाति भेद नहीं था, इनकी संस्कॄति मातृसत्तात्म थी ।
करीब चार हजार साल पहले जब खेबर दर्रे से होते हुए मध्य एशिया से ‘आर्य’ आये तो यहॉं के मूलनिवासी अनार्य कहलाने लगे। आर्य और अनार्यों में करीब पांचसौ वर्ष तक संघर्ष चला जिसमे अनार्यों का पतन हुआ परिणामस्वरूप आर्यों ने अपनी पितृसत्तात्मक संस्कॄति और विसमता वादी वर्ण व्यवस्था अनार्यो पर थोप दी, इस युग को इतिहास में आर्य वेदिक युग कहा गया है ।
आर्य लोगो में त्रिवर्णीय व्यवस्था (ब्राह्मण/क्षत्रिय/वेश्य) विकसित हो चुकी थी। जिसका विवरण ऋग्यवेद में मिलता है जब अनार्यो को हराकर गुलाम बनया तो इन्हे वर्ण व्यवस्था में रखने के लिए चतुर्थ वर्ण(शूद्र) की रचना की गयी जिसका विवरण पुरुषशुक्त में मिलता है।
इस बात को ध्यान में रखते हुए कि मूलनिवासी अनार्य हमेशा आर्यो के गुलाम बने रहे, अनार्यों को आर्यों ने शिक्षा/सत्ता/सम्पत्ति/सम्मान आदि मूल अधिकारों से वंचित किया तथा शूद्र(सछूत) और अतिशूद्र(अछूत) के तौर पर बांट कर इनमे उंच-नीच की भावना पैदाकर आपस में लड़ाते रहे । धीरे-धीरे आर्य ब्राह्मणो ने इन्हे जाति- उपजाति में बांटकर ऐसे अंधविस्वास के जाल में उलझाया कि मूलनिवासी अनार्य शूद्र(obc/sc/st) आर्य ब्राह्मणों के सड़यंत्रो को समझ ही नही पाये।
आर्यों की अमानवीय विसमतावादी व्यवस्था को गौतम बुद्ध ने अपनी वैज्ञानिक सोच और तर्कों से ध्वस्त कर दिया तथा समाज में ऐसी चेतना फैलाई कि ब्राह्मण और ब्राह्मणी संस्कारो का लोगो ने बहिस्कार कर दिया।
बुद्ध को ब्राह्मणों ने शुरुआत से ही नास्तिक माना है। ब्राह्मणों के शास्त्रों में लिखा भी गया है कि जो अपने जीवन में तर्क का इस्तेमाल करता है वह नास्तिक है और जो धर्म और ईश्वर में विश्वास रखे वह आस्तिक । रामायण में बौद्धों की नास्तिक कहकर निंदा की गयी है ।
बुद्ध का धम्म कोई धर्म नहीं बल्कि नैतिक सिद्धांत है । संक्षेप में कहे तो ‘बुद्ध’ का मतलब बुद्धि, ‘धम्म’ का मतलब ‘इंसानियत’ और संघ का मतलब ‘इस उद्देश्य के लिए संघर्ष कर रहा सक्रीय संगठन’ है।
परन्तु बेहद दुःख की बात है कि बौद्ध सम्राट अशोक के पौत्र वृहदरथ की पुष्यमित्र शुंग द्वारा हत्या कर बौद्धों के शासन को खत्म किया और बौद्धों पर तरह-तरह के ज़ुल्म ढहाए गए, वर्ण व्यवस्था जो बुद्ध की क्रांति की वजह से खत्म हो गयी थी । उसे मनुस्मृति लिखवाकर पुनः ब्राह्मणी शासन द्वारा तलवार के बल पर थोपी गयी, जिन बौद्धों ने इनके अत्याचारों की वजह से ब्राह्मण धर्म(वर्ण व्यस्था) को स्वीकार कर लिया उन्हें आज हम सछूतशूद्र(obc), जिन बौद्धों ने ब्राह्मण धर्म को स्वीकार नही किया उन्हें अछूतशूद्र (sc) और जो बौद्ध अत्याचारों की वजह से जंगलो में रहने लगे उन्हें आज हम अवर्ण(st) के रूप में पहचानते हैं ।
ब्राह्मण धर्म में वर्ण, वर्ण में जाति, जाति में उंच- नीच और ब्राह्मण के आगे सारे नीच, यही वजह है कि जब मुसलमानों का शासन आया तो बड़े पैमाने sc/st/obc के लोग मुसलमान बन गये, जब अंग्रेजो का राज आया तो क्रिस्चन बन गए ।
आज भी sc/st/obc के लोगों को प्रांतवाद,जातिवाद,भाषावाद,धर्मवाद के नाम पर ‘फूट डालो राज करो नीति’ को अपनाकर भय,भक्ति, भाग्य, भगवान, स्वर्ग-नर्क, पाप-पूण्य, हवन, यज्ञ,चमत्कार,पाखण्ड अन्धविश्वास,कपोल काल्पनिक पोंगा पंथी कहानिया आदि अतार्किक, अवैज्ञानिक मकड़जाल को इलेक्ट्रॉनिक व प्रिंटमीडिया के माध्यम से थोपकर तथा मुसलमानों का डर दिखा कर मानसिक रूप से गुलाम बनाया जा रहा है। ऐसे में यदि कोई जागरूक बुद्धिजीवी तर्क करता है तो उसे धर्म विरोधी बताकर बहिस्कृत कर दिया जाता है ।
आज बाबा सहाब अम्बेडकर के संवैधानिक अधिकारों की वजह से अनार्य शूद्रों(obc/sc/st) ने हर क्षेत्र में कुछ तरक्की की है परन्तु आर्य ब्राह्मणों ने कांग्रेस/बीजेपी/AAP के राजनैतिक सडयंत्र में फंसाकर एक तरफ तो हिंदुत्व के नाम पर मुसलमानो से लड़ाने का प्रयास किया जा रहा है दूसरी तरफ प्राईवेटाइजेशन,ऐसीजेड और भूमि अधिग्रहण के नाप पर आर्थिक रूप से तथा अंधविस्वास फैलाकर मानसिक रूप से गुलाम बनाने का षड्यंत्र किया जा रहा है ।
जून 15, 2015 at 1:09 अपराह्न
Tum kaun ho. Tumahre father ke father ke father ka kaya naam tha. Itna to pata nahin, lekin vishleshan kar rahe ho hajaron saal pehle ka. I think you are on missionary pay role.
जून 19, 2015 at 4:31 अपराह्न
All the people who agrees with the follish Doctor should go to mental asylum aur haramkhor doctor ko ishwar narak me sadaye
जून 20, 2015 at 8:15 अपराह्न
This writer is st*pid and ins*ne. Any human race should not be insulted like this. Shame on you!
You should be dragged to court for spreding rumour and playing with people’s sentiments. I know, you have written this just to get these abuses, this is so cheap method to gain publicity but it end you to jail..
Anyways, I have complaint WordPress, they will end your chawanni chhap publicity …
जून 22, 2015 at 8:43 पूर्वाह्न
ब्राह्मण विदेशी है प्रमाण————————————1. ऋग्वेद में श्लोक 10 में लिखा है कि हम(वैदिक ब्राह्मण ) उत्तर ध्रुव से आये हुए लोग है। जब आर्य व् अनार्यो का युद्ध हुआ ।2. The Arctic Home AtThe Vedas बालगंगाधर तिलक (ब्राह्मण) के द्वारा लिखी पुस्तक में मानते है कि हम बाहर आए हुए लोग है ।3. जवाहर लाल नेहरु ने (बाबर के वंशज फिर कश्मीरी पंडित बने) उनकी किताब Discovery of India में लिखा हैकि हम मध्य एशिया से आये हुए लोग है। यह बात कभी भूलनानही चाहिए। ऐसे 30 पत्र इंदिरा जी को लिखे जब वो होस्टल में पढ़ रही थी।4. वोल्गा टू गंगा में “राहुल सांस्कृतयान” (केदारनाथ के पाण्डेय ब्राहम्ण) ने लिखा है कि हम बाहर से आये हुए लोग है और यह भी बताया की वोल्गा से गंगा तट (भारत) कैसे आए।5. विनायक सावरकर ने (ब्राम्हण) सहा सोनरी पाने “इस मराठी किताबमें लिखा की हम भारत के बाहर से आये लोग है।6. इक़बाल “काश्मीरी पंडित ” ने भी जिसने “सारे जहा से अच्छा” गीत लिखा था कि हम बाहर से आए हुए लोग है।7. राजा राम मोहन राय ने इग्लेंड में जाकर अपने भाषणों में बोला था कि आज मै मेरी पितृ भूमि यानि अपने घर वापस आया हूँ।8. मोहन दास करम चन्द गांधी (वेश्य) ने 1894 में दक्षिणी अफ्रीका के विधान सभा में लिखे एक पत्र के अनुसार हम भारतीय होने के साथ साथ युरोशियन है हमारी नस्ल एक ही है इसलिए अग्रेज शासक से अच्छे बर्ताव की अपेक्षा रखते है।9. ब्रह्म समाज के नेता सुब चन्द्र सेन ने 1877 में कलकत्ता की एक सभा में कहा था कि अंग्रेजो के आने से हम सदियों से बिछड़े चचेरे भाइयों का (आर्य ब्रह्मण और अंग्रेज ) पुनर्मिलन हुआ है।इस सन्दर्भ में अमेरिका के Salt lake City स्थित युताहा विश्वविधालय (University of Utaha’ USA) के मानव वंश विभाग के वैज्ञानिक माइकल बमशाद और आंध्र प्रदेश के विश्व विद्यापीठ विशाखा पट्टनम के Anthropology विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा सयुक्त तरीको से 1995 से 2001 तक लगातार 6 साल तक भारत के विविध जाति-धर्मो और विदेशी देश के लोगो के खून पर किये गये DNA के परिक्षण से एक रिपोर्ट तैयार की। जिसमें बता गया कि भारत देश की ब्राह्मण जाति के लोगों का DNA 99:96 %, कश्त्रिय जाति के लोगों का DNA 99.88% और वेश्य-बनिया जाति के लोगो का DNA 99:86% मध्य यूरेशिया के पास जो “काला सागर ’Blac Sea” है। वहां के लोगो से मिलता है। इस रिपोर्ट से यह निष्कर्ष निकालता है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य-बनिया विदेशी लोग है और एस सी, एस टी और ओबीसी में बंटे लोग (कुल 6743 जातियां) और भारत के धर्म परिवर्तित मुसलमान, सिख, बुध, ईसाई आदि धर्मों के लोगों का DNA आपस में मिलता है। जिससे साबित होता हैकि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोग भारत के मूलनिवासी है। इससे यह भी पता चलता है कि एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्मपरिवर्तित लोग एक ही वंश के लोग है। एस सी, एस टी, ओबीसी और धर्म परिवर्तित लोगों को आपस में जाति के आधार पर बाँट कर ब्राह्मणों ने सभी मूलनिवासियों पर झूटी धार्मिक गुलामी थोप रखी है। 1900 के शुरुआत से आर्य समाज ब्राह्मण जैसे संगठन बनाने वाले इन लोगो ने 1925 से हिन्दु नामक चोला पहनाकर घुमाते आ रहे है। उक्त बात का विचार हमे बहुत ही गहनता से करने की आवश्यकता है। राष्ट्रिय स्वयं सेवकसंघ के जरिये 3% ब्राह्मण 97% मूलनिवासी भारतीयों पर पिछ्ले कई सालों से राज करते आ रह
जून 24, 2015 at 9:44 पूर्वाह्न
Aapne jo lekh dala hai usse aapki murkhta ka pata chalta hai main to yahi kahunga ki aap mahamurkh hai aur aap jaroor apne aapko kaphi intelligent samjhte hoge aur aapne angrejo ke dwara likha hua history bhi kaphi padha hoga isliye aap apnebp ko kaphi mahan samjhte hai par sirf kitabo se kuchh nahi hota agar khud duniya ghum kar dekhte to pata chal jata ki aaj bhi dharm mein kitni takat aaj bhi log inhi devi devtaon ke mantro se sarp kate ko jharkar thik kar deten hain iska sakshi main svyam hoon aur aary sampoorn bhartiye hai ye kahin se nahi aaye main apni aankho se aadmi tak ko mantro se gayab hote dekha hai ye koi hath ki safai nahi kitna likhoo murf ke tum murkh hi rahoge.
जून 24, 2015 at 10:17 पूर्वाह्न
Haramkhor to tum ho aur mahamurkh bhi abe pahle thik se jankari hasil kar uske baad bakwas karna.
जुलाई 5, 2015 at 4:32 अपराह्न
Well,mentioning various society problems and relating it with religion doesn’t prove your point.The book which u call a great drama……. is one of the oldest written literature…….by the way all the contributions made by ancient India was just during the time when aryans came into the picture…..well there is no point in telling all this….haters gonna hate….
जुलाई 7, 2015 at 9:41 पूर्वाह्न
पूरे भारत में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान यदि कुछ प्राचीन मिलता है तो वो बुद्ध से या सम्राट अशोक के काल से सम्बंधित होता है। कभी आपने सोचा है क ऐसा क्यूँ ?…बोधिसत्व भाई ! तमिलनाडु में खुदाई में मिला प्राचीन बौद्ध स्मारक ।-दैनिक भास्कर, बिहार के केसरिया में खुदाई में मिला दुनिया का सबसे बड़ा बौद्ध स्तूप।मध्यप्रदेश में खुदाई में मिली बुद्ध की विशाल मूर्ती, केरल में खुदाई से प्राप्त हुआ विशाल बुद्ध विहार के अवशेष ।पूरे भारत में पुरातत्व विभाग द्वारा खुदाई के दौरान यदि कुछ प्राचीन मिलता है तो वो बुद्ध से या सम्राटअशोक के काल से सम्बंधित होता है। कभी आपने सोचा ऐसा क्यूँ ? खुदाई में अति प्राचीन कोई ब्राह्मण मंदिर अथवा 33 करोड़ देवताओंमें से किसी एक की भी कोई विशाल प्रतिमा क्यूँ नहीं प्राप्त होती ?क्या बड़े बड़े बौद्ध मंदिर, बौद्ध स्तूप, बौद्ध विहार ,विशाल बौद्ध शिलालेख एवं विशाल बुद्ध प्रतिमाएं समय के अंतराल में स्वतःही भूमिगत हो गईं ?यदि ऐसा होता तो प्राचीन हिन्दू मंदिरों के अवशेष भी अवश्य मिलने चाहिए थे !वैदिक संस्कृति को दुनिया की सबसे प्राचीन और परिष्कृत सभ्यता होने का ढिंढोरा पीटने वाले बताये कि आपके 11 लाख वर्ष पहले पैदा होने वाले राम की कोई प्राचीन प्रतिमा अथवा मंदिर समय के अंतराल में दफ़न क्यूँ नहीं हुआ ? आपके अनुसार सात हजार साल पहले पैदा हुए कृष्ण का कोई मंदिर खुदाई में क्योंनहीं निकला ?खुदाई में आपके किसी भी देवी देवता अवतार या भगवान से सम्बंधित कोई भी वास्तु क्यों नहीं प्राप्त हुई ?या तो आपकी संस्कृति इतनी नहीं थी या फिर बुद्ध से सम्बंधित संस्कृति आपकी संस्कृति से हजारों गुणा श्रेष्ठ,उन्नत, एवं विशाल थी !यदि ऐसा था तो फिर इतनी विशाल सभ्यता जमीन के निचे कैसे चली गई ? मिस्र के पिरामिड जो की रेगिस्तान के भयंकर तूफानों को झेलकर भी भूमिगत नहीं हुए , उन्हें खोद कर नहीं निकाला गया ,जो बुद्ध से भी दो ढाईहजार साल पुराने है और भारत में बुद्ध से सम्बंधित अधिकांश स्थानों को खुदाई द्वारा ही ढूंडा गया है ।भारत की मूल प्राचीन सिन्धु संस्कृति के पूरे के पूरे शहर को ही 1922 में संयोग वश की गई खुदाई में ही ढूंडा गया !इसका कारण हम आपको बताते है ! असल में 189 ई.पू. में जब सम्राट अशोक के वंसज वृह्द्रत्त की हत्या ब्राह्मणों ने पूरे योजना बद्ध तरीके से उसी के सेनापति पुष्यमित्र शुङ्ग द्वारा करवाई थी।उससे पहले पूरे भारत में भारत के कोने कोने में सम्राट अशोक द्वारा स्थापित बुद्ध धम्म का ही परचम लहराता था ,उस समय भारत के कोने कोने में बुद्ध स्मारक , बौद्ध स्तूप ,बौद्धमठ , बौद्ध विहार , और बुद्ध से सम्बंधित अन्य विशाल स्मारक ही थे ,कोई भी ब्राह्मण मठ अथवा मंदिर नहीं था ,वृह्दत्त की हत्या के बाद चले ब्राह्मण और श्रमणों(बौद्धों) के लम्बे एक तरफ़ा संघर्ष में ब्राह्मणअपनी कुटिल और धुर्त नीतिओं के कारन जीत गए , व्यापक पैमाने पर बौद्ध भिक्षुओं और बौद्धों का नरसंहार किया गया , और उनके इतिहास को सदा के लिएजान बूझकर जमीं के नीचे दफ़न कर दिया गया ! और अपने षड्यंत्रो के सबूतों को भी साथ में दफना दिया , उन्हीं सबूतों को हमारे लोग खोद कर निकालने का प्रयास कर रहे हैं आइये खोद कर निकाले गए कुछ सद्यंत्रों के अवशेषों को देखते है“अशूकावदान” नमक पुस्तक से पता चलता है की पुष्य मित्रने पाटलिपुत्र से लेकर जालंधर तक सभी बौद्ध विहारों को जलवा दिए थे और यह घोषणा की कि जो मुझे एक बौद्ध का सर लाकर देगा मैं उसे सोने की सौ मुद्रायें प्रदान करूँगा ।सातवी सदी में बंगाल के राजा शशांक ने बौद्धों के विरुद्ध बहशीपन की सीमा पार कर दी !चीनी यात्री ह्वानशांग लिखताहै की उसने कुशीनगर से वाराणसी के बीच के सभी बौद्ध विहारों को तबाहकर दिया ! पटलीपुत्र में बुद्ध के पधचिन्न्हो को गंगा में फिंकवा दिया और ब्राह्मणों के इशारों पर उसने गया के बौद्धवृक्ष को कटवा दिया तथा बुद्ध की मूर्ती के स्थान पर शिव की मूर्ति रखवा दी !तमिल के पेरिया-प्रनानम नामक ग्रन्थ के अनुसार राजा महेन्द्र वर्मन ने असंख्यो बुद्ध स्मारकों और विहारों को आग लगवा दी ।11वीं सदी में मैसूर के राजा विष्णु वर्मनने बौद्ध और जैन मंदिरों को ध्वस्त करवा दिया ।महावंश पुराण के 93 वै परिच्छेद के 22 श्लोक के अनुसार तथा सिंघली कथाओं में भी उल्लिखित है कि राजा राजा जय सिंह ने बौद्धों पर इतने भयंकर अत्याचार करवाए कि पूरा सिंघल द्वीप बौद्धोंसे खाली हो गया ! शंकर दिग्विजय के अनुसार “राजा सुधन्वा ने अपने व्राह्मण गुरु कुमारिल भट्ट की आज्ञा से अपने सेवकों को ये आदेश दिया की रामेश्वर से लेकर हिमालय तक के सारे भूभाग पर जो भी बौद्ध मिले , चाहे वो बूढ़ा हो या बच्चा उसे क़त्ल कर. दो जो ऐसा नहीं करेगा उसे मैं काट दूंगा
जुलाई 26, 2015 at 9:55 अपराह्न
बुधाचार जि आपके हिसाब से भारत के लोगो को आज तो काला ही होना चाहीए क्युकी अब तो कोई युरोप से नही आ रहा है आपने सुद्रो का वर्दण नही किया कृपया उनके बारे मे भि खोज करे आपको अपना भि पता चल जयेगा और ये प्राह्लाद वालि और विस्नु कि शेर क मुखौटे वाला स्वपन किसने देखा और बेवकुफ बुद्ध को वेदो मे विस्नू का अवतार लिक्खा हुआ
जुलाई 18, 2015 at 5:26 अपराह्न
कृष्ण कुमार मिश्रा जी ,आपके और दुसरे लोगों के विचार पड़े ,एक दुसरे के ऊपर कीचढ उछालना नहीं चाहिए बल्कि तर्क वितर्क से काम लेना चाहिए !किसी विद्वान आर्य सन्यासी या वैदिक प्रवक्ता से किसी आर्य समाज के द्वारा सम्पर्क करें अथवा निष्पक्ष होकर महर्षि दयानन्द सरस्वती जी द्वारा लिखित अमर ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश पढ़ें,!आपकी सभी भ्रांतियो और शंकाओं का ईश्वर कृपा से समाधान हो जायेगा !धन्यवाद
अगस्त 8, 2015 at 6:27 पूर्वाह्न
Ap ne dhurt aryo ke lie jo bhi likha hi sahi likha hi eran se akar hamare desh me 6000 jatiya bana kar maje le rahe hi mandiro me.
अगस्त 8, 2015 at 10:00 अपराह्न
मेरा एक छोटा सा प्रश्न, आपने लेख ही लिखा है या फिर उन छोटे विद्यार्थियों के भविष्य निमार्ण के लिये भी कुछ कार्य किया है,?? हमें प्रांजल भाषा में लिखने से अधिक कार्य करने पर विश्वास करना चाहिये..
अगस्त 15, 2015 at 7:01 पूर्वाह्न
60 साल तक भारत में प्रतिबंधित रहा नाथूराम का अंतिम भाषण
“मैंने गांधी को क्यों मारा”
Gaurav Katiyar
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अपने मित्रों को बतायें
30 जनवरी 1948 को नाथूराम गोड़से ने महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या कर दी थी लेकिन नाथूराम गोड़से घटना स्थल से फरार नही हुआ बल्कि उसने आत्मसमर्पण कर दिया | नाथूराम गोड़से समेत 17 अभियुक्तों पर गांधी जी की हत्या का मुकदमा चलाया गया | इस मुकदमे की सुनवाई के दरम्यान न्यायमूर्ति खोसला से नाथूराम ने अपना वक्तव्य स्वयं पढ़ कर जनता को सुनाने की अनुमति माँगी थी जिसे न्यायमूर्ति ने स्वीकार कर लिया था | हालाँकि सरकार ने नाथूराम के इस वक्तव्य पर प्रतिबन्ध लगा दिया था लेकिन नाथूराम के छोटे भाई और गांधी जी की हत्या के सह-अभियोगी गोपाल गोड़से ने 60 साल की लम्बी कानूनी लड़ाई लड़ने के बाद सुप्रीम कोर्ट में विजय प्राप्त की और नाथूराम का वक्तव्य प्रकाशित किया गया | नाथूराम गोड़से ने गांधी हत्या के पक्ष में अपनी 150 दलीलें न्यायलय के समक्ष प्रस्तुति की | देसी लुटियंस पेश करते है “नाथूराम गोड़से के वक्तव्य के मुख्य अंश”
1. नाथूराम का विचार था कि गांधी जी की अहिंसा हिन्दुओं को कायर बना देगी |कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी को मुसलमानों ने निर्दयता से मार दिया था महात्मा गांधी सभी हिन्दुओं से गणेश शंकर विद्यार्थी की तरह अहिंसा के मार्ग पर चलकर बलिदान करने की बात करते थे | नाथूराम गोड़से को भय था गांधी जी की ये अहिंसा वाली नीति हिन्दुओं को कमजोर बना देगी और वो अपना अधिकार कभी प्राप्त नहीं कर पायेंगे |

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2.1919 को अमृतसर के जलियाँवाला बाग़ गोलीकांड के बाद से पुरे देश में ब्रिटिश हुकुमत के खिलाफ आक्रोश उफ़ान पे था | भारतीय जनता इस नरसंहार के खलनायक जनरल डायर पर अभियोग चलाने की मंशा लेकर गांधी जी के पास गयी लेकिन गांधी जी ने भारतवासियों के इस आग्रह को समर्थन देने से साफ़ मना कर दिया।

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3. महात्मा गांधी ने खिलाफ़त आन्दोलन का समर्थन करके भारतीय राजनीति में साम्प्रदायिकता का जहर घोल दिया | महात्मा गांधी खुद को मुसलमानों का हितैषी की तरह पेश करते थे वो केरल के मोपला मुसलमानों द्वारा वहाँ के 1500 हिन्दूओं को मारने और 2000 से अधिक हिन्दुओं को मुसलमान बनाये जाने की घटना का विरोध तक नहीं कर सके |

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4. कांग्रेस के त्रिपुरा अधिवेशन में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस को बहुमत से काँग्रेस अध्यक्ष चुन लिया गया किन्तु गांधी जी ने अपने प्रिय सीतारमय्या का समर्थन कर रहे थे | गांधी जी ने सुभाष चन्द्र बोस से जोर जबरदस्ती करके इस्तीफ़ा देने के लिए मजबूर कर दिया |

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5. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह,सुखदेव और राजगुरु को फांसी दे दी गयी | पूरा देश इन वीर बालकों की फांसी को टालने के लिए महात्मा गांधी से प्रार्थना कर रहा था लेकिन गांधी जी ने भगत सिंह की हिंसा को अनुचित ठहराते हुए देशवासियों की इस उचित माँग को अस्वीकार कर दिया।

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6. गांधी जी कश्मीर के हिन्दू राजा हरि सिंह से कहा कि कश्मीर मुस्लिम बहुल क्षेत्र है अत: वहां का शासक कोई मुसलमान होना चाहिए | अतएव राजा हरिसिंह को शासन छोड़ कर काशी जाकर प्रायश्चित करने | जबकि हैदराबाद के निज़ाम के शासन का गांधी जी ने समर्थन किया था जबकि हैदराबाद हिन्दू बहुल क्षेत्र था | गांधी जी की नीतियाँ धर्म के साथ, बदलती रहती थी | उनकी मृत्यु के पश्चात सरदार पटेल ने सशक्त बलों के सहयोग से हैदराबाद को भारत में मिलाने का कार्य किया | गांधी जी के रहते ऐसा करना संभव नहीं होता |

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7. पाकिस्तान में हो रहे भीषण रक्तपात से किसी तरह से अपनी जान बचाकर भारत आने वाले विस्थापित हिन्दुओं ने दिल्ली की खाली मस्जिदों में जब अस्थाई शरण ली | मुसलमानों ने मस्जिद में रहने वाले हिन्दुओं का विरोध किया जिसके आगे गांधी नतमस्तक हो गये और गांधी ने उन विस्थापित हिन्दुओं को जिनमें वृद्ध, स्त्रियाँ व बालक अधिक थे मस्जिदों से खदेड़ बाहर ठिठुरते शीत में रात बिताने पर मजबूर किया गया।

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8. महात्मा गांधी ने दिल्ली स्थित मंदिर में अपनी प्रार्थना सभा के दौरान नमाज पढ़ी जिसका मंदिर के पुजारी से लेकर तमाम हिन्दुओं ने विरोध किया लेकिन गांधी जी ने इस विरोध को दरकिनार कर दिया | लेकिन महात्मा गांधी एक बार भी किसी मस्जिद में जाकर गीता का पाठ नहीं कर सके |

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9. लाहौर कांग्रेस में वल्लभभाई पटेल का बहुमत से विजय प्राप्त हुयी किन्तु गान्धी अपनी जिद के कारण यह पद जवाहरलाल नेहरु को दिया गया | गांधी जी अपनी मांग को मनवाने के लिए अनशन-धरना-रूठना किसी से बात न करने जैसी युक्तियों को अपनाकर अपना काम निकलवाने में माहिर थे | इसके लिए वो नीति-अनीति का लेशमात्र विचार भी नहीं करते थे |
अगस्त 27, 2015 at 10:25 पूर्वाह्न
भाई साहब ।।।।शायद आप को इतिहास का पूरा geyaan नहीं ।।।आप के द्वारा बताई गई सारी बाते आप की वयक्तिगत राय है।।आर्य का मतलब श्रेश्ठ होता था जो की कर्म के आधार पर होता था न की जन्मा के आधार पर।और पहली बात तो आर्य और आर्य संस्कृति के बारे मे लगभग 80%जानकारी उपलभ्द ही नहीं है।।और जो उपलभ्द है वो सिर्फ अनुमान है प्रमाणित नहीं।।।हिन्दू धर्म एक जीवन पद्धति है और धर्माचार्य उस पद्धति का एक हिस्सा अगर उस हिस्से मई कोई दिक्कत है तो पूरी पद्धति को दोष नहीं दे सकते।।ये बिलकुल सत्य है की धर्माचार्यो ने पूरी वेवस्था की बहुत छति की है लेकिन ऐसे भी धर्माचार्य थे जिन्होंने मानवीय आधार पे उस वेवस्था को इक नया रूप दिया।।आज जो धार्मिक स्वतंत्रता का आनंद आप ले रहे है ये कुछ धर्माचार्यो की देंन है।।आर्य कौन थे ।और उनकी जीवन पद्धति कैसी थी इसका प्रमाणित सोर्स लाईये न की काल्पनिक ।।।कृष्ण जी को भी आर्य श्रेस्ठ कहा जाता था। जो की इसका आधार सिर्फ उनकी योग्यता थी।।वो तो जाती से ब्राह्मण नहीं थे।।।।।।हमारे धार्मिक ग्रंथो और प्राचीन जानकारियां बदल दी गयी या नस्ट कर दी गयी थी ।।।नालंदा विश्वबिद्यालय को जलाने का यही एक मात्र उद्धेश्य था की हमरा धार्मिक पतन हो जाये।।और कुछ लोगो को आलोचना करने का मौका।
सितम्बर 5, 2015 at 9:37 अपराह्न
Your ideas is Wrong.
सितम्बर 12, 2015 at 1:22 अपराह्न
लेखक महोदय
मैं आर्य य़ा अनार्य के बारे मे बहुत नहीं जानता आप मुझे बताने का कष्ट करें आर्य किस देश से आये थे?
सितम्बर 12, 2015 at 8:19 अपराह्न
BAHUT ACHHA APNE LIKHA HAI HUMKO BAHUT PASAND AYA AISAHI LEKH LIKHTE RAHE TAKI PANDITO KE POL KHULE AUR MULNIWASI SAMJH SAKE THANKS YOU
सितम्बर 13, 2015 at 11:40 पूर्वाह्न
mai 23year old hu mughe is wewsite ko khogne ki jarurat kya thi ? merai jaisai insan is liye study karta hai ki padkar koi badiya job karenge or apne pariwar mai khushali layega par yaha to ulta hi mila job jaisai tesai milee phir hoti sachai ki khog job ki surat kai deno mai to sab kuch thik tha par jati wad suru hota hai merai sat join karne wale ladko mai keval na to koi salary bad rahi thi or to or sat kam karne wale ladke koi help tak nahi karte the mujhe kuch bhi samag nahi aa raha tha mene us job ko reagani de diya kyuki mugh sai apna saushan bardasht nahi hota sayad ye paurwajau sai mila hoga? ab job ka ta yehei hal hai ek kai bad dausri or dausri kai bad tesri par ye sil sila merai sat jab tak chalega jab tak mai santush nahi ho jata kher merai is jindge ne mujhe sachai janne ke liye magbor kar diya or mane khogna chalu kiya or apne sath ho rahe bhedbhauv kai bare khogna chalu kiya or reasult ye log hai jo (misrsaji ko galat sabit kar rahai hai) kya anter hota ek insaan mai keval sanskar ka ek in jo use uskai pariwar sai milte hai ab usme bhedbhau samil bhi hota hai? merai is lekh mai kuch hi lamhe hai esai hai jinko mai leknai sai nahi rok paya kuyki mai hi nahi na jane kitne hi is sausand ka sikar ho rahe? ………
………………ho rahe is sausand ka sikar hona keval bharat ko di gayi rajniti ka sikar hai jo hame paurwajo sai virasat mai mila hai jisai (God gift kahte is dharm mai) akir kyu ….
….,,…….,.
………….
सितम्बर 14, 2015 at 8:41 अपराह्न
मैं यहाँ निडरता और आत्मविश्वास के साथ खुली चुनौती देता हूँ कि इस कथा के लेखक के विषयवस्तु में जरा भी सच्चाई है तो मुझसे अपने भारत के धार्मिक इतिहास पर विवाद करे मैं वचन देता हूँ कि इस बेबुनियादी लेख के लिखने पर इस लेखक ने शर्मिंदगी जताते हुए अपनी गलती नहीं स्वीकारी तो पूरे दुनिया में आज से मुझ्से बड़ा कोई आर्यों का दुश्मन न होगा । वैसे तो मैं जानता हूँ कि यह लेख लिखा ही सिर्फ इसलिए गया कि लेखक इस बात से परिचित है कि यदि व्यक्ति के धार्मिक आस्था पर कुछ भी अपशब्द कह जाये तो आहत हुए लोग वाद-विवाद करेंगे जरूर,और वही यहां हुआ भी । यह लेख सिर्फ इसलिए लिखा गया है कि इसपर लेखक को खूब सारे comments मिलें जबकि इस लेख में कितनी सच्चाई है यह लेखक भी स्वयं जानता होगा ।
सितम्बर 15, 2015 at 12:45 पूर्वाह्न
Mai writer ko baram bar pranam karta hu jo etne sundar line ko likha etihas me etani gharaeo jakna bhut kathin kam hai
सितम्बर 18, 2015 at 8:47 अपराह्न
indra ko bhagavan ki ginti me nahi lana chahiye!
सितम्बर 29, 2015 at 11:36 पूर्वाह्न
We salute Shri Krishna Kumar Mishra.
अक्टूबर 2, 2015 at 10:10 अपराह्न
किसी कुत्सित व्यक्ति का प्रलाप मात्र है जिसने इतिहास की कोई बहुत परानी कालबाधित व अमान्य सी किताब भूलवश पढ़ ली है ।
अक्टूबर 8, 2015 at 4:57 अपराह्न
ये नालायक लेखक, क्या इसने चारो वेदों में से कोई एक वेद पढ़ा है, अगर एक वेद भी पढ़ा होता तो ऐसी जाहिलों वाली बात ना करता।
श्रीमान लेखक जी, शायद आपने रामायण नहीं पढ़ा है।
आपको सलाह है पहले रामायण पढ़िए क्योंकि रामायण में भी आर्यों का जिक्र आया है
और डॉक्टर साहिबा, आप नाम के आगे डॉक्टर लगाना छोड़ दीजिये, क्योंकि नकली सर्टिफिकेट के साथ ऐसा नहीं करते।
अक्टूबर 9, 2015 at 3:12 अपराह्न
Sach bat he
अक्टूबर 21, 2015 at 2:39 अपराह्न
m k k mishra ji apka lekh pada bahut acha laga badkismati se me b arya hi hu ab jaisa apne bataya sind ek viksit sabhyta thi or hum arya bahar se aaye or yaha ki sabhyata ko nast kiya yaha k logo kosudra banaya or samaj ko chaar bhago m bata or yaha k mul sindhu sabhyata k kai logo ko jo dravid jaati k the dakshin m bhagaya or un par apna hindu dharm thopa jis m kai aarajaktaye h jaise chaar jaatiya tantra mantra jaadu tona pashu bali pratha m aapki is baat se sahmat hu ab jara itihaaskaaro k sindhu jo ki dravid sabhyata thi uske baare m sabboto k adhar pa kya parirham h padiyega m neeche likh k bata raha hu
अक्टूबर 21, 2015 at 4:32 अपराह्न
agar aap m nistha h to pura jarur padiyega varna m sochunga ap sachaai nahi sweekarna chate ho to kumar ji itihaaskaro ke anusaar bharat k pracheentam manav nigroid the jo africa ke mul the 6000 bc m bloochistan (present in near pakistaan) me kheti ka kaam suru hua 5000 bc m mosopotamiya me sabhyata viksit hui or 4000 bc m india m dravidian jo bhu madhya sagriiy nivasi bas gae koi ine iraak ka nivaasi b batate h kyo ki sindh or mosopotamiya ki sabhyata m kaafi samanta milti h 3500 bc me sindhu m sabhyata ka uday 1700bc ye nast ho gai 1500 bc aarya yaha aaye or bas gaye shayad aarya yaha do baar aaye ab shrimaan misra ji jaasa ki apka kahna h ki aarya yaha baahar se aaye fali fuli sindh ghati ko nast kiya or yaha k mool dravid nivasiyo ko sudra banaya or samaj chaar bhaago m baata oR apna hindu dharm in par jabardasti thopa or tantra mantra jaadu tona andhvishvaas failaa ne lage or bali jasi kupratha failane lage ji theek par jara gor se padiyega agar himmat h to itihaaskaro ke sabooto k aadhar par sindh k log jo dravid the unki dharmic shaali ko jaaniye apka tathya h aaryo ne yaha akar samaj chaar varno m bata par itihaaskaaro k anusaar sindhuvsabhyta ka samaaj pahle se 4 bhaago m bata tha kul puroohit ya dharmic guru ki pratha yahi ki den h yaha khudai m yogavastha m baithe shiv ki murti mili h jiske haat m trishul h or jaska vaahan bail h khudaai me bahutayat m ling or yoniya jo shiv ki murti k nikat mile in lingo ko puja jata tha jaisa hindu log karte h vidwaano ne mana h saiv sampraday yahi ki den h sabhyata se swastik or surya chin b mile h jo vishnu ki nisshani hgg mtlb vaishnav sampradaai b yahi suru huaa yaha k log prakriti ko matridevi maankr uski pujaa krte the jaasa ki hindu aadi shakti ko maankr krte h aadi shakti sampraday yahi se suru hua sapt or nav devi puja prachalan yahi ki den h jo aary b krte h yaha ek taambe ki plate mili jh jis m deviyo ke samne bakri ko bali k liye taayar kiya h matlb pashu bali prata yahi suru hui log shavo ko adhiktar jalaaya karte the jo hindu krte h yaha ek or tamra plate mili h jisme ubhri aakriti me shiv k saamne ek aurat ko aag ki taraf jaate dikhaya h jisse maalum hota h yaha sati pratha b rahi hogi haalaki hindu dharm m sati pratha 4000 saal baad aai vo b tab jab yaha hindu dharm se adhik dusre dharmo ka dabdaba tha khudai k k doran bhaari matra m striyo ki murtiya milti h jisse andaja lgta h ki satra matri ke pakhs m hogi par yah puri tarah sidh nahi h striyo ki murtiyo me adhiktar ke sar kate milte h jisse pata chalta h ki naari ki bali b yaha hoti hogi par ye nischit b nahi h khudaai me havan kund b badi matra m mile h matalab yagy pratha yahi se suru hui jo hindu b krte h or yahase diye aadi b milte h jo hondu b jalate h yaha ke log sarswati nadi ki puja krte the vriksh n pashu puja b krte the jo hindu v krte the yaha se bhaari maatra m taavij or tantric kriyaao ka saaman b mila h matlb yaha jaadu tone or andhvishvas ka b prachalan tha yaha parda pratha or vaisyavriti b thi jis aadhar par vidwaano ne ye mana h ki hindu dharm dravido ka mul dharm tha jise baad m aaryo ne b apna liya tha matlb hamare jis dharm me jitni b burraiya h wo sab hamne apse seeki h m maanta hu ki aaryo ne samaj chaar bhago me bata par ye tarika b hamne aap sindhu vaasiyo ya dravifo se seekha apka samaj hamare aane se pahle hi chaar hisso m bata tha bas hmne itna antar kiya ki jis uche pad par aap log the apko waha se neeche ke pad par khadeda or khud us par baith gaye jaha tak hindu dharm thope jaane ki baat h to wo apka apna dharm tha or us m jitni burraiya h wo dravid samaj m pahle se thi iska matlab ham haaramkhor aaryo ne ye haaramkhori aap mool bhartiy dravido se hi seekhi h isliye hamse pahle koi haaramkhor h to wo aap dravid log ho kyo ki hm to baaahar se aaye h aj jab hindu dharm m buraiya aai h to aap use kaval ham par thopna chahte h to apse bada haramkhor or kon hoga kumar ji jin buraiyo ki vajah se aap hame gaaliya de rahe to hamse pahle to apko sarm krni chaahiye suru to ye sb apne kiya or ap shayad ye jante b h phir b anjaan bnne ki koshis kr rahe or ha leacthure mat dijiyega pahle khud k hi samaj pr sharm karo hame baad m sunaaiye or jaha tak bahar se aane ki baat h to dravid bi irrak or bhu madhyasagar se akar yaha base huye or is baat ke saboot b mile h atha bharat ke mool nivaasi to nigro jaati k the ab jb aap khud hi bahar se aaye h to hame hidayat mat dijiega kyo is desh m her koi baahar se aaya h
अक्टूबर 21, 2015 at 9:05 अपराह्न
ये भ्भ जानिये कि आर्यों के आने से पूर्व भी सिंधु सभ्यता का समाज चार भागों में पहले से बंटा था कुल पुरोहित या धर्म गुरु परंपरा यही से शुरू हुई थी द्रविण लोग पहले से ही जादू टोना अन्धविश्वाश तंत्र मन्त्र जैसी चीजो में विश्वाश करते थे बाली प्रथा भी यही की देंन है इस समाज मैं पर्दा प्रथा वेश्या वृत्ति भी मौजूद थी निश्चित तो नहीं पर संभवतः सती प्रथा भी यहाँ थी हालांकि आर्यो की सभ्यता में सती प्रथा 4000 वर्षों के बाद आई वो भी तब जब वेदों की शिक्षा से अधिक बौद्ध शिक्षा के का प्रभाव अधिक था इसलिए सटी प्रथा को आर्यो की सभ्यता की दें तो नहीं कहा जा सकता पर हिन्दू धर्म में ये सुरु हुई थी ये कहा जा सकता है विद्वानों के अनुसार हिन्दू धर्म द्रविणं लोगो का मूल धर्म था जिसे बाद में आर्यो ने भी अपना लिया था एवम आर्यों के व दरविनो या सिंधु वासियों के धार्मिक शैलियां एवं तृतीय लगभग एक ही जैसी थी अतः पूर्णरूप से केवल आर्यों को ही हारामखोर कहना उचित नहीं होगा बल्कि सिंधु सभ्यता के मूल निवासी भी हरामखोर थे और आर्यो से पहले वो ही हारामकगोर थे हरामखोर थे क्यों की आर्यो ने तो उनका ही धर्म अपनाकर उन्हें शुद्र घोसित किया था
अक्टूबर 27, 2015 at 6:08 अपराह्न
अंधविश्वास कि पोल खोलअमरनाथ मे एक गुफा है जिसके उपर सुराख से पानी टप टप टप टप गिरता रहता है जो सर्दी के मौसम मे जम कर लिंग का आकार ले लेता है तो उसे भगवान का लिंग कहा जाता है |मगर switzerland मे ऐसे हज़ारो आकार बनते हैं , Antarctica मे ऐसे लाखों आकार बनते हैं , और आपके मेरे घर के refrigerator मे ऐसे छोटे छोटे लिंग के आकार बनते हैं | आखिर ये सब किसके किसके लिंग हैं ????? और ये सारे लिंग गर्मियों मे क्यों पिघल जाते हैं????आखिर पिछले जनम की याद केवल भारत मे ही क्यों आती है लोगो को???ब्राह्मण भगवान के सर से पैदा हुआ , शत्रिये छाती से,वैश्य पेट से, शुद्र तलवे से तो jews muslim christian किधर से पैदा हुए ???यदि गंगा नदी शिव जी की जटाओ से निकलती है तो यमुना नील अमेज़न तिग्रिस झेलम नदियां किसकी जटाओ से निकलतीहैं ????काल्प्निक देवी देवता लोग clean shave कैसे रहते हैं? Gillete का इस्तेमाल करते हैं क्या ?, मगर ब्र्ह्म्मा की दाढी मूंछ कैसे ???देवी देवता के खूबसूरत ब्लाउज़ साढी सूट परिधान का designer कौन?? फिटिंग कौनसा टेलर करता है ??ये देवी देवता की सवारी केवल भारतिये जानवर शेर हाथी चूहा भैंस ही क्यों ,, विदेशी जानवर कंगारू ज़ेब्रा डायनासौर क्यों नही ??? (क्या डायनासौर के युग के बाददेवी देवता पैदा हो पाये ? )ये देवी देवता के हथियार चाकू तलवार गदा त्रिशूल ही क्यों ? अब तो ज़माना बंदूक मशीन गन का है ,क्या आपको नही लगता के ये प्राचीन पाखंडी लोगों के दिमाग की उपज थी ???? क्योंकि वो भारत मे रहकर विदेशों के जानवर , नदी , परिधान से अंजान थे ..धर्म का आविष्कार केवल शोषण के उद्देश्य से हुआ ,हमारे देश मे लक्ष्मी कुबेर की पुजा होती है मगर हम फिर भी गरीब , जबकि अमरीका अरब अमीर ,हमारे देश मे इन्द्र्देव की पुजा होती है फिर भी हर साल बाड़ सूखा , भूस्खलन आपदा , जबकि यूरोप इंग्लैंड खुशहाल ,हमारे देश मे अन्न की देवी अन्नपूर्णा की पूजा होती है मगर फिर भी लाखों किसान भुखमरी से आत्महत्या करते हैं ,ब्राज़ील रूस का किसान खुशहाल ,विद्या की देवी सरस्वती की पुजा हमारे देश मे होती हैफिर भी हम अशिक्षा से ग्रस्त , जबकि अमरीका इंग्लैंड अतिसिक्षित ,हमारे देश मे पुजा पाठ जैसे ढोंग के लिये उत्तराखंड(केदारनाथ) गये तो लाखों भक्तों बच्चों बूड़ो महिलाओं को मार डाला,कभी भक्तों की बस खाई मे गिर जाती है कभी हादसा हो जाता है ,क्या आपको नही लगता के आपके दुआरा धर्म वर्म का पालन सीधे तौर पे राजनेता एवं धर्म के ठेकेदारों को लाभ पहुंचाता है ,??????????यदि पूजा अर्चना करने से आपको मन्न की शांति मिलती हैतो मुल्लाओं को मज़ार दर्गाह , ईसाई को चर्च मे भी तो मन्न की शांति मिलती है ,क्या आपको नही लगता के ये मात्र आपके मस्तिष्क का भ्रम है???? ,आखिर धर्म ने हमे दिया ही क्या है आज तक ????,सुख शांति संपत्ति तो दुनिया के लाखों करोड़ नास्तिकों के पास भी है.कृपया इस मुद्दे पर दिमाग से चिंतन करें , दिल से नही………………[ धर्म नामक भ्रम को इस अत्याधुनिक युग मे यदि जीवित रखा है तो मात्र “राजनीति एवं धंधे ” ने जीवित रखा है ]
फ़रवरी 10, 2016 at 6:43 अपराह्न
Madarchod Muslims, Jews air christian…. Teri maa ke bhosde we aate hai.
अप्रैल 24, 2016 at 10:40 अपराह्न
अप्रिय एवम् म्लेच्छ किष्म के रामनरेश बुद्धाचार्य जी जो की बने बुद्धाचार्य हैं असल में की हो पता नहीं
चलो आपकी बात मान ली की सनातन धर्म के वेद पुराण सब कल्पित हैं तो क्या और बाकी धर्मग्रन्थ कल्पित नहीं हैं उनमे भी ऐसे ही अटकलें लगाईं गई हैं जैसा की वेद पुराणों में
और सर्वप्रथम आप कोई ऐसी बात करते ही नहीं हैं जो तर्क या कसौटी पर खरी उतरती है
अभी आपने खुद ही ऊपर लिखा है कि
आर्य जब आये तो वो अपने साथ औरतें नहीं लाये थे तो फिर ये दुर्गा कहाँ से आ गई इससे ही ये सिद्ध हो जाता है की आप जो भी बोलते हो बिना सोचे समझे बोलते हो
आपकी एक और बात जो आपने कहा है कि गीता उसी की पढ़ी जाती है जिसके हाथ में सुदर्शन हो
बिलकुल गलत ऐसा सिर्फ कुछ समय के लिए प्रतीत होता है अगर ऐसा होता तो सिकंदर कभी अपने ज़माने में सबसे शक्तिशाली हुआ करता था और आज देखो कहा है उसका साम्राज्य किस तरफ है
जरा खुद ही देख लो जिस ने भी जबरदस्ती अपना धर्म मनवाने की कोशिश की है वो खुद ही नष्ट होने की कगार पर पहुच रहे हैं
अगर जिसकी लाठी उसकी भैस ही हर स्थिति का नियम होता तो बुध धर्म इस तरह से पूरी दुनिया में नहीं फैलता उन्होंने तो लाठी या तलवार के दम पर कभी अपना ग्रन्थ नहीं पढ़वाया फिर भी पूरी दुनिया ने उसे पढ़ा
इससे आपकी ये टिपण्णी बिलकुल गलत साबित हो जाती है कि गीता उसकी ही चलती है जिसका सुदर्शन
क्यों अगर ऐसा होता तो आपकी हिम्मत नहीं होती कोई भी इस तरह का कॉमेंट करने की
पर आप फिर भी कर रहे हैं इसका मतलब ऐसा होता ही नहीं है
दूसरी बात जातक कथा वाले सांड की जो आपने कही है तो उस सांड को लोगों ने इसलिए मारा क्यों की वो मूर्ख था
क्यों शान्ति अपनाने या अहिंसक बनने का ये मतलब नहीं किअगर कोई तुम्हे बिना बात के जान से मारने के लिए आये तो भी तुम चुप चाप ही रहो
अहिंसा का अर्थ है की जब तक कोई तुम्हे कोई नुकसान न करे तब तक तुम भी अकारण उसे नुकसान ना पहुँचाओ
वेद भी अहिंसा का उपदेश देते हैं पर वो मार खाने का उपदेश भी नहीं देते हैं
जब तक दूसरा सही है तब तक ही तुम भी सही रहो हर स्थिति में नहीं
एक बात और वो ये की गीत कभी जबरदस्ती नहीं पढ़वाई गई क्यों की अगर ऐसा होता तो बौद्धों को भी जबरदस्ती गीत पढ़वाई जाती जबकि ऐसा कुछ नहीं हुआ इससे पता चलता है की आपको इतिहास का कोई ज्ञान ही नहीं है
एक और बात बुद्धाचार्य जी महिष सुर और दुर्गा का जो कल्पित विवरण अपने लिखा है वो शायद ही सच हो
लेकिन शायद आपको पता नहीं की जिन्हें आर्य अनार्य(जिन्हें आप दलितों का पूर्वज मानते हैं) कहते थे उन्हें किसलिए अनार्य कहा जाता था
अगर ऋग्वेद को पड़ोगे तो आपको पता चलेगा की अनार्य किसे कहते थे
क्यों की वो लोग शिशन और योनियों की पूजा उपासना करते थे अब आप समझ ही सकते हैं की जो लोग ऐसा कृत करते है उनका खुद का समाज कैसा रहा होगा आपने दुर्गा के बारे में जो बकवास करनी थी कर दी परंतु जिन्हें आप महिसाशुर के बंफहव मानते है उनका समाज शिक्षण पूजा करता था तो उनकी और उनकी औ$तों की
वृत्ति क्या रही होगी आप खुद सोच सकते हैं
आर्य अनार्यों को क्यों म्लेच्छ कहते थे उसके पीछे यही कारण है अगर यकीन नहीं आता तो नेट पर भी पद लो की ऋग्वेद में वर्णित अनार्यों की वृत्ति क्या थी
उन्हें शिशनदेवा कह कर क्यों पुकार गया है
जो कार्य आप दुर्गा पर थोपना चाहते हैं असल में वो महिषाशुर के समाज में उनकी खुद की औ$$तों की थी
जिस तरह से रावण की माता ने एक ब्राह्मण ऋषि को पटा लिया था
श्रीलंका में आज भी कई वैश्यायें कई अनार्यो की की कुल देवियों को अपनी कुल देवी बताई हैं वो खुद को उन देवियों की कुल का
आनार्य देवियों ने ही सर्वप्रथम शिशन पूजा
का आरम्भ करवाया था इस म्लेच्छ वृत्ति का आर्यों ने घोर विरोध भी किया था क्यों की इस वृत्ति से लोगो के धोके खाने की संभावना थी
अगर मुझ पर यकीन ना हो तो एक बार ऋग्वेद जरूर पढियेगा उसमे अनार्यों को शिशन देवा कहा गया है यानी लिंग पूजक
और इसी कारण आर्य अनार्यों को म्लेच्छ कहते थे
बदकिस्मती से आज आर्यों के के ग्रन्थ शत्रुओं द्वारा नष्ट कर लोए गए नहीं तो बहुत कुछ जानने के लोए था
अक्टूबर 28, 2015 at 2:01 पूर्वाह्न
रामनरेश बुधाचार्य जी सर्वप्रथम आपको नमस्कार आप जैसे कल्पना नायक को क्यों की जिस तरह आप काल्पनिक कथाये बनाते है आपको तो अवॉर्ड मिलना चाहिए आप किसी फ़िल्म निर्माता के लिए अच्छी सी काल्पनिक कहानी क्यों नहीं बना लेते जैसी की आपके कही बकवास लिखी हैं जिनमे से एक भी बात सही साबित नहीं होती
आपकी बात no1 की आर्य बहार से भारत आये मुझे एक बात बताइये दुनिया म और भी जातियां थी तो सिर्फ आर्यो को ही भारत आने का शौक क्यों चढा ?
आपकी बात नो 2 आर्य एक खूंखार जाती थी और वो यूरेशिया के लोगो का विनाश कर रही थी जिससे वह के लोगो ने उन्हें वहाँ से भारत में भगा दिया
अब जरा विचार करिये जो जाती इतनी सक्षम थी की वह के लोगो को मार सकती थी फिर वहाँ के लोगो ने इस शक्तिशाली जाति को वह ऐ कैसे भगा दिया
आपकी बकवास no 3 की आर्य बिना ओरतो के आये थे यदि ऐसा है तो आर्यो का वंशागे कैसे बढ़ गया और यदि इन्होंने मूल भारतीयो की नारियो पर कब्ज़ा कर अपना वंश बढाया तो मूल भारतीयो का वंश कैसे बडा और वो कैसे आज भी जीवित हैं
बकवास no4 आर्यो ने यहाँ के लोगो पर हिन्दू धर्म थोपा
सब झूठ हिन्दू धर्म आर्यो के आने से पूर्व ही द्रविण और मूल भारतीयों का मूल धर्म था और आर्यो के जितने देवी देवता थे उन सबकी मूर्तियां या उनके चिन्ह व् उनकी पूजा के तरीके सिंधु सभ्यता में पहले ही मौजूद थे
और ये मेरी कोई काल्पनिक कथा नहीं है आपकी तरह
बकवास no5 आर्यो नेसिन्धु सभ्यता के शहर नष्ट किये
जरा ये बताइये की अगर आर्यो ने सिंधु के शहर नष्ट किये तो ये शहर जमीन के नीचे दबे हुएकैसे मिल गए ? अब क्या आप अपनी बात को सही साबित करने के लिए ये कहेंगे की आर्य यूरशिया से अपने साथ बहुत साड़ी मिट्टी भी लेके आये थे और इस मिट्टी से उन्होंने सिंधु सभ्यता के बड़े बड़े शहरो को मिट्टी के नीचे दबा दिया और इसके ऊपर खुद रहने लगे
बुधचर्य जी भगवानको में भी नहीं मानता और ना ही पूजा और कर्म कांडा में मानता हु पर आपसे एक बात् पूछना चाहूँगा .। हिन्दू धर्म द्रविण का मूल भारतीयो का धर्म ह जो आर्यो ने अपना लिया था तो फिर हिन्दू धर्म की खामियों के लिए केवल आर्यो को ही क्यों दोषी माना जाताहै केवल ईन्हें ही क्यों दुत्कारा जाता है
आप बुधः धर्म के अनुयायी लगते है बुधचर्य जी तो आप सोचते है की की वो अहिंसक साधू के रूप में रहते थे भिक्षा मांग के खाते थे तो वो वैसे ही रहे होंगे किन्तु सच्च तो ये है की बौद्ध सबसे बड़े चोर लुटेरे थे जो दिन केमें लोगो के सामने साधू का वेश बनाते थे और रात को भेष बदलकर तलवार व् चाक़ू लेकर नगरो में लूटपाट किया करते थे इसके प्रमाण भी हे सब जानते है की बौद्ध मठ व् विश्वविद्यालय विश्व में सबसे बड़े विशाल और समृद्ध थे और बौद्धधर्माचार्य सबसे सम्पन्न थे अब जरा मुझे बताइये जो भिक्षा मांग कर अपनी जीविका चलते थे उनके पास इतनी धन सम्पडा कहा से आ गयी महाशय कहने के लिए हमारे पास भी बहुत कूछ है पर हम किसी के सम्मानपर कीचड़ नहीं डालना चाहते
एक बात मुझे बताइये अगर आप और मिश्र जी वास्तव मै केवल धर्म के नाम पर होने वाले कुरीतियो के खिलाफ ह तो दुनिया मई बाकी धर्मभि है उन म भी कुरीतिया है तोआप उनके बारे में क्यों नई लिखते अगर आप वास्तवमे सम्माज से कुरीतिया हटाना चाहते है तो में आपके साथ हु हर एक आर्यभी आपके साथ है पर आप यदि केवल इसका सहारा लेकर किसी विशेष जाती को ही अपमानित करना चाहते है तो आप से नीच है और याद रखे जिन दुर्गुणों के लिए आप आर्यो को दोषी मानते हे वो दुर्गुण आर्यो ने आप से ही सीखे है
और जाह तक बाहर से आने की बात हो तो नीग्रो जाती को छोड़कर बाकी सब जातियां चाहे वो आर्य हो अनार्य हो द्रविण हो भील हो चाहे कोल हो इस भारत में बहार से ही आई है और ये मेरी काल्पनिक कहानिया नही है प्रमाणित सत्य है और एक और बात बुद्धाचार्य जी आपने जो आर्यो के बारे में खुला संभोग करने या करवाने की घटिया बात कही है हो सकता है ये आपके लोगो की वृत्ति हो आपके समाज के लोगो की वृत्ति हो सकती है कृपया इस वृत्ति को किसी और पर ना थोपे
अक्टूबर 28, 2015 at 8:55 पूर्वाह्न
प्रिय सुधीरकुमार रावत जी
हम कल्पनाओं पर विश्वास नहीं करते हैं, जो बात तर्क की कसौटी पर खरी उतरती है हम उसको मानते है। चाहे वह बात. आपके द्वारा कही गयी या किसी और के द्वारा हम विश्वास करते हैं सनातन धर्म के जितने वेद पुराण हैं सब कल्पित हैं इनमें मानव से अधिक सम्मान जानवरों को दिया गया है। जिस तरह से श्रष्टि की रचना ब्रह्मा से बताई गयी है, क्या यह कल्पना नहीं है?
शक्तिके विविध रूपों,यथा योग्यता,बल,पराक्रम,सामर्थ्य व ऊर्जा की पूजासभ्यता के आदिकालों से होती रही है। न केवल भारत में बल्कि दुनिया के तमामइलाकों में। दुनिया की पूरी मिथॉलॉजी के प्रतीक देवी-देवताओं केतानों-बानों से ही बुनी गयी है। आज भी शक्ति का महत्व निर्विवाद है।अमेरिका की दादागीरी पूरी दुनिया में चल रही है,तो इसलिए कि उसके पास सबसेअधिक सामरिकशक्ति और संपदा है। जिसके पास एटम बम नहीं हैं,उसकी बात कोईनहीं सुनता,उसकी आवाज का कोई मूल्य नहीं है। गीता उसकी सुनी जाती है,जिसके हाथ में सुदर्शन हो। उसी की धौंस का मतलब है औरउसी की विनम्रता काभी। कवि दिनकर ने लिखा है:‘क्षमा शोभती उस भुजंग को जिसके पास गरल हो,उसको क्या जो दंतहीन,विषहीन,विनीत,सरल हो।’दंतहीन और विषहीनसांप सभ्यता का स्वांग भी नहीं करसकता। उसकी विनम्रता,उसका क्षमाभाव अर्थहीन हैं। बुद्ध ने कहा है–जोकमजोर है,वहठीक रास्ते पर नहीं चल सकता। उनकी अहिसंक सभ्यता में भीफुफकारने की छूट मिली हुई थी। जातक में एक कथा में एक उत्पाती सां�� केबुद्धानुयायी हो जाने की चर्चा है। बुद्ध का अनुयायी हो जाने पर उसने लोगोंको काटना-डंसना छोड़ दिया। लोगों को जब यह पता चल गया कि इसने काटना-डंसनाछोड����� दिया है,तो उसे ईंट-पत्थरों से मारने लगे। इस पर भी उसने कुछ नहींकिया। ऐसे लहू-लुहान घायल अनुयायी से बुद्ध जब फिर मिले तो द्रवित हो गयेऔर कहा‘मैंने काटने के लिए मना किया था मित्र,फुफकारने के लिए नहीं।तुम्हारी फुफकार से ही लोग भाग जाते।’भारत में भी शक्ति की आराधनाका पुरानाइतिहास रहा है।लेकिन यह इतिहास बहुत सरल नहीं है। अनेक जटिलताएं और उलझाव हैं। सिंधुघाटी की सभ्यता के समय शक्ति का जो प्रतीक था,वही आर्यों के आने के बादनहीं रहा। पूर्व वैदिक काल,प्राक् वैदिक काल और उत्तर वैदिक काल में शक्तिके केंद्र अथवा प्रतीक बदलते रहे। आर्य सभ्यता का जैसे-जैसे प्रभाव बढ़ा,उसके विविध रूप हमारे सामने आये। इसीलिए आज का हिंदू यदि शक्ति के प्रतीकरूप में दुर्गा या किसी देवी को आदि और अंतिम मानकर चलता है,तब वह बचपनाकरता है। सिंधु घाटी की जो अनार्य अथवा द्रविड़ सभ्यता थी,उसमें प्रकृतिऔर पुरुष शक्ति के समन्वित प्रतीक माने जाते थे। शांति का जमाना था।मार्क्सवादियों की भाषा में आदिम साम्यवादी समाज के ठीक बाद का समय।सभ्यता का इतना विकास तो हो ही गया था कि पकी ईंटों के घरों में लोग रहनेलगे थे और स्नानागार से लेकर बाजार तक बन गये थे। तांबई रंग और अपेक्षाकृतछोटी नासिका वाले इन द्रविड़ों का नेता ही शिव रहा होगा। अल्हड़ अलमस्तकिस्म का नायक। इन द्रविड़ों की सभ्यता में शक्ति की पूजा का कोई माहौलनहीं था। यों भी उन्नत सभ्यताओं में शक्ति पूजा की चीजनहीं होती।शक्ति पूजा का माहौल बनाआर्यों के आगमन के बाद। सिंधुसभ्यता के शांत-सभ्य गौ-पालक (ध्यान दीजिए शिव की सवारी बैल और बैल कीजननी गाय) द्रविड़ों को अपेक्षाकृत बर्बर अश्वारोही आर्यों ने तहस-नहस करदिया और पीछे धकेल दिया। द्रविड़ आसानी से पीछे नहीं आये होंगे। भारतीयमिथकों मे जो देवासुर संग्राम है,वह इन द्रविड़ और आर्यों का ही संग्रामहै। आर्यों का नेता इंद्र था। शक्ति का प्रतीक भी इंद्र ही था। वैदिकऋषियों ने इस देवता,इंद्र की भरपूर स्तुति कीहै। तब आर्यों का सबसे बड़ादेवता,सबसे बड़ा नायक इंद्र था। वह वैदिक आर्यों का हरक्युलस था। तब किसीदेवी की पूजा का कोई वर्णन नहीं मिलता। आर्यों का समाज पुरुष प्रधान था।पुरुषों का वर्चस्व था। द्रविड़ जमाने में प्रकृति को जो स्थान मिला था,वहलगभग समाप्त हो गया था। आर्य मातृभूमि का नहीं,पितृभूमि का नमन करने वालेथे। आर्य प्रभुत्व वाले समाज में पुरुषों का महत्व ल���बे अरसे तक बना रहा।द्रविड़ों की ओर से इंद्र को लगातार चुनौती मिलती रही।गौ-पालक कृष्ण का इतिहाससे यदि कुछ संबंध बनता है,तोलोकोक्तियों के आधार पर उसके सांवलेपन से द्रविड़ नायक ही की तस्वीर बनतीहै। इस कृष्ण ने भी इंद्र की पूजा का सार्वजनिक विरोध किया। उसकी जगह अपनीसत्ता स्थापित की। शिव को भी आर्य समाज ने प्रमुख तीन देवताओं में शामिल करलिया। इंद्र की तो छुट्टी हो ही गयी। भारतीय जनसंघ की कट्टरता से भारतीयजनता पार्टी की सीमित उदारता की ओर और अंतत: एनडीए का एक ढांचा,आर्यों कासमाज कुछ ऐसे ही बदला। फैलाव के लिए उदारता का वह स्वांग जरूरी होता है।पहले जार्ज और फिर शरद यादव की तरह शिवको संयोजक बनाना जरूरी था,क्योंकिइसके बिना निष्कंटक राज नहीं बनाया जासकता था। आर्यों ने अपनी पुत्रीपार्वती से शिव का विवाह कर सामंजस्य स्थापित करने की कोशिश की। जब दोनोंपक्ष मजबूत हो तो सामंजस्य और समन्वय होता है। जब एक पक्ष कमजोर हो जाताहै,तो दूसरा पक्ष संहार करता है। आर्य और द्रविड़ दोनों मजबूत स्थिति मेंथे। दोनों में सामंजस्य ही संभव था। शक्तिकी पूजा का सवाल कहां था?शक्तिकी पूजा तो संहार के बाद होती है। जो जीत जाता है वह पूज्य बन जाता है,जोहारता है वह पूजक।हालांकि पूजा का सीमित भावसभ्य समाजों में भी होताहै,लेकिन वह नायकों की होती है,शक्तिमानों की नहीं। शक्तिमानों की पूजाकमजोर,काहिल और पराजित समाज करता है। शिव की पूजा नायक की पूजा है। शक्तिकी पूजा वह नहीं है। मिथकों में जो रावण पूजा है,वह शक्ति की पूजा है।ताकत की पूजा,महाबली की वंदना।लेकिन देवी के रूप मेंशक्ति की पूजा का क्या अर्थ है?अर्थ गूढ़ भी है और सामान्य भी। पूरबी समाज में मातृसत्तात्मक समाजव्यवस्था थी। पश्चिम के पितृ सत्तात्मक समाज-व्यवस्था के ठीक उलट। पूरबसांस्कृतिक रूप से बंग भूमि है,जिसका फैलाव असम तक है। यही भूमि शक्तिदेवी के रूप में उपासक है। शक्ति का एक अर्थभग अथवा योनि भी है। योनिप्रजनन शक्तिका केंद्र है। प्राचीन समाजों में भूमि की उत्पादकता बढ़ानेके लिए जो यज्ञ होते थे,उसमें स्त्रियों को नग्न करके घुमाया जाता था।पूरब में स्त्री पारंपरिक रूप से शक्ति की प्रतीक मानी जाती रही है। इसपरंपरा काइस्तेमाल ब्राह्मणों ने अपने लिए सांस्कृतिक रूप से किया।गैर-ब्राह्मणों को ब्राह्मण अथवा आर्य संस्कृति मे शामिल करने का सोचा-समझाअभियान था। आर्य संस्कृति का इसे पूरब में विस्तार भी कह सकते हैं।विस्तार के लिए यहां की मातृसत्तात्मक संस्कृति से समरस होनाजरूरी था।सांस्कृतिक रूप से यह भी समन्वय था। पितृसत्तात्मक संस्कृति सेमातृसत्तात्मक संस्कृति का समन्वय। आर्य संस्कृति को स्त्री का महत्त्वस्वीकारना पड़ा,उसकी ताकत रेखांकित करनी पड़ी। देव की जगह देवी महत्वपूर्णहो गयी। शक्ति का यह पूर्व-रूप (पूरबी रूप) था जो आर्य संस्कृति के लिएअपूर्व (पहले न हुआ) था।महिषासुर और दुर्गा के मिथक क्या है?लेकिनमहिषासुर और दुर्गा के मिथक हैं,वह क्या है?दुर्भाग्यपूर्ण है कि अब तकहमने अभिजात ब्राह्मण नजरिये से ही इस पूरी कथा को देखा है। मुझे स्मरण है1971में भारत-पाक युद्ध और बंग्लादेश के निर्माण के बाद तत्कालीन जनसंघनेता अटलबिहारी वाजपेयी ने तब की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को अभिनव चंडीदुर्गा कहा था। तब तक कम्युनिस्ट नेता डांगे सठियाये नहीं थे। उन्होंनेइसका तीखा विरोध करते हुए कहा था कि‘अटल बिहारी नहीं जान रहे हैं कि वहक्या कह रहे हैंऔर श्रीमती गांधी नहीं जान रही हैं कि वह क्या सुन रहीहैं। दोनों को यह जानना चाहिए कि चंडी दुर्गा दलित और पिछड़े तबकों कीसंहारक थी।’डांगे के वक्तव्य के बाद इंदिरा गांधी ने संसद में ही कहा था‘मैं केवल इंदिरा हूं और यही रहना चाहती हूं।’महिषासुर और दुर्गा की कथाका शूद्र पाठ (और शायदशुद्ध भी) इस तरह है। महिषका मतलब भैंस होता है। महिषासुर यानी महिष काअसुर। असुर मतलब सुर से अलग। सुर का मतलब देवता। देवता मतलब ब्राह्मण यासवर्ण। सुर कोई काम नहीं करते। असुर मतलब जो काम करते हों। आज के अर्थ मेंकर्मी। महिषासुर का अर्थ होगा भैंस पालने वाले लोग अर्थात भैंसपालक। दूध काधंधा करने वाला। ग्वाला। असुर से अहुर फिर अहीर भी बन सकता है। महिषासुरयानी भैंसपालक बंग देश के वर्चस्व प्राप्त जन रहे होंगे।नस्ल होगीद्रविड़। आर्य संस्कृति के विरोधी भी रहे होंगे। आर्यों को इन्हें पराजितकरना था। इन लोगों ने दुर्गा का इस्तेमाल किया। बंग देश मेंवेश्याएंदुर्गा को अपने कुल का बतलाती हैं। दुर्गा की प्रतिमा बनाने में आज भीवेश्या के घर से थोड़ी मिट्टी जरूर मंगायी जाती है। भैंसपालक के नायकमहिषासुर को मारने में दुर्गा को नौ रात लग गयी। जिन ब्राह्मणों ने उन्हेंभेजा था,वे सांसरोक कर नौ रात तक इंतजार करते रहे। यह कठिन साधना थी। बलनहीं तो छल। छल का बल। नौवीं रात को दुर्गा को सफलता मिल गयी,उसनेमहिषासुर का वध कर दिया। खबरमिलते ही आर्यों (ब्राह्मणों) में उत्साह कीलहर दौड़ गयी। महिषासुर के लोगों पर वह टूट पड़े और उनके मुंड (मस्तक)काटकर उन्होंने एक नयी तरह की माला बनायी। यही माला उन्होंने दुर्गा के गलेमें डाल दी। दुर्गा ने जो काम किया,वह तो इंद्र ने भी नहीं किया था।पार्वती ने भी शिव को पटाया भर था,संहार नहीं किया था। दुर्गा �����े तो अजूबाकिया था। वह सबसे महत्��्��पूर्ण थीं। सबसे अधिक धन्या शक्ति का साक्षातअवतार!ल
अक्टूबर 30, 2015 at 12:45 अपराह्न
tmaa isai samuday ke log mishra tripathi nam se lekh likh kar ullu bnate hai
नवम्बर 3, 2015 at 3:10 पूर्वाह्न
मिश्रा जी आपकी तुलना उन साहित्यकार बन्धुओं से की जा सकती है जो आजकल पुरस्कार लौटाते हुए गर्व महसूस कर रहे हैं।आपने जिन को हरामखोर कहा है उन्होंने ही आपके और मेरे क्या हम सबके पुरखों को सभ्यता सिखाई थी।अधकचरे ज्ञान का भंडार है आपका ये लेख जो आपने किसी भारत विरोधी व्यक्ति से प्रभावित होकर लिख मारा है।गुलाम सोच से बाहर निकलो और अपने वतन पे गर्व करना सीखो ताकि दुबारा गुलाम नहीं होना पड़े।
नवम्बर 3, 2015 at 3:43 पूर्वाह्न
बेकार लेख है।हटाओ इसको
नवम्बर 10, 2015 at 3:58 अपराह्न
Hanara desh ek jhuti kahani aur vhagvan ki manshik gulami ka Aadar ban gya h.Agar sach m vhagvan h.To pir hamare desh m gareebee kyo h etc………?
नवम्बर 14, 2015 at 3:20 अपराह्न
सर्वप्रथम तो आपको हमारे सनातन धर्म पर इतना शोध करने के लिए धन्यवाद क्योंकि हमारा सनातन धर्म सिखाता है की जो मनुष्य जितना अज्ञानी मूर्ख और शील रहित है उससे उतना ही प्रेम करो क्योंकि वो तुम्हारी दया के योग्य है चूँकि अब हड़प्पा और मोहनजोदड़ो की सभ्यता मिलने के बाद पश्चिम के लोगो को समझ आ चूका है की सनातन धर्म ही सम्पूर्ण प्राणी जगत का उद्भव है या कहे ओरिजिन है,! इसलिए मुझे आपकी सनातन धर्म के प्रति कुंठित रूचि देख कर सहानभूति हो रही है।
नवम्बर 18, 2015 at 6:30 अपराह्न
HAR HAR MHADEV aap log itne gyanwan hai . par bato se lagta hai ki itihas se anjan hai ,hamare vishvvidyalay NALANDA aur TAKASHYASHILA KO MUGALO ne 1370 ke aas pass bakhtiyar khilje ne nast kr diya tha . wo samay hamare dharm ke patan ka tha . jo gyan bacha hai wo kaulantak shakti peath himalay me hai . rahe bat aarya ko gali dene ki to bhai shahab maryada purshootam ram ko aarya putra khte the . aur jyada gyan ki jarurat hai to 9926199123 me mujhse bat kro हिंदू धर्म (Hinduism) को सनातन धर्म या आर्य धर्म भी कहते हैं। आर्यों ने ही वेदों की रचना की थी। कुछ विद्वान मानते हैं कि आर्य नाम की कोई जाति थी और कुछ का मानना है आर्य कोई जाति नहीं बल्कि यह उन लोगों का समूह था जो खुद को आर्य कहते थे और जिनसे जुड़े थे भिन्न-भिन्न जाति समूह के लोग।
भारत में आर्य समाज ( Arya Samaj ) के लोग इसे आर्य धर्म कहते हैं, जबकि आर्य किसी जाति या धर्म का नाम न होकर इसका अर्थ सिर्फ ‘श्रेष्ठ’ ही माना जाता है। अर्थात जो मन, वचन और कर्म से श्रेष्ठ है वही आर्य है ( Aryan Means)।
इस प्रकार आर्य धर्म का अर्थ श्रेष्ठ समाज का धर्म ही होता है। प्राचीन भारत को आर्यावर्त भी कहा जाता था जिसका तात्पर्य श्रेष्ठ जनों के निवास की भूमि था।
महाकुलकुलीनार्यसभ्यसज्जनसाधव:। -अमरकोष 7।3
अर्थात : आर्य शब्द का प्रयोग महाकुल, कुलीन, सभ्य, सज्जन, साधु आदि के लिए पाया जाता है।
सायणाचार्य ने अपने ऋग्भाष्य में ‘आर्य’ का अर्थ विज्ञ, यज्ञ का अनुष्ठाता, विज्ञ स्तोता, विद्वान् आदरणीय अथवा सर्वत्र गंतव्य, उत्तमवर्ण, मनु, कर्मयुक्त और कर्मानुष्ठान से श्रेष्ठ आदि किया है।
आदरणीय के अर्थ में तो संस्कृत साहित्य में आर्य का बहुत प्रयोग हुआ है। पत्नी पति को आर्यपुत्र कहती थी। पितामह को आर्य (हिन्दी- आजा) और पितामही को आर्या (हिंदी- आजी, ऐया, अइया) कहने की प्रथा रही है। नैतिक रूप से प्रकृत आचरण करने वाले को आर्य कहा गया है।
कर्तव्यमाचनरन् कार्यमकर्तव्यमनाचरन्।
तिष्ठति प्रकृताचारे स आर्य इति उच्यते।।
प्रारंभ में ‘आर्य’ का प्रयोग प्रजाति अथवा वर्ण के अर्थ में भले ही होता रहा हो, आगे चलकर भारतीय इतिहास में इसका नैतिक अर्थ ही अधिक प्रचलित हुआ जिसके अनुसार किसी भी वर्ण अथवा जाति का व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता अथवा सज्जनता के कारण आर्य कहा जाने लगा।
नवम्बर 23, 2015 at 11:19 पूर्वाह्न
jo bhi bhai lekh likhane wala hai mai haram khor to nahi kahunga kyo ki ye aap ki apani bhasa hai lekin aap se prathana hai ki pahale to sanakrit ko gali mat dena kyo ki sanskrit hamari janani hai snatan dharm usise chalta hai age rahi aaray ki to aap ko bata du ki iska lekh ved puran me bhi hai kyo ki aaray koi samaj nahi hai pahale aaurat apne patti ko aaray bolati thi jo bhasha aap bol rahe ho younani british ayur mugalo lekani ke hisab se bol rahe ho iss liy pahale ved padho jo ki char ved hai
नवम्बर 27, 2015 at 8:30 पूर्वाह्न
लोक सभा 26.11.2015
लोकसभा में गूँजी बामसेफ की बोली !!!!
आज लोग सभा का शीतकाल सत्र शुरू होते ही ग्रुह मंत्री राजनाथ सिंह ने असह्ण्णुश्ता के मुद्दे पर चर्चा करते हुये एक नया बवाल खड़ा कर दिया I राजनाथ सिंह ने बाबा साहब डा आम्बेडकर का जिक्र करते हुये कहा की “डा अम्बेडकर ने भी बहुत मुश्किलों का सामना किया अपमान के बावजूद भी उन्होने कभी भी भारत छोड़कर जाने की बात नहीँ की I ”
जिसपर ऐतराज जताते हुये मूलनिवासी सांसद मल्लिकार्जुन खड्गे जी ने राजनाथ को करारा जवाब देते हुये कहा की “बाबा साहब भारतीय मूलनिवासी थे,उन्होने कभी भी देश छोड़कर जाने की बात नहीँ कही थी I रही बात आपकी आप और आपके पुरखे आर्य थे आर्य लोग विदेशी थे हमारे मूलनिवासी हजारों सालों से आर्यों से लड़ रहें हैं,इसलिये आप सभी को देश छोड़कर चले जाना चाहिये I”
दिसम्बर 13, 2015 at 4:56 अपराह्न
Ravannaresh kubudhicharye ambedker ji ko kyu isme la raha hai unhone tera kya utha liya.
दिसम्बर 13, 2015 at 9:33 अपराह्न
Buddhacharya jI, your sense of history is perverted and idiotic. You are mixing your imagination to a great extent in certain stories and adpating them according to your perverted mindset. Your claim about your studies and logic is absolutely baseless. Only one example will suffice.
You believe Asurs to be aborigines of India. You are such a fool and vain that you do not know that Varun is called Asur in Rigveda and he was considered to be lord of moral values. The Zoroastrians consider their supreme lord to be Ahur Mazada. Ahur originats from Asur and Zoroastrians were in Iran which again was ARYANAK, a land of Aryans.
Asshur was the national God of Assyria.
So your theory about Asurs and their Puranic stories are about aborigines of India are baseless.
So either you are fool along with K.K. Mishra who revel in abusing their own bretheren without knowing anything about Indology or anthropology. World wide also, Micheal Witzel, th biggest propnent of AIT at one time and known Hindu-baiter has started saying, ARYAN is not a race but a language group.
In the international literary circles also, AIT has been discredited and considered to be an invention of Britishers to divide Indians on ethnic lines. And you people are still bathing in rivers of ignorance or are Christian or Muslim proteges with false names to malign the Great Hindu and Bauddh Dharmas.
जनवरी 1, 2016 at 5:55 अपराह्न
तुम धर्मान्तरित ईसाई हो जो हिन्दुओ को तोड़ने ले लिए और हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए झूठ फैला रहे हो।शर्म करो ये मत भूलो के तुम एक आत्मा हो और मरके तो तुमको ऊपर ही जाना है किसी के षड्यंत्र में मत आयो।लालच मत करो।सच्च तुम भी जनता हो की ये एक झूठ है जो अंग्रेजो द्वार फैलाया गया।आर्य कहीं से आये नही थे हम सब सनातनी यहीं के है बल्कि में लोग यहां से बाहर जा कर बसे।अपने आप को पहचानो तुम एक शरीर नही हो जो तुम लालच या भड़कावे में आ जाओ।सच्चे इतिहास को जानो षड्यंत्र में मत आयो।तुम एक षड्यंत्र या तो फसे हुए हो या फैला रहे हो।
फ़रवरी 10, 2016 at 6:40 अपराह्न
Harami his thali me khta usme chhed karta hai…. Bhag bhosdike Katie ki aulaad katua videhi hai…. Arya bhartiya
दिसम्बर 3, 2015 at 4:30 अपराह्न
BHOSHDI KE YAHA JO MAHAN RAHE HAI UNHE ARYA KAHA GAYA HAI YAHA KOI ARYA JATI NAHI RAHI
दिसम्बर 6, 2015 at 2:48 पूर्वाह्न
राजनाथ सिंह का बयां ठीक ही था क्यों की आंबेडकर के पुरखे भी इस देश में विदेशी हैं
हाँ
हमें कभी नहीं भूलना चाहिए क़ि जॉन पिग्गत ने ये प्रूफ दिया है की आर्यो से पहले इस देश पर द्रविड़ों (वर्तमान शुद्र )का आक्रमण हुआ था और द्रविड़ों ने यहाँ की मूल जाती आदिवासियों को अछूत बनाया था और फिर आर्यो का आक्रमण द्रविड़ों पर हुआ और आर्यो ने उन्हें अछूत बनाया अब अगर शुद्र व्हीलर का आर्य आक्रमण सिद्धान्त सही मानते है तो आपको उसका द्रविड़ आक्रमण सिद्धांत भी सही मानना चाहिए और आर्यो से पहले द्रविड़ लोगो को ये देश छोड़ कर जाना चाहिए क्यों की मूल निवासी आदिवासियों के पुरखे सालो पहले से द्रविड़ों से लड़ते आ रहे है
हमें कअभी नहीं भूलना चाहिए की पिग्गत ने ये सिद्ध किया था की द्रविड़ जाती के कंकाल भारत में सिर्फ 4500 साल पुराने है बाकी इससे प्राचीन उनकी कोई कंकाल यहाँ नहीं मिलते इससे पता चलता है की वो विदेश से आकर यहाँ बसे थे अतः शूद्र भी विदेशी है तो हमसे पहले आपको अपने देश भूमध्य सागर लौटी जाना चाहिये इस देश की मूल जाती प्राचीन आदिवासी हैं द्रविड़ या दलित नहीं
दिसम्बर 6, 2015 at 8:34 अपराह्न
अगर आर्य हरामखोर थे तो आप क्या हैं़धर्म अधर्म. पाप पुण्य सदा से है और रहेगा़देश का प्राचिन नाम आर्यवर्त है़
दिसम्बर 7, 2015 at 10:47 अपराह्न
http://www.dw.com/hi/%E0%A4%86%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%AF-%E0%A4%94%E0%A4%B0-%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A1%E0%A4%BC-%E0%A4%8F%E0%A4%95-%E0%A4%B9%E0%A5%80-%E0%A4%A5%E0%A5%87/a-4725274
दिसम्बर 13, 2015 at 9:31 अपराह्न
Buddhacharya jI, your sense of history is perverted and idiotic. You are mixing your imagination to a great extent in certain stories and adpating them according to your perverted mindset. Your claim about your studies and logic is absolutely baseless. Only one example will suffice.
You believe Asurs to be aborigines of India. You are such a fool and vain that you do not know that Varun is called Asur in Rigveda and he was considered to be lord of moral values. The Zoroastrians consider their supreme lord to be Ahur Mazada. Ahur originats from Asur and Zoroastrians were in Iran which again was ARYANAK, a land of Aryans.
Asshur was the national God of Assyria.
So your theory about Asurs and their Puranic stories are about aborigines of India are baseless.
So either you are fool along with K.K. Mishra who revel in abusing their own bretheren without knowing anything about Indology or anthropology. World wide also, Micheal Witzel, th biggest propnent of AIT at one time and known Hindu-baiter has started saying, ARYAN is not a race but a language group.
In the international literary circles also, AIT has been discredited and considered to be an invention of Britishers to divide Indians on ethnic lines. And you people are still bathing in rivers of ignorance or are Christian or Muslim proteges with false names to malign the Great Hindu and Bauddh Dharmas.
दिसम्बर 14, 2015 at 6:31 अपराह्न
main 12 mein padhta hoon lekin poore vishvas ke saath keh sakta hoon ki ye aadmi koi pandit nahi balki ham aryan ke naam pe kalank hain ye to POORA ULLU HAI
दिसम्बर 17, 2015 at 10:23 पूर्वाह्न
Aap anpad or dugne muirakh hai. Aap ko ye hi nahi paty ki aap[ kya likh rahe hai. Aap ko to ye bhi nhio pata ki snatan dharm or arye samaj alag alg hai . Pehale kitab pado bad me liokhe. Ye lekh kewal aap ki murakhta dekhta hai.
दिसम्बर 17, 2015 at 10:31 पूर्वाह्न
Aap ka lekh aap ki murakhta dekhta hai . aap dubara galti na karna.
दिसम्बर 18, 2015 at 1:37 अपराह्न
khadge is the most stupid person on this earth today. does he know anything about HIS LEADERS SONIA ITALIAN AND RAUL VINCI A BRITISH CITIZEN.
दिसम्बर 22, 2015 at 2:01 अपराह्न
from DNA analysis of all indians, it is no proved that all are one,either so called lower,upper cast,or tribe. donot spend yor valuable mental energy in all these artificial man made hoax. cool your self,o, destroyer.
दिसम्बर 22, 2015 at 2:04 अपराह्न
it is better to be uneducated than misseducated, mr.writer.
दिसम्बर 26, 2015 at 1:54 अपराह्न
kuch log araya ka matlab sherth batate hai or kaya jua khelan, ek nari ke sath pach log vivah karno, jua ke liya nari ko dam pe lagana raj path ke liye appne bahyio tak ko marba dena jor is ladyi ko darma yuth ya god ki ischa batana jis mai lacho nirdosh log mare gaye.logo ko chal kapat se marna
kabhi socha ho ki aaj jo samaj main balatcar, lot mar satta ya pasho ke leya appno ko mar dean kabi bhagwan ko to kabi mata ko mahan batan ye in ki mahanta
दिसम्बर 26, 2015 at 3:42 अपराह्न
Kuch log araya ka matla
दिसम्बर 26, 2015 at 6:24 अपराह्न
Aryan invasion theory has been thoroughly debunked by a recent DNA scientific study. Even before that it was proved that flood not Aryans caused decline of Indus valley Civilization. There is not a single archaeological evidence that Aryans came to India and caused destruction of IVC . Anyone propounding this myth ,including the author of this post ,is a class 1 idiot . Max Muller’s .
जनवरी 2, 2016 at 3:07 अपराह्न
ye krishnakumar hai kaun. mujhev milnav hai is rndi ki aulad se. is madhrchod ko pta hi mar dhrm kya hai mkhb kya hai. aaj hum muslim kisi layl nae rhe uski wjh krishnakumar jaise rndijade hai jo naam badlkr kam bdlkr hum muslimo ko uksate hai aatank k liye aur ek din hme hi rona pdta hai. aur hindu shudro tumho to shrm aani chahiye kutto ki trh arakshan ki roti lekr plte ho aur brabri krna chahte ho pndito ki? aukat hai tumhari sher se brabri krne ki? isi arakshan ne brbad krk rkh diya mijhko aur mere priwar ko aatanki bhai ne. koi btaye isko k pndt usko khte the jo gyani hota tha yhi wjh hai hai k ramayan me rawan k alawa uske aulado k liye khi pndt shbd ka istemal nae hua. hum logo k barr me galat bolte hai aap log. hum aap hinduo k whi bhai hai jinhe samay pr dhrm ka gyan nae mil paya aur aaj halat us shrabi k jaise ho gye hai jo chahkr v us nshe k keechad se door nae ja skta. ye krishnakumar jaise muslim nfrt ki jo aag faila rhe hai inke jeewan me siway aansuo k kuch nae milna. hinduo khud ko bhulne lgo to abdul lalam ko pdhna. kisi safal admi ki jeewni lena tumhe pta chl jayega k unke success ki wjh hindu dhrm me astha rhi hai. duniya ka sbse bda research centre geeta ko follow kr rha aur obama ap hi k hanuman bhagwan ki pooja kr rhe to ap hi mhamrityunjay jup ko apna prerna srot bnaya bill guets ne. actully gov hi nikammi hai jo chahti hi nae k hum sukhi ho yhi wjh jai k akhilesh mulayam modi sb khte hai k tum apne dm pr mt khda hona tumhe mai tukda fekta rhunga. aur hindu chamar pasi shudra sale 2 rupye k rashan k chakkar me apni maa bahan bechte rhte hai. av patelo ne hangama kiya k ve bde kutte hai aur unhe bd a tukda chahiye . kbhi suna k pndito ne v andolan kiya? aur ek bat sun lo schhai samne aakr rhti hai . chahe jitna lanchan lga lo suraj chamakta hi rhta hai aur chahe jitna tareef kr lo chand me daag rhta hai. to pndit suraj ki trh chmkte hi rhenge aur tukdo pr plne wale bs bhauke rhenge
जनवरी 3, 2016 at 11:58 अपराह्न
Jis mather chod ne yah lekh likha hai pehle wo ye bataye ki wo kiska anuyayi hai.Mather chod aarya ko agar dobara kuchha galat kaha to teri ma chod ker naya dharma banw dunga.
जनवरी 5, 2016 at 4:16 पूर्वाह्न
युद्ध हुआ करते थे यह सत्य है कही विजय हुआ करती थी कहीं हार… विजय के पश्चात शोषण अनिवार्य था…
मूल निवासी अनार्यो को पराजित कर आर्यो ने उनपर अधिकार स्थापित किया और वर्गों मे विभाजित कर दिया कोई राजपूत , मराठा , सीख, आदी। मुख्य से पंडित बने व राजपाठ का निर्वहन किया और शोषित वर्ग को सुख सुविधाओं से वंचित रख सामाजिक विकास न होने दिया था…
फिर इस्लामिक सेनाओं का आगमन हुआ किंतु भारत क्षेत्रीय खण्डो मे विभाजित हो गया था। इस्लाम सेना भारत मे अंदर तक शामिल हो गई.. अंग्रेजी कम्पनी भारत मे व्यापार करने आयी… देखा की भिन्न भिन्न राजाओं की भिन्न भिन्न मान्यताए है… आसानी से राज स्थापित कर दिया… उनके आने से देश में आधुनिक क्रांति हुई… किंतु समयउपरांत पुनः भारत स्वतंत्रत हुआ… पूरानी परंपराओं का दहन कीया व लोक कल्याणकारी संविधान बना। भारत मे तमाम असंवैधानिक मान्यता रही है जिसकी वजह से आज भी पूर्णतः समाजिक असमानता है…. और हा देश मे अंधविश्वास फैलाने के लिए प्रकृति से ज्यादा व्यक्तिगत लाभ जिम्मेदार रहे है….. और वर्गों मे यदि आज भी विभाजित है तो उसकी वजन शिक्षा का अभाव है।
जनवरी 7, 2016 at 6:04 पूर्वाह्न
भारत के लोग बहुत भोले-भाले थे यहाँ की मिटृटी बहुत ऊपजाँउ थी लोग बहुत खुश थे।aryo ने आकर
यूरेशिया से भारत के जनता के साथ छल करने लगे और andha vishvash का सहारा लिया। और आज तक लूट रहे है।
जनवरी 9, 2016 at 8:21 अपराह्न
Written in frustatiinnn…..bhai…aapaki..hisaab se to sab pakhand hi hua….to aap hi..ek..naya dharm aur..jeevan shaili…ka vikash kariye…aur..koi bhi aisa dharm.nhi jo pakhand se mukt.ho….aur ha hamare culture ki hi visheshata hai jo aap itna gali de sakte hain.isko….
जनवरी 18, 2016 at 12:27 अपराह्न
हर चिजं मैं अच्छाई और बुराई आदा आदा होती है|
जो आप को केवल बुराई समज्मे आया ये आप कि कमजोरी है | कभी अपनी कमजोरी देखी है ?
जो लेख़ मैने पडा़ वो वही लेखक लिख़ सक़ता हे जो अपनि जनमं माँ कि कोख़ में से नहीं बाप की कोख़ में से लिया बोल के घमंण्ड करता है
जनवरी 19, 2016 at 2:23 अपराह्न
आधा अधूरा ज्ञान हानिकारक होता है
जनवरी 23, 2016 at 4:22 अपराह्न
Mishraji ko Sachmuch Doctor ki Jarurat Hai Bhai.
जनवरी 26, 2016 at 12:27 अपराह्न
आर्यो को क्यो जहर उगलते हो। तुम आज जींदा हो तो इनही के कारण
जनवरी 30, 2016 at 5:46 पूर्वाह्न
Ye panktiya hame bahut hi achhi lagi kyonki inme schai hai.bade bhai ap age bado hum apke sath hain.mool nibasi jindabad.
जनवरी 30, 2016 at 6:57 अपराह्न
christian,islaam,bauddh,jain,sikh,yahudi sbhi dharmo ka bs ek baap sanatan dharm
jai sanatan dharm ki
bacche baap ki burai karne se baap nhi bn jate baap to baap hota aur baap ki ijjat karna sikho
ab point par aao
jo bhi log kisi dharm ki burai kar rahe hai wo log ye batayein aisha kaun sa dharm hai jiske log bure nhi hote matlab har dharm mei bure log hote hai ham kucch bure logo ko aadhar bnakar pure dharm ko bura nhi kah skte…..
aur ek baat aarya kaun the wo kahan se aaye iska answer un logo ke paas bhi nhi jo inhe videshi btate hai q nhi hai q ki aarya videshi the hi nhi wo desi hi the indian the..
us time ke hisaab se wo bhot buddhimaan the aur sabhya bhi aur ye videshi writer’s se bardaast nhi hua to unhone aaryo ko baahar se bharat mei aaya hua bta diya aur is se wo apne hi daav mei fas gaye wo ye nhi bta paye ki o kahan se aaye….
aarya mahan the aur hamare bharat ka mahan itihaas aaryo ke kaaran hi hai aur kisi dusre ke kaaran nhi….
aur mai post karne ale se nivedan karta hu ki pahle khud ka girewan jhaanke phir dusro ka……
dhanyvad
फ़रवरी 2, 2016 at 7:48 अपराह्न
I want to contact with u i just read ur text plz .i just love it .i want u ask some querryes in my mind plz contact me
फ़रवरी 2, 2016 at 8:15 अपराह्न
Aarya Caspian sea k aas pas rehte the….
Native indians …indus valley civilization k log the… Lord Shiva k followers..
फ़रवरी 10, 2016 at 5:03 पूर्वाह्न
Which idiot have written tbhis bullshit. The author doesn’t have even an iota of knowledge. At one point he criticize Britisher and on the other hand cite their propaganda of Arya-Dravidian myth. The author is nuts. Vedas which is promoted by Aryas of Arya Samaj is the highest authority on Dharma. Bhagvad Gita recited by Vasudev Krishna is not but the summary of Vedas. The quality of knowledged this stupid idiot poses is despicable. The fact is there is nothing like Aryans supported either by archaeological evidences, genetics/DNA sxience or our literature(Vedas, Tamil literature). So stop believing in this fiction propagated by Marxists and Britishers to divide north and south India to be able to rule minds of people and rule India directly or through proxies.
All the recent research prove otherwise all Indian living in India are natives and not foreign. We have been living here for than 10,000 years.
Need proof read to clear your mind go through this giving scientific evidence conducted by prestigious universities, archaeologists
Click to access amythofaryaninvasionsofindia.pdf
http://timesofindia.indiatimes.com/india/Aryan-Dravidian-divide-a-myth-Study/articleshow/5053274.cms?from=mdr
http://indiatoday.intoday.in/story/indians-are-not-descendants-of-aryans-study/1/163645.html
फ़रवरी 11, 2016 at 5:16 पूर्वाह्न
http://m.nationaldastak.com/news-view/story/sanskrit-dept-project-to-prove-aryans-weren-t-invaders-rejected-by-ichr-/
अप्रैल 1, 2016 at 10:37 अपराह्न
अछेद्यो अयं अदायो अयं
अखिलेद्यो अशोष्य एव च
नित्यः सर्वगतास्थाणुर्र
अच्युलो अयं सनातनः
निराकारो अयं निर्विकारो अयं
निर्गुणं एव निर्वर्ति च
न अयं प्रकृतिं न अयं प्रवृत्तिं
अच्युलो अयं सनातनः
अप्रैल 2, 2016 at 9:51 पूर्वाह्न
सवाल????
जिन सभी देशों को आपने आर्यों का मूल देश माना है उन सभी देशों से भारत तक पहुँचने में कई सारे देश पड़ते हैं तो क्या आर्यों ने उन देशों को भी जीता होगा अगर हाँ तो उन देशों में आर्यों की संस्कृति के कोई निशान क्यों नहीं मिलते हैं क्या आर्य इतने शक्तिशाली थे की केवल पत्थर से और जानवरों की हड्डियों से बने हथियारों से उन्होंने उन सभी देशों को भी जीत लिया और और भारत को भी ??
आखिर आर्य कितन बड़ी तादात में आये थे जो उन्होंने उन सारे देशों को भी जीत लिया और सिंधु घाटी कंधार से लेकर पूरे उत्तर भारत तक बसने वाले 70 80 लाख या इससे भी कई ज्यादा लोगों का सफाया चन्द 100 सालों में कर दिया
यूरोप रूस व मध्य एशिया से 2000 या 1500 B C के आस पास कोई भी बड़ी जनसंख्या का वहां से पलायन के कोई भी प्रमाण नहीं मिले हैं बल्कि 1500 B C तक इन सब देशों में बड़ी तादात में जनसंख्या छिन्न भिन्न के कोई प्रमाण नहीं मिले हैं तो क्या चन्द हजार आर्यों ने आकर करोड़ों भारतियों का सफाया कर दिया
अप्रैल 2, 2016 at 7:25 अपराह्न
सवाल????
“”आपका मत है की “”गौर वर्ण “”के लोग केवल “””ठण्डे प्रदेशों “में पाये जाते हैं
तो फिर”” जम्मू कश्मीर “हिमाचल प्रदेश
उत्तराखंड” नेपाल और इनसे सटे मैदानी “भाग भी तो ठण्डे हैं और “””कश्मीर” की जलवायु तो “रूस “के सामान ही ठण्डी है तो क्या यहाँ के इन क्षेत्रों” में गोरे “लोग नहीं होने चाहिए
ये सारे क्षेत्र” मध्य एशिया” से सटे होने के कारण “ठंडी जलवायु के “लिए जाने जाते हैं
ज्ञातव्य है की भारत मैं “”मानव बस्ती के सबसे प्राचीन अवशेष “कश्मीर के “”बुर्जहोमे “”में पाये गए हैं “जहाँ की जलवायु इतनी ठंडी है” कि वहां काले लोगों का होना संभव ही नहीं
“””आज भी कश्मीर में रहने वाले लोग अन्य भारतियों की अपेक्षा बहुत अधिक गोरे होते हैं “”””और कश्मीर से सटे मैदानी क्षेत्रों पंजाब हरियाणा इन जगहों पर भी अन्य भारतियों की अपेक्षा अधिक गोरे लोग होते हैं
हाल ही मैं उत्तर प्रदेश के कई इलाकों से लेट हड़प्पा काल(2000 BC से 1500 BC) एक उन्नत कबीलाई समाज के पुरातात्विक साक्ष्य मिले हैं
जिनकी नस्ल अल्पाइन थी
अब इसके बावजूद ये कहना मुश्किल हो जाता है की आखिर उत्तर भारत के मूल निवासी कौन हैं
भारत की जलवायु एक जैसी नहीं है कि यहाँ एक ही प्रकार के लोग पाये जायें
यहाँ कही ठण्डे क्षेत्र है तो कहीं गर्म
यह भली भांति ज्ञात है कि उत्तर भारत कई कई इलाके
कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड नेपाल व इनसे सटे मैदानी क्षेत्र पंजाब हरियाणा इंडो गंगा के मैदान
“”निग्रोइड लैंड “अर्थात गर्म प्रदेशों की श्रेणी में नहीं बल्कि “ठन्डे प्रदेशों में आते हैं ये “गर्म जलवायु से सम्बन्ध नहीं रखते “
फ़रवरी 16, 2016 at 10:07 अपराह्न
किसी ने सही कहा है, भारत अंधविस्वशीयौन का देश है। इससे, सबसे ज़ायदा गर्षित वो लोग है जो मध्य वर्ग के है। धन्येवाद महासय् …..
फ़रवरी 19, 2016 at 12:38 अपराह्न
भाइयो यद्यपि आर्य का तात्पर्य श्रेष्ठ से होता है और आर्य पथ भ्रस्ट होते तो वेद जैसे उन्नत ग्रंथों की रचना ना कर देते
फिर भी आपस में अगर हम हिन्दू लोग इसी तरह अपने लोगों में कमी निकालेंगे तो दूसरे धर्मों के लोग भी चुटकी लेंगे तो be carefull
फ़रवरी 20, 2016 at 12:11 पूर्वाह्न
जिसको क का ज्ञान नहीं वो कौवे भी काव् काव् करने लगे है।
या तो ये लेखक मानसिक रोगी है
या अपनी जिंदगी से बहुत निराश और हतास।
पर हमें क्या हम तो एअसे वेबकूफ़ो पर हस तो सकते ही है।
फ़रवरी 28, 2016 at 12:37 अपराह्न
वामपंती सोच का सब असर है सब पैसो का लालच है कुर्शी पर अड़े रहकर देश को लूटने का लालच है ये जो नेता राजनीति रहें है भारत को तोड़ने इन नेताओं का कहना है की आर्यों ने सिंधु घाटी को नष्ट कर दिया और अपना धर्म इन पर थोप दिया जब आर्य जंगली थे तो उनका कोई धर्म ही कहाँ से होगा क्या भारत पर हमला करने वाले जंगली जाती शकों कुषाणों और पल्लवों का कोई धर्म था तो फिर आर्यों का कोई धर्म कैसे हो गया और यदि आप मानते हैं की आर्यों का कोई धर्म भारत मैं आने सेपहले था तो यूरोप के किशी देश में आर्यों का धर्म क्यों नहीं है वहां की किसी पुरानी संस्कृति में आर्यों के (धर्म) की कोई निशानी क्यों नहीं मिलती ये तो उल्टा सिंधुघाटी की सभ्यता में ही आर्यों की धर्म की निशानियाँ क्यों मिलती हैं आर्यों के सारे रिवाज सिंधु घाटी के रिवाजों से क्यों मिलते हैं क्या वाकई आर्यों को सिंधु घाटी के वासियो से इतनी नफरत थी कि आर्य ने इन्हें शुद्र घोसित किया और खुद कोश्रेष्ठ घोसगित किया तो फिर आर्यों ने इन अनार्यों (जिन्हें आप शुद्र या सिंधु सभ्यता के मूल लोग मानते हैं)के रीत रिवाज और भगवान् को अपना लिया होगा यहाँ पर वामपंती नेता चुप हो जाते हैं और उलटे उलटे तर्क देने लगते हैं
एक प्रश्न ?????
आर्य तो स्वयं को श्रेष्ठ कहते थे
फिर क्यों आर्यो ने अनार्यों का धर्म सभ्यता रीती रिवाज उनके देवताओं को अपना लिया जब आर्य अनार्यों से घृणा करते थे तो फिर उनके संस्कार उनकी सभ्यता उनके रीती रिवाज आर्य क्यों अपना लिए ये उत्तर कोई नहीं दे पाता भला ऐसा हो सकता है की आदमी को आटे बेहद घृणा हो लेकिन उस आटे से बानी रोटी वो चाव से खाता हो गंदे गिलास से नफरत हो पर उसमे रखा पानी बड़े शोक से पीता हो तो फिर ऐसा कैसा हो जाएगा की आर्य अनार्यो से बेहद घृणा करते हों पर उनकी संस्कृति अपनाने में जरा भी ना हिचकिचाते हों क्या वाकई आर्य आक्रमण यूरोप से हुआ था यदि हाँ तो योरोप और भारत के बीच कितने ही देश पड़ते हैं क्या आर्यों ने उन देशों को नहीं जीता सीधा भारत कैसे आ गए ऐसे कैसा हो सकता है भारत आने के रास्ते में इतने सारे देश पड़ते है वह के लोगो किआर्यों से युद्ध न हुआ हो क्या आर्य भारत की तरह उन सभी देशों को भी जीत गए थे तो यदि हाँ तो उन देशो में हिन्दू धर्म क्यों आर्यों ने नहीं थोपा जब यूरोप में धातु के हथियार और कवच 2500 साल पहले प्रोयोग हुए तो पगिर 3500 साल पहले आर्यों के पास ऐसे कौन से हथियार थे की इतने बड़े शहरों को उन्होंने नष्ट कर दिया पुरातत्व प्रमाणों में अछि तरह सिद्ध है की योरोप में लोहे या ताबे के हथियार 2500 साल पहले बनने शुरू हुए थे 3500 या 4000 साल पहले वहां जंगली लोग थे उन्हें धातुएं लोहा ताम्बा आदि का कोई ज्ञान नहीं था जबकि सिंधु घाटी के लोगों को धातुओं का पूरा ज्ञान था तब फिर आर्यों ने क्या युद्ध में इस्तेमाल किया पत्थर के हथियार और क्या पत्थरों से यूरोप के आर्य जंगलियों ने इतने विकसित शहर में रहने वाले लोगों का विनाश किया था क्या बकवास है पहले पूरी जानकारी हासिल क्र लो साहब तब आपको पता चलेगा की आज विदेशी अंग्रेज विद्वान् भी क्यों आर्य आक्रमण को महज एक कल्पना मान रहे है आर्य आक्रमण मिथ्या प्रचार है जो उस समय मैकाले ने भारत की एकता तोड़ने के लिए गड़ा था
मार्च 4, 2016 at 9:40 अपराह्न
भाई इस तरह अपने गौरव पूर्ण इतिहास के बारे में विचार बनाने से पहले ये तो सोच लेते कि इस देश में कई सभ्यस्तओ तथा अन्य मान्यताओ को मानने वालो ने कितनी बार आक्रमण किया यहाँ पे लूटमार करने के अलावा यहाँ पर कई शताब्दियों तक साशन भी किया अपनी संस्कृतीयो का यहाँ पे प्रचार प्रसार किया जिसके लिए उन्होंने क्रूरता का बहुल मात्रा में इस्तेमाल किया अपने समय काल में उन्होंने हमारे बहुमूल्य संस्कृति तथा इतिहास को भी तोडा मरोड़ा और आप उसी विकृत इतिहास का गुण गान कर रहे है जिसे अभी हाल में ही उन्ही विचार धाराओ के लोगो ने हम लोगो को सौपा है आप उन प्राचीन ग्रंथो का निरादर करने में ही अपनी बढ़ाई समझते है जिसे उन लोगो से बड़ी कीमत देके सुरक्षित किया गया है आप आम्नाय धारा (प्रमाणित गुरुशिष्य परंपरा ) को ही नकार देते है और अभी अभी अचानक न जाने कहा से प्रकटे ज्ञान का आश्रय लेके अपनी जड़ को ही काट डालने की कोशिश कर देते है राजयोग से अनुभूत हुए ज्ञान को ही पुस्ट करने के लिए अपने गौरव पूर्ण परंपरा को ध्वस्त करने के प्रयास को मैं सम्पूर्ण रूप से वहिष्कार करता हूँ
मार्च 15, 2016 at 9:49 अपराह्न
Hum inshan hai aur hamare purvaj hi hamre bhagwan hai.
मार्च 20, 2016 at 10:23 पूर्वाह्न
bahut achhe jankari dhanyvaaf
मार्च 23, 2016 at 5:02 अपराह्न
Man
i dont like your post it is baised and full of false information and you are not a hindu
मार्च 25, 2016 at 5:25 अपराह्न
sale haram khor tu he jisne bramhan ke ghr me janm leker prachin satya sanatan dharm pr kichad uchhal rha he jo yugo yugo se chala aa rha he mughe to lag rha tu varnsankar he
मार्च 26, 2016 at 10:32 पूर्वाह्न
sir aap kuch had tak sahi ho pehle to aarya madhya asia se aaye aur bharat ke moolnivasiyon ko brahmit kar un par akraman kia or unke viswaas aur sidhepan ka faayada utha kar unhe gulam bana liya aur fir manu rishi ne forth varn me daal kar un gulaaamo ko shudra bana diya aaj bharat ke shudra yaha ke moolniwasi hokar bhi jaativaad se grasit he .
अप्रैल 1, 2016 at 11:30 अपराह्न
महाशय आपसे कुछ प्रश्न रखना चाहूँगा आशा करता हूँ की आप उनके तर्कसहित उत्तर दे सकें
1 यदि वास्तव में सिंधुघाटी पर आक्रमण हुआ था
तो सिंधु के शहरों में केवल मध्य काल के कंकाल क्यों मिलते हैं अंतिम काल के क्यों नहीं???
क्या ऐसा हो सकता है की सिंधु घाटी में अंतिम काल तक लोग निवास कर रहें हों और वहाँ मध्य काल से कंकाल पड़े हों लेकिन जो लोग अंतिम काल तक वहां रह रहे हों उन्होंने मध्य काल से पड़े हुए कंकाल या लाशों को वह से हटाया ना हो और उनका
अंतिम संस्कार ना किया हो बल्कि उन्हें ऐसे ही सड़कों और गलियों के किनारे छोड़ दिया हों
ज्ञातब्य है की जो कंकाल व्हीलर और उनकी टीम को सिंधु घाटी की गलियों से मिले थे उन की जाँच करने में पाया गया की इनमे ऐ आधे से अधिक कंकाल मध्य काल के थे
तो क्या जो लोग अंतिम काल तक सिंधु घाटी मैं निवास कर रहे थे उन्होंने कभी उन कंकालों को हटाने की सोचो ही नहीं बल्कि उन्हें अपने आस पास ही पड़े रहने दिया क्या ऐसा हो सकता है
ऐसा तो हो ही नहीं सकता तो फिर इससे ये सिद्ध नहीं होता की व्हीलर और उसकी टीम ने जब वो सिंधु उत्खनन पर रत थे चोरी चुपके से दक्षिण भारतीयों या अन्य विजात्यों के कंकाल वहां रखवा कर फिर उन्हें सिंध का बताया था ताकि ऐसा लगे की यहाँ कभी विदेशी का आक्रमण हुआ था
लेकिन जब जांच में पता चला की ये कंकाल मध्य काल से सम्बन्ध रखते हैं न की अंतिम काल से तो आक्रमण सिधान्त कुछ कमजोर लगा
अप्रैल 2, 2016 at 12:05 पूर्वाह्न
सवाल no2 जब आर्यों ने भारत पर आक्रमण किया तो उनके पास हथियार कैसे रहे होंगे??? किस चीज के रहे होंगे ??? जिनसे उन्होंने सिंधु वासियों को जीता
क्यों की महाशय आज से 2000 ईसा पू से
1500 ई पू और 1000 ई पू तक यूरोप रूस व मध्य एशिया के लोगों व किसी भी जातियों को
किसी भी धातु का ज्ञान नहीं था न काँसे का न तांबे का न चाँदी का जबकि सिंधु घाटी के लोंगो को इन सब धातुओं का पूर्ण ज्ञान था और सिंधुवासी धातुकर्म के विषयों में उच्च कोटि का ज्ञान रखते थे वो ऐसे मैं सवाल ये उठ जाता है कि जब यूरोप रूस और मिड एशिया के लोंगो को धातुओं का कोई ज्ञान ही नहीं था तो फिर 2000 या 1500 BC मई आर्यों ने आक्रमण मैं कैसे व किस धातु के हथियारों का प्रयोग कर 60 70 लाख सिन्धुवासियों को रौंद डाला और घाटी मैं उन हथियारों और युद्ध के कोई चिन्ह तक नहीं छोड़े
महाशय सिंधु घाटी मई आज तक एक भी हथियार या युद्ध के चिन्ह नहीं मिले जिससे ये सिद्ध होता हो कि आर्यों ने यहाँ आक्रमण किया हो
यहाँ तक की लोहे का प्रयोग व उनके औजार भी भारत मैं ही सर्वप्रथम 800 B C मैं हुए और भारत से ही धातुओं का ज्ञान 600 BC मैं योरोप पंहुचा आपके कथित आक्रमण के समय से 1100 साल बाद
अप्रैल 2, 2016 at 12:35 पूर्वाह्न
सवाल ??
आप जिन देशों को आर्यो का देश मानते है उनसे भारत पहुँचने के मध्य मै कई सारे देश पड़ते हैं तो क्या आर्यों ने उन देशों को भी जीता अगर हाँ तो फिर वहां आर्यों की कोई संस्कृति क्यों नहीं मिलती
सवाल???
आप का मत है कि गौर वर्ण लोग केवल ठन्डे इलाकों में पाये जाते है तो फिर कश्मीर हिमाचल प्रदेश उत्तराखंड नेपाल और इनसे साते इलाके क्या ठन्डे नहीं हैं
जी बिलकुल हैं और कश्मीर की जलवायु तो रूस के सम्मान ही ठंडी है तो इन पर व इनसे साते मैदानी इलाकों मैं गौर वर्ण के लोग नहीं पाये जाने चाहिए
सवाल??
किस धर्मग्रन्थ मैं लिखा है की देवता गोरे रंग के हैं और राक्षस और दानव काले रंग के हैं धर्मग्रंन्थो में तो दानवों को भी सुन्दर बताया गया है
किस ग्रन्थ मैं ऐसा लिखा गया है की दानव मातृदेवी के घोर भक्त होते हैं और वो मातृसत्ता को मानने वाले होते हैं जबकि सिंधुवासी तो मातृदेवीयों को बड़ी तादाद पर पूजा करते थे
जबकि आर्यों के साहित्य में जिन दानवों का वर्णन आया है वो देवियों के घोर शत्रु बताये गए हैं और उनकी सत्ता भी पितृसत्ता बताई गई है एक भी दानव ऐसा नहीं बताया गया है जो मातृदेवी की सत्ता को मानता हो और इन दानवों को देवताओं का ही भाई बताया गया है जरा ऋग्वेद गौर से पढियेगा देवता और दैत्य दोनों ही ऋषि कश्यप की संताने कही गई हैं
अप्रैल 2, 2016 at 10:16 अपराह्न
सवाल??
????????????
किस धर्मग्रन्थ मैं लिखा गया है कि “”””देवता गोरे रंग के होते हैं “””
और “””””””दानव काले रंग के होते हैं”””””
आर्य साहित्य में जिन”” दानवों और “””दैत्यों का उल्लेख हुआ है उन्हें “””देवताओं का ही भाई”””” बताया गया है
“””देवता और दानवों दोनों को ही ऋग्वेद में ऋषि कश्यप की ही संताने कहा गया है””
ऋषि कश्यप की पहली पत्नी अदिति से इंद्र वरुण आदि सभी देवता और उनकी दूसरी पत्नी दिति से
दानव महिषासुर के पूर्वज व कालकेय नामक दैत्य पैदा हुए
साहित्य में कहाँ पर ये उल्लेख है के”” दानव मातृदेवी””””” के पूजक या उनके आराधक होते हैं धर्मग्रंथों में””” दानवों को देवियों का घोर शत्रु “””बताया गया है व दानवों की सत्ता भी “””पितृसत्तात्मक””” बताई गई है
“जबकि सिंधुवासी बड़ी तादात में मातृदेवीयों की पूजा करते थे ”
ऋग्वेद में दासों अनार्यों(जिन्हें आप भ्रमवषाद वर्तमान शुद्र मान रहे हैं) को यज्ञ कर्मों को नष्ट करने वाला बताया गया है
जबकि सिंधु घाटी मैं बड़ी मात्रा में यज्ञ कुण्ड और अग्नि वेदियां मिली है जो वैदिक यज्ञ कुंडों की ही सामान हैं
इससे सिद्ध हो जाता है की हड़प्पा के लोग यज्ञ कर्म भी बहुत किया करते थे
“”””अब अगर अनार्य सिंधु के मूल निवासी थे तो वो यज्ञ पूजा के विरोधी क्यों थे क्या वो अपने ही रीती रिवाजों को नष्ट करने वाले थे”””
“””यदि आर्य बर्बर थे व द्रविण”” शांत थे तो फिर आर्यों ने किसके ख़ौफ़ में आकर के शिव को त्रिमूर्ति व अपना देवता मान लिया “””
“”” यदि आर्य अनार्यों को व उनके समाज को नीच व तुच्छ मानते थे”””
तो फिर ऐसा क्या हो गया कि आर्यों ने अनार्यों के देवता सभ्यता रीती रिवाज संस्कार सब अपना लिए
आर्य तो स्वयं को” श्रेष्ठ”” कहते थे फिर वो क्यों
वो अनार्यो के देवता धर्म संस्कार सब अपना गए
“”””क्या ऐसा हो सकता है कि कोई व्यक्ति किसी तालाब को गन्दा कह कर उसमे थूके लेकिन उसके पानी को बड़े चाव से पीये “”””
“””अगर ऋग्वेद में “आर्य ऋषियों “से अधिक” द्रविण ऋषियों “की ऋचाएं है तो फिर ऋग्वेद “तमिल में क्यों नहीं लिखा गया है तमिल भाषा का अनुवाद किसने किया और ये आर्य कौन सी विशेष जंगली थे जो इतनी शीघ्र संस्कृत जैसी उच्च स्तर की भाषा और व्याकरण की रचना कर गए क्यों “”ऋग्वेद तमिल में नहीं बल्कि संस्कृत में लिखा गया है
“””””ये तो दुनिया का सबसे आश्चर्य भाष्य लगाकी आर्य बर्बर और खानाबदोश जंगली थे लेकिन इन्होंने चंद 100 सालों में एक उच्च व्याकरण व् भाषा की रचना कर डाली””””
“”इनके पास अपना साहित्य था
मतलब ये पढ़े लिखे educated खानाबदोश थे ये दुनिया का सबसे अनोखा उदाहरण है”””
“””सिंधु व ईराक जैसे नगरों के लोग भी हजारों सालों में लेखन कला की भवचत्रात्मक लिपि का आविष्कार कर पाये जिनमे अपनी बातों को अधिक से अधिक चित्रों से समझाते हैं “”””
‘”””और घुमंतू आर्य जो पूर्ण जंगली थे उन्होंने चंद 100 सालों में एक विकसित व्याकरण वाली संस्कृत जैसी भाषा रच डाली जो की आज के ज़माने की भषाओं की तरह या इनसे भी सक्षम है “”
अब आपको समझ में आनी चाहिए की योरोप के सभी विद्वान् आर्य आक्रमण को सत्य क्यों नहीं मानते
क्यों की ये कही बातों पर खरा नहीं उतार पाता
अगस्त 13, 2016 at 1:45 अपराह्न
If 👉Aryans central Asia se aaye the-
a)Due to harsh climate of way 👉(mountains & plateau of Caucasia, Iran,Afghanistan)👈 unke max. Women 😢& children Mar gaye.😢😢
b)Indus valley me abhi tak kisi bhi site pe
Aryans & locals ke conflict ke proof ni mile hai😬🙅mound of deads me human bones ka time period behad different different mila hai.
So yah kahna Galat hai ki Indus Valley Aryans ke karan khatam hui.😒😒
c)They married local women😐, you can call them ‘Rakshasi’👹👈 , ‘danavi’👿👈 ‘asuri’ 👹👈bla bla.
But don’t call because👇👇👇👇
Aap bhi kisi asuri’ & Aryan ki aulad ho sakte ho. 😂😂if don’t believe, check your DNA😯😯
& if proven then behead your family & Kins & at last suicide. ☺😊😀😁😂😜😝😋😎
Today there is no such thing Aryan & Non Aryan.
Mishra ji ,ham to Indra ko bhul gaye 🙅, ab Indra ki Pooja Nahi karte lekin aap ke man me,vicharo me Indra hi Indra hai.🙇🙇
Aik idiot ne likha ki Aryans beef khate the ,yajna ke time pe.🙏🙏
Are wo musalman thode the,
Cow slaughter was totally banned.😬😬
& wo Communist ki aulad,Naxalite, 👹👿terrorist
Buddha pahle Hindu hi the,😊😊
Agar Teri maa tera naam ni rakhti 😬😬to kya hone ke baad bhi Tu ni hota kya.👈😎😎
To Hinduism tha😊, ha,naam udhari ka hai.
Hinduism is a way of life, which letter named by Arabs.🙅🙅.
Aur kaisi akal (Dimag) diya tum Rakhsaso ko Shukracharya, pity on you and your asursena’😜.
Uppercast ke din lad Jane ke Baad tum badla lene ka sochte ho😢😢,tumhe sahi naam diya-👉👉Rakshas,asur,daitya,idiots😜😜,dhikkar hai tumhare dharm pe.
Hinduism kahta hai ‘Varna’ ke bare me,jo ki “karma” aadharit ho,
Bhai apne paas opportunity hai karma ke basis pe equal hone ki to usko use karo.
Aur gar aaj upper class and lower class khatam ni hoti hai to Upper class walo me paas koi bachega hi ni ,jisko wo lower class kah😎😎
Our , aik item kah rha tha ki Sati pratha hai,
Abe gadhe (Donkey) 😝😝😝Vedas me kha lika hai,upnishad me kha likha hai.
Wo aik socil problem hai, cast system AI social problem hai. 😭😭😭😭
Aik narrow-minded ne kha ,
Ye Arya samaj , prarthna samaj bahwas hai.
Abe , ye samaj sabhi se shresths (Arya) hai, khud ko Aryans manne walo se bhi.
Bhaiyo , duniya Kitne aage Ja rahi hai🔝🔝🔝 our hum hai ki Aryans pe Hi atke hai.🙀🙀 Ye history ka aisa part hai jisko sahi ya Galat me Nahi bataya Ja sakta.🙍🙍 Behad controversial & puzzeled hai, Yàar great archeologists & researchers bhi ni pta kar PAYE to Tujhe kya dream aaya ki Aryans ne ye kiya wo kiya,😬😬😬
Our ye “so called Aryans” ko kaise pta chala ki wo Aryans hai.🙅🙅
Are ye khichdi hai.😀😁😂
Question- Indra ka importance 1BCE tak khatam Kyo ho gaya???
अप्रैल 3, 2016 at 10:01 अपराह्न
ऐसे ही कई प्रश्न हैं जिनसे आर्य आक्रमण खरा नहीं उतर
1 क्या ये मानने लायक है कि आक्रमणकारी आर्य
अपने साथ पहले से उपयोग करने वाली वस्तुए
जैसे पत्थर के औजार पूजा की मूर्तियाँ या अपने देश की कोई भ चीज अपने साथ लेकर न आये हों
“”””भारत में कोई भी चीज ऐसी नहीं मिली है जो 2000 से 1500 ई पू यूरोप रूस या मध्य एशिया से आयतित हुई हो “”””
2 क्या बात हुई की आर्यों ने आक्रमण सिंधु घाटी पर किया किस मकसद से क्या लूटने के मकसद से
“””°°°””पर सिंधु घाटी तो अपने अंतिम चरण पर बहुत खस्ता हालत में थी सरस्वती नदी के सूखने के बाद सिंधु घाटी में भयंकर जलवायु परिवर्तन से सूखा पड़ गया था खेती नष्ट हो गई थी जलवायु परिवर्तन से कई सालों तक बारिश नहीं पड़ने से कृषि भूमि मरू भूमि में बदल गई थी “”””””
“”””””तो फिर ऐसा देश जहाँ पहले से आपदा आ रही हो अकाल पड़ रहा हो तो आर्यों को उस देश पर आक्रमण करके लूटने के लिए क्या मिला सूखी मिटटी “”””””
3 “”””””ऐसा क्या हुआ की आर्यों ने आक्रमण सिंध और कंधार पर किया और बसने के लिए पंजाब और उत्तरी प्रदेश के गंगा मैदानों में आ गए”””””
अगर आर्यों का मकसद सिर्फ भारत को जितने का और कब्ज़ा करने का था तो केवल उत्तर भारत के कुछ राज्यों पर ही क्यों
क्यों नहीं दक्षिण भारत पर भी हमला किया
जिन्होंने ने इतना बड़ा उत्तर भारत जीत लिया उनके लिए दक्षिण भारत क्या था फिर क्यों उस पर भी हमला करके उसे नहीं हडपा
@@@ नीचे वाला 4वां जरुर पढ़ें @@@@
4 -@#@”””””सवाल ये भी है कि””””””””” जब आर्यों ने द्रविड़ों को उत्तर भारत से दक्षिण भारत में खदेड़ा तो “”””द्रविड़ों से पहले दक्षिण भारत में कौन सी जाति के लोग निवास करते थे “”””””””########
“”””””अगर हाँ तो आज वो लोग कहाँ हैं जो द्रविणो से पूर्व दक्षिण भारत में बसते थे “”””
“””””””क्या द्रविड़ों को जब दक्षिण में खदेड़ा गया तो क्या द्रविड़ों का पहले से रह रही जातियों से युद्ध हुआ होगा और की द्रविड़ों ने उन्हें जीत लिया होगा यदि हाँ तो प्रश्न है कैसे “”””””””””
“”””””आखिर जो द्रविण इतने शांत थे की आर्यों से बुरी तरह हार गए तो दक्षिण भारत पर उन्होंने कैसे कब्ज़ा कर लिया “”””””
दक्षिण भारत में 9500 साल से लोगों के बहुत बड़ी तादात में रहने के प्रमाण मिले हैं
“””””क्या कारण है की आर्यों ने इतने बड़े भारत को जीत डाला और अपनी इस महान विजय गाथा को अपने किसी साहित्य में नहीं लिखा “”””
जॉन पिग्गट ने ठीक ही कहा था की जब व्हीलर 7 नदियों वाली भूमि पर पंजाब आर्य आक्रमण की बात कहते हैं तो उनके कहने का निश्चित प्रमाण नहीं होता
अगर ऋग्वेद के दर्जनों सन्दर्भों में देखें तो किसी एक में भी पंजाब पर आक्रमण का उल्लेख नहीं है
“”””ऋग्वेद को पढ़ने से बिलकुल भी नहीं लगता कि इसे किन्ही ही खूंखार बर्बर लोंगो ने लिखा हो यहाँ जगह जगह पर ज्ञान ईश्वर और केवल यज्ञ आरधनाओं व देव मन्त्र ही मिलते हैं””””
थोड़े 7- 8 सन्दर्भों में छोटी मोटी लड़ाइयों का वर्णन अवश्य मिलता है वो भी उनके अपने ही लोगों के बीच
बाकी उसमें कहीं भी किसी बड़े आक्रमण या हिंसक युद्ध का उल्लेख नहीं मिलता और न ही कहीं ऐसा शब्द मिलता है की जिससे ये सिद्ध हो की आर्य कहीं बाहर से भारत में आये हों
बल्कि यहां तो आर्यों ने इसे अपना देश कह कर पुकार है हर जगह मेरी गंगा मेरी जमुना मेरी सरस्वत्ती लिखा गया है
5 क्या ऐसा संभव है कि आर्य जिनको की पत्थरों के अलवा किसी धातु का ज्ञान तक नहीं था वो केवल पत्थरों के हथियारों से जीत गए हों हो और सिंधुवासी जो धातुओं का पूर्ण ज्ञान रखते हों
और वो कुछ ऐसी चीज या ओजार बनाना न जानते हो जिससे उनकी सुरक्षा हो सके
6- क्या ऐसा हो सकता है की अच्छी नस्ल के घोड़े भारत में होते हो लेकिन भारतियों की अपेक्षा योरोप के आर्य जंगली घुड़सवारी करने में माहिर हों
क्या सुदरकोटा ( गुजरात में) से पालतू घोड़े की अस्थियां नहीं पाई गयी थी इससे ये सिद्ध नहीं होता की सिंधु वासी घोड़े से भी परिचित थे और घोड़े को पालतू बनाना भी जानते थे
7- क्या ऐसा संभव है की रथ का विकास उत्तर भारत व सिंध के मैदानी जमीनों के बजाय यरोप या मध्य एशिया की ऊबड़ खाबड़ भूमि पर हुआ हो
“°””अगर आर्य मध्य एशिया या यूरोप में रथों का अविष्कार कर चुके थे तो वहां की अन्य जातियां कैसे रथों से परिचित नहीं थी “””
“””””अगर आर्य तलवार भाला कवच और अन्य हथियारों का आविष्कार यूरोप में कर चुके थे वहां के अन्य लोग कैसे इनसब चीजों से परिचित नहीं हुए क्यों इन सब चीजों के प्रयोग वहां नहीं मिलते “”””‘
“”””यूरोप में रथों और हथियारों और कवचों का प्रयोग 700 B C के बाद हुआ वो भी जब वो भारतियों के संपर्क में आये तब और मध्य एशिया तथा रूस में तो
300 BC से पहले इन सब चीजों से कोई परिचित ही नहीं था “””
तो ऐसे में आर्य आक्रमण कैसे सही ठहरता है ये तो या व्हीलर महोदय जाने या कृष्ण मिश्र जी
मेने जो प्रश्न किये हैं अगर आप उनका तर्क सहित उत्तर दे पाएं तो धन्य हैं आप @
अप्रैल 4, 2016 at 9:10 अपराह्न
Be more responsible Mr. don’t try to abuse anyone’s ethics and beliefs.
Do you know Aryans were the most knowledgeable personality ever in our wold level history.
You could be a graduate or holding a PHD ,but you should be a positive and
Don’t let the evil and devil to possess you.
Be sensitive ARYAVART native.
अप्रैल 7, 2016 at 7:33 अपराह्न
कुणाल जी आप मुझे केवल इतना बता दीजिये की
की जब आर्यों ने आक्रमण किया तो द्रविण सीधा दक्षिण भारत में क्यों भागे ??
इतनी दूर क्यों भागे
जबकि दक्षिण भारत से ज्यादा नजदीक तो कश्मीर
हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्र थे और जादा सुरक्षित थे फिर सीधा दक्षिण भारत ही क्यों
और जो द्रविण इतने शांत थे उन्हें दक्षिण भारत पर कब्ज़ा किसने करने दिया ???
एक गजब जोक सुनने में बड़ा मजा आता है की आर्यों ने द्रविनो को मूर्ख बनाकर गुलाम बना दिया आर्यों ने धर्म के नाम पर द्रविणो को मूर्ख बना दिया
मतलब जिन द्रविणो ने 5000 साल पहले इतने बड़े विकसित शहरी समाज का निर्माण किया जो लोग इतनेबड़े शहरी सभ्यता के ग्यानी निवासी थे उन्हें यूरेशिया के खानाबदोश जंगलियों ने मूर्ख बना दिया और वो चुप चाप मूर्ख बन गये
मतलब आर्यों ने इतनी महान सभ्यता के निवासियों को चूतिया बनाया और वो खड़े खड़े चूतिया बन गए
अप्रैल 12, 2016 at 10:06 पूर्वाह्न
Krishna kumar JI …aap Bahot ghatiya Bichar wala Insan ho…ya tum koi mushalmaan ho Hindu samaj ke logo ko Hindu ko bhadka Rahey ho…sab kuch galat Likha hai..Aryan ne pure Desh.purey sansar ko gyan.jine ka paribhasa.ishwar se bodh.siksha..Tum Bahot badey Haramkhor ho tumhari himmat kaise hui ARYA ko Haramkhor Bolney ka…tho keya Bhagwan RAM Haramkhor they..tho keya Bhagwan shri KRISHNA HARAMKHOR THEY.TOH KEYA BHAGWAN SHIV MAHADEV JO JI ARYO KE GURU…THEY WOBHI HARAMKHOR THEY….
अप्रैल 13, 2016 at 7:22 अपराह्न
जिस तरह का विष वमन किया गया है — उस से लेखक की पारवारिक पृष्ठ भूमि का पता लग रहा है — ईश्वर उन्हें सदबुध्धि प्रदान करें —
अप्रैल 14, 2016 at 3:33 अपराह्न
ये मूर्ख कमीनिस्ट है. आत्म-निंदा को आत्म-गौरव का पर्याय समझने वाला पशु है.
अप्रैल 19, 2016 at 8:28 अपराह्न
akhilesh bind jaunpur up jai nisadraj
अप्रैल 20, 2016 at 2:53 अपराह्न
बहुत अच्छा बिश्लेसन है
अप्रैल 30, 2016 at 11:28 अपराह्न
भोसड़ी के हमें ख़ुशी होती की तूने इतिहास की कोई पुस्तक लिखी होती बजाय गंदे ज्ञान को यहाँ बखान करने के
अप्रैल 30, 2016 at 11:32 अपराह्न
ये भोसड़ी के मिसनरी वाले मक्का बाले नकली हिन्दू नामो से हिंदुओ को गुमराह कर रहे है और कुछ नहीं है ये
मई 2, 2016 at 1:49 अपराह्न
👍👍👍 ☺☺☺
मई 6, 2016 at 3:03 अपराह्न
अब (ये संस्कारवान प्रतिक्रया करने वाले महोदय की गाली जो उल्लेखित नही कर रहा हूँ यही सीखा है इन्होंने अपने मन बाप से शायद ये आर्य हैं ! मूल टिप्पड़ी और इन महोदय की आई पी एड्रेस सुरक्षित किया जा चूका है) मिश्रा तेरे पूर्वज कौन थे.. बाबर की औलाद साले मिश्रा बने घुम रहे हो
मई 15, 2016 at 7:51 पूर्वाह्न
Fir ek baat samaj nahi aayi ki jb aarya bharat ke nahi the to vo aaye tha se the or bharat me kon se dharam or jati ke log rehte the. Ya to aap mere sawal ka jawab doge nahi to aap bhi pandit ke naam par kalank ho. Agar sanatan dharam itna he bura hai to aap apna sir naam mishra kyu lagate ho. Aap bhi to pakhandi hue pandit ke naam pa ye naam bhi to aaryo ki den hai.
मई 23, 2016 at 1:15 पूर्वाह्न
आपका ज्ञान अत्यधिक प्रशंसनीय है परंतु इसमें त्रुटि इस बात की है की आपने शायद पहले ये नहीं जाना की आर्य थे कौन में आपके संज्ञान में डालना चाहता हूँ की प्राचीन भारत आर्यावर्त के नाम से जाना जाता था ! आप हिन्दू हैं तो शायद गोत्र जानते होंगे गोत्र इस बात का प्रमाण है की आप के वंशज किस छेत्र से थे क्योंकि रोजगार की तलाश में उन्हें अपने पैतृक स्थानों को छोड़ना पड़ा ल इसी प्रकार आर्यावर्त के कारण यहाँ के निवासी आर्य केहलाएल सीता जी राम को आर्यपुत्र ही कहा कराती थी शायद मोर्डेन जमाने में आपकी पत्नी आपका नाम लेती हो इस लिए आप इस तथ्य को भूल गए! अतः निवेदन है की लोगों में भ्रांतिया न फैलाएं पहले थोडा खुद को शार्प करें !
मई 24, 2016 at 8:18 अपराह्न
निहायत ही घटिया और बिना नॉलेज का लेख है ,ज्ञान नहीं है दे ज्ञान रहे है।
मई 26, 2016 at 9:54 पूर्वाह्न
लेखक नही बिना सिंग पूंछ का बैल है
अपने नाम को सिद्ध करके बता दे
इसका अर्थ बता दे
मई 29, 2016 at 4:55 अपराह्न
sabse pehle mein kehna chahunga ki aapko kisi varg ke liye itne gande shabdon ka prayog nahi karna chahiye. doosri bat, jin aryon par aap prashan kar rahe hain , onho ne kabhi manavta ke virudh prachar nahi kiya. vo to aaj kal kuch pakhandi hain jo aaryon ki mahan padhatti ka galat prachar kar rahe hain. mera aapse vinamr nivedan hai ki aap aadhe adhoore tathyon or gyan se samaj ko pathbhrasht mat kijiye. meri pratikriya padne ke liye dhanyavad.
जून 2, 2016 at 8:57 पूर्वाह्न
100% sach hain
bade dukh ku baat hain aach ye halat hain
जून 4, 2016 at 12:37 पूर्वाह्न
तेरा ज्ञान अधूरा है् सत्याथ्र प्रकाश पढ़
जून 10, 2016 at 2:52 अपराह्न
मै मिश्रा जी आप को बतना चाहता हूँ की लगभग सभी हिन्दू ये भ्रम पालते है कि बुद्ध के पिता सुद्धोधन हिन्दू धर्म के थे या हिन्दू थे ।
शायद उन लोगो को ये पता नहीं है की
जब बुद्ध पैदा हुए तब ना ही कोई धर्म था दुनिया में ना हिन्दू शब्द ही उपयोग में था ना ही संस्कृत भाषा थी और ख़ास बात ये की धर्म नाम का शब्द ही उपयोग में नहीं था ।
धर्म शब्द की उत्पत्ति ही धम्म से हुई है धम्म पाली शब्द है जबकि धर्म संस्कृत शब्द है ।
जून 11, 2016 at 6:26 अपराह्न
krishn mishr se bda pagal is duniya me koi nhi hga , ku ki is murkh ne itihas to pda hi nhi or jah gya vah ki bato pr yakin kr liya ,are koi is pagal ko btao ki shree ram ka janm lakho varsho phle is aryavart ki bhumi pr hua tha or ye 5000 saal purana bta rh ha or shree ram arya the or us samay is desh ka name aryavart isliye tha ku ki yah sirf arya the vo khi bhar se nhi aye the or itna hi nhi shree krishn bhi arya the . mera ap sabhi se anurodh ha ki is pagal ki bato pr yakin na kre ituhas ko pde or jah tk muje lgta ha ye ek Communist ha jiska dharm se koi lena dena nhi ha ye humare bich me ldai krwana chahta ha tki sbko Communist bna ske iski angrejo vli niti ha foot dalo or raj kro ye chahta ha ki sbhi Communist ho jae . to krishn mishr ji ydi apko pura gyan na ho to dusro ko brahmit na kre or apne ye jo title diya ha na ye bhut glat ha agr ap sach ko janna chahte ha to use ache se identify or analyse kijiye or nhi kr skte to mujse mil le …
जून 11, 2016 at 8:10 अपराह्न
बकवास करने के लिए कोई स्थान नहीं मिला? आपने कौन सा महान कार्य किया है? किराये पर लिखा या वेश बदलकर
जून 14, 2016 at 10:44 पूर्वाह्न
Jab tum achha bol Sakte ho, achha vyavahaar kr Sakte ho, baawjud iske ghatiya aur doyam darjey wali mansikta kqu h tumhari. Ek line ki baat h pyare. Aaj kl insaaniyat hi sb kuch h Mr. **********. gyani bhawisya aur vishwaash ki baat krtey h aur tumhara dill h ki manta nhi bas dubey jaa rhe h atit ki gahraayi me. dubne me mzaa nhi aata dost kvi future k samundra me tair kr dekho kya pta ek nyi zindagi mil jaye.
जून 17, 2016 at 10:02 पूर्वाह्न
Mere gap me ek Kafka h
जून 19, 2016 at 12:59 अपराह्न
USS sanskriti ko iss murkh lekhak n bade h I hasyapad udharan k saath prastut kiya h..Sanskrit devtao KI bhasha hai iss Bharat m sadaa gyan KI khoj rahi hai..zero SE lekar pushpak viman ka varnan saari duniya k saamne hai…Muslmano ne kuchh gyan diya nahi h,nahi Kuran m kisi avishkar ka varnan hai ,Jo inke kathit Allah me kiya ho…
jiyo aur Keene do,,,vasudev kutumbakam etc Bharat me schoolers KI den hai….Kamal verma
जून 21, 2016 at 5:25 अपराह्न
Doctor shahab , itihash ka vivechan aap ko khoub aata hai jara apne bate me bhi to likiye aap arya hai ya dravid ya varnshankar apne 15 nahi 10 hi purwajo ke bare me bataiye. ya ye arya kahan k niwashi they sahi sabuton ke saath bttaiye . apna gotra bhi bataiye . aap ko malum ho jaye ga aap kya hai.
जून 23, 2016 at 6:13 अपराह्न
I like this blog
जून 24, 2016 at 4:55 अपराह्न
असलियत से भरा आपका यह लेख मनुवादियो और अंधविश्वास फैलाने वाले अंधभक्तो को कील कि तरह चूभेगा। एकदम सटीक, धन्यवाद।
जून 24, 2016 at 9:16 अपराह्न
Inhe kuch nai pataa apne Mann se kahani banai or suna do ….arya vart or arya kya h ye nai jante….me sanatan dharm ka pataa h ….
Inhe apne asli nam b nai pata hoga…bat krta h
जून 24, 2016 at 9:38 अपराह्न
Mishra h apki apne pita g k baree me pataa h….no sanatan dharm ka majaq banaa raha h
जून 27, 2016 at 10:32 पूर्वाह्न
किस सूअर के बीज ने लिखा है ये हराम के पिल्लै सनातन संस्कृति के बारे मैं बोलने का अधिकार किसने दिया तुझे।
….अपशब्द !… के लंड हरामखोर कह रहा है आर्यो को (….ये महोदय कथित आर्य माँ बहन की गाली अंकित किए है, मूल टिप्पड़ी सुरक्षित है इनके लिए भविष्य में… )। आर्य का मतलब महान होता है नाकि कोई जाती गंडवे आर्य यही का सब्द है भारत मैं ही इसकी उतपत्ति हुई है। पांडवो के पूर्वज राजा भरत के नाम पर देश का नाम भारत पड़ा जबकि आर्यव्रत इसे पहले से ही कहा जाता है।
भोसड़ी के गलत ज्ञान मत बाँट
अगस्त 31, 2016 at 2:12 अपराह्न
उसकी छोड़िये ,,,,लेकिन आपने अपने मात-पिता द्वारा दिए गए खानदानी सनातनी संस्कारो का अलौकिक प्रदर्श किया है ,,,,,,,साधुवाद आपको
जून 28, 2016 at 11:20 अपराह्न
Mr Krishna prasd mishra aapke kehne ke anusar RAM & Krishna Indra ke gulam the Vishnu ke avatar Nahi aap lagta hai koi amar vyakti ho Jo us kal se abhi tak sab dekhte Aa rahe ho ya aapko ye gyan swayam mahadev ne diya say something acceptable
जुलाई 8, 2016 at 8:35 पूर्वाह्न
ya sab jo aap na likha h jhoot h is ma ek baat bhi sahi nahi h
जुलाई 13, 2016 at 2:11 अपराह्न
Mr Krishnakumar kya tum jante ho arya kise kahate hai? arya shrest vicharowale the..pakahnd vidya padkar koi pandit nahi banta tume jarurt hai Satyart prakash padne ki …..vijay pratap rana
जुलाई 13, 2016 at 2:16 अपराह्न
pehele bhosudi ke bache ,tu kya pada hai muje bata?aryon ke bare me kehene se pehle tu hai kya chij sale?
जुलाई 13, 2016 at 2:18 अपराह्न
perhle satyart parakash padle
जुलाई 20, 2016 at 4:46 अपराह्न
उपरोक्त सभी महानुभाव बहुत ही विशुद्ध आर्य यानी महान कुल व् संस्कार से पोषित हैं, यह जानने के लिए इनकी टिप्पड़ियों और भाषा का अध्ययन करें, ये आर्य या महान राक्षस कुल के संस्कारों से हीन पता नही किन की संताने है जो स्वयं में आर्य कहने लगी और इस सुन्दर प्राकृतिक छटाओं वाले देश को अपनी बपौती …वैसे टिप्पड़ी पढने के बाद ये कथित आर्य तो इस लायक भी नहीं लगते की इन्हें गुलामों की तरह मध्य एशिया में छोड़ आया जाए …हे ईश्वर इन्हें मुआफ करों ये गंदी और संस्कार हीन पैदैशों का नतीजा हैं जो खुद को आर्य कह रहे है, यकीनी तौर पर इन्हें अभी भी लोलने खाने और चलने का शवूर नही आया अभी तक, इन्हें नहीं पता ये क्या कह रहें है ….
नोट- इन उपरोक्त टिप्पड़ी कर्ताओं के आई पी एड्रेस चिन्हित कर सुरक्षित कर लिए गए हैं और मूल टिप्पड़ियां भी.
ये देश आर्यों से खाली हो चुका है …शायद वर्ण शंकरता के कारण इनके मस्तिष्क भी विकृत हो चुके …ढिढोरा पीटने में कुछ नही जाता चिल्लाते रहो पागलों की तरह स्वयं को श्रेष्ठ मूर्खों….वैसे निवेदन करना बेकार है इसलिए चुनौती देता हूँ दानवों की औलादों तुम्हे की लेख को दुबारा पढ़ें और सच्चे मन से स्वीकर्र करें अपनी गलतियाँ तभी इस सनातन संस्कृति के सही सदस्य बन पाओगे …
आभार तुम सभी मिश्रित रक्तबीजों का
कृष्ण
अगस्त 5, 2016 at 1:09 पूर्वाह्न
Tum bhi arya hi ho agar ye tumhara ai naam hai jungle logo ko aaryo ney insan banaya kyu ki us samaya sunkriti ki jarurt thi our jb sunkriti kuch jrurat sey jyada ho gye to kuch alag si sunkriti uski viprit sunkriti ney is sunkriti per Raj kia our apne dharma ko badhaya our ant mey tisri yani angrej aaye jinhone sab kuch ulat kr raaj kia our bahut si samajik kurutiyo ko bhi dur kia vo sunkhya mey km the isiliye logo ko APAs mey ladaya ye sari bate Jo aap kr rhe ho yhi ney sabko dikhai yhi tha dvide and tools …. unhone bhi apne dharma ko badhane ki kosis ki…. lekin aarya muslim our angrej tino ney pahle sey bahut kuch samaj sudhar bhi kiya hai…… kyu ki parivrtn hi prakriti ka niyam hai our duniya unhi niyamo hisab sey Chalti hai… samjjdar log achhi chij ko khud hi apnate hain our buri chijo ka tyag krte hain….. log free mey bramhado key bhukta nhi ho jate unhe kuch dikhai deta hoga unme……Dusri bat ye ki log apne mansik sukun k liye iswar per visvas krte hain apne jine ka Sahara mante hain jisse unko sukun milta hai isiliye vo ye sab kaam krte hain…our Iran ki pustako mey likhaa hai ki aarya Bharat sey Iran ki tarif aae the ye moolrup sey utter Bharat our panjaab key the…..samjjdari isi mey hai ki Jivan ko manusya aaj k jamane k hisab sey jiye kyu ki Purana log apne jamane k hisab sey jiye hain……..jyada itihaas khone sey koi mtlb nhi hai insan ko aaj ki jarurt our ujjwal bhavishya key bare mey sochha chahiye Aaya ya dravid rha hoga koi ab to sab Bharatiya hain koun kiske Sath kya kia ye chhod kr khud kya achha kiya jae ye sochha chahiye ab aaryo ko gali dene sey koi mtlb nhi hai jhhuthe adumbro krneour logo ko jagruk krne ka prays krne ki kosis krna achhi baat hai……
सितम्बर 30, 2016 at 12:03 अपराह्न
Sir apka ye lekh Sarahneey h. Sudbh likhne wale ko Yahi Pratikriya milti h.
नवम्बर 25, 2016 at 6:57 पूर्वाह्न
Jo Is lekh Ka Virodh kar raha hai vah jativad, Brahmanvad, Bahyaadambar, Andhvishvas, etc ke Poshak Hain.
जुलाई 26, 2016 at 1:38 अपराह्न
Krishna ji aapka nam to shrew Krishna k nam she h magar aap iske kayak nhi ho aarya dharm pe ungli utha rhe ho lagata h aapke pas kam nhi h or aapke pas santi to ho hi nhi sakti or to aapki jindgi me hoga hi nhi aap khud hi dekh lo apni jindgi ko aapko pta chal gya hoga lagta h aapne ramayan mahabharat katha nhi pdi nhi to aap aisa nhi likhate aap k bato se mujhe aisa laga aap apne aap ko bhut hi budhiman samajh rhe ho magar mere hisab se apke pass budhi nhi h aap budhihin ho krina ji jai shree ram bol diya kro tb sayad santi mile aapko apni kam budhi me isse jaroor gusana
अगस्त 1, 2016 at 3:38 अपराह्न
yah sara lekh hi galat
अगस्त 1, 2016 at 4:51 अपराह्न
आर्यों की चढ़ाई का या कहीं से आने जाने का पूरा कांसेप्ट ही झूठा है।
अगस्त 8, 2016 at 2:40 अपराह्न
Demons are taking birth from wombs of some “brahmin women” in Kaliyuga. The author seems to be one of those.
अगस्त 10, 2016 at 11:44 पूर्वाह्न
mujhe kuch samaj mein nahi aya
अगस्त 15, 2016 at 1:52 अपराह्न
अगर आर्य एक प्रजाति है तब तो तुम भी आर्य ही हुए! क्योकि तुम्हारी प्रजाति दुसरे भारतीयों से मिलती है. फिर हमें ये केसे ज्ञात होगा की कोन आर्य है या नही !
वास्तव में आर्य का शाब्दिक अर्थ होता है ज्ञानी लोग ! अगर तुम ज्ञानी हो तो तुम भी आर्य हो और अगर प्रजाति के रूप में देखे तो सभी गोरे लोगो को आर्य मानना होगा उस प्रकार से भी तुम आर्य ही हुए ! और अगर आर्य दूसरे देशो से आये हो तो कोनसे देश से आये है वो भी बता दो की किस देश के लोगो की प्रजाति अर्यो से मिलती है ! इस लेख से ज्ञात होता है की तुम कितने मुर्ख हो ! तुम्हारे पास इतिहास का कोई प्रमाण नही बस जो बात मन में आई उसे सत्य समजकर लिख दी !
अगस्त 23, 2016 at 6:44 पूर्वाह्न
tumhare jaise kutte hi aaj desh ko khaa rahe hain, apne maa ke doodh ka yahi karz chuka rahe hain. mc,bc,dc
अगस्त 23, 2016 at 7:34 अपराह्न
ऐ मूर्खो के राजा सब से पहले तो तुम अपना नाम बदल लो क्यों की तुम ने या तुम्हारे माँ बाप ने मुर्खता वश या अनजाने में तुम्हारा नाम एक महान आर्य के नाम पर रखा हुवा हे जो की हमारे भगवान् हे और सयोगवश वो भी करीब ५००० साल पहले द्वापर यूग में इसी भारत में जन्मे थे मगर में तुम जेसे जड़ बुद्धि को ये क्यों बता रहा हु तुम तो मतिभ्रम में जीने वाले लोगो में से हो जो अपनी उलजलूल बेतर्क बातो से सिर्फ हिन्दू धर्म के अनुयायीयो को गुमराह कर ने की कोशिश कर रहे हो और सच कहू तो मुझे तो तुम्हारा नाम और id भी झूठी लगती हे अब तुम कहो तुम किस मिशनरी के लिए काम करते हो क्यों हिन्दुओ को बाँटने में लगे हो वेसे भी सनातन धर्मं इतना मजबूत हे तुम जेसे हरामखोरो की इन कुटिल चलो में नहीं आने वाला
अगस्त 23, 2016 at 8:02 अपराह्न
ऐ मूर्खो के राजा पहले तो तू अपना नाम बदल ले क्यों तू ने या तेरे माँ बाप ने अनजाने में या मुर्खता पूर्वक तेरा नाम दुनिया के महान आर्य के नाम पर रख दिया हे अरे ओ जड़ बुद्धि ये बता के किस इसाई या मुस्लिम मिशनरी के लिए काम कर रहा हे और कितने में बिका हे वेसे मुझे तो तेरी id भी नकली लगती हे और तेरा नाम भी
अगस्त 31, 2016 at 7:27 पूर्वाह्न
Bahut jahar bhra hai apke man me apke man me apni hi sanskriti ke liye analysis karne ki kala me aap mahir hai isme koi sak nahi accha aap apna dharma batai ya aap kali das hai jo usi dal ko kat raha hai jis par baitha hai
सितम्बर 1, 2016 at 11:16 पूर्वाह्न
kisi ke vicharo ko ghatiya batane se pehle hamare paas bhi behter vichar hone chahiye kisi ko gali bak ker hm bade nahi ho sakte ye hamari nimnta ka parichayak ho sakta h lekhak ka nahi
सितम्बर 5, 2016 at 1:29 पूर्वाह्न
आपका विश्लेषण पढ़ा पर लगा आप अति बुद्धिजीविता के शिकार है।हमारे पुराण और देवताओ की कथाये एक खजाने की तरह है जिनमे बड़े ताले लगे है और कुंजी कही खो गई है।इसलिए कुछ मूर्खो को भ्रान्ति होना सम्भव है।किन्तु सिर्फ आकर्षण और ध्यान खीचने हेतु अभद्र भाषा का प्रयोग बदतमीज़ी के सिवा कुछ नहीं।
बुद्धि का सदुपयोग सामयिक ढंग से करना एक कला है उस पर अवश्य विचार करे।
सितम्बर 5, 2016 at 6:44 अपराह्न
Kon he be tu arya he ke koi or
Bhenchod desh me rehna mushkil ho jayega
सितम्बर 11, 2016 at 11:10 पूर्वाह्न
मै आपका शुक्र गुजार हु हमे हमरी दुनीया हमरा ऊप जीव कहसे हुवा हम भारत को पुरी तरहा जान पाये या भुल भुलै या है.मेरे वतंन वासीयो को जड से जडतक हमारे सात क्याण हुवा हमरे संतो के पास क्याँ पावर थी, गोरे लोग चिंन जपान अफ्रीकां,ये हमरे देश को कीयु चहके है अपनाना कैलास सरओर जंमु ईन जगह.जहा अंमरुर्त खोजा जहा रहा है कोने से कोनेतक खोजो अपने भारत का ईतीहास, जय मॉ भारती
सितम्बर 20, 2016 at 12:14 पूर्वाह्न
भगवान पर विस्वाश रखो.तुम जैसै ही लोग दूसरों को नासितक बऩाकर देश का नाश कर रहे हैं.
सितम्बर 25, 2016 at 3:44 पूर्वाह्न
Beta sach kabhi khatam nahi hota.. Vo kuch na kuch zarur chod jata hai.. Matlab sach purn roop se khatam kabhi nahi kiya ja sakta. Jab aary tab sabhi purane granthon grathyon ko nast kar diya.. Esliye ram ke rajya se pahle ka pura etihas nahi milta . jo aaj tak jitna etihas milta hai vo 4-5 hazar saal purana hai.. Jab k dharti par jeevan kam se kam 1crore saal pahle se to hai.. . or rahi manu smirti k agar vo manu 1000 saal bhi jiya hoga ya esse jayda to bhi 10, 000 saal to 10, 000 purana hi hoga.. Jab k ek grah ka jeevan 5 arab saal hota hai. Jabki prathvi 4arab saal se hai ya bani hai. Or abhi vinas na kiya to 1 arab saal ya esse kam ya jayda chal sakti hai.. Or yadi bhogolik saktiyon ka prayog kiya gaya to kabh kabhi bhi. Ab batao aaryon k tum kab paida huye. Or kaha se tumahari jampatrika hai. Or ye bhi sach k sabhi manav jati ka janam sirf bharat se ho ye to ho nahi sakta kyuk jab prani k utpatti pani se huyi hai. To pani sab jagah tha. Matlab har mahadveep ke pas to sirf yasia mahaveep me hi kyun paida hogi. Manav jati
Bilkul jhuth hai. Manu smirty kyuk jab ese likha gaya tab ye nahi pata tha k saatmahadveep hai. Unhe sirf etna pata tha k yasia hi mahadveep hai. Or unhe sab pani hi pani dikha. Or unhone granthon me likh diya k dharti pani dubi huyi hai or tair rahi hai. Jaise jaise logon ko pata chalti gayi.ye batain bhi lupt hoti gayi. Ha ye bhi sach hai aary bahar se aaye the. Kis raste se aaye the use kisi darre ke naam se jana jata hai. Bharat k mooljatiyan dravin or kuch bhi hai. Sabse pahle bharat aaryon ka raj phir mushlimano ka phir angrejon ka. Phir angrejon se azad bharat.. Par log azad nahi huye. Or aaj bhi gade murde nikal ke dekhte hai.. K hamara kon sa hai… Actually me ham prathvi ke vashi hai.. Bas or kuch nahi… Desh jati dharam shimayan ye sab hamari banayi huyi hai.. Or log sirf usme hi rahte hai. Ye hamare liye banayi thi. Na ki ham un ke liye bane hai.. Esliye kisi par raj karna, atyachar karna , shoshan karna ya kisi ke sath galat karna thik nahi.. Kyuk samay vahi sab kuch duhrata hai. Aryon ne yaha ke logon par raj kiya. Phir yaha mugal aaye unka raj. Phir angrej aaye.. Par ek bat samaj nahi aayi angrejon ne bhi galat kiya shoshan kiya. Sab kiya jo aryon ne kiya or mugalon ne kiya.. Samay ne enka hisab barabar kiya.. Par angrejon par kisi ka raj kyun nahi hua.. Yaisa kainse ho sakta. Koi batayega…
सितम्बर 25, 2016 at 11:24 अपराह्न
galat
सितम्बर 28, 2016 at 11:19 अपराह्न
अरे m.c
pahle itehas padh le pura , phir bolna , nahi to Pell denge
सितम्बर 28, 2016 at 11:21 अपराह्न
अरे m.c
pahle itehas padh le pura , phir bolna , nahi to Pell denge
Bahinchod haramkhor to Tum hai re mdrchd
अक्टूबर 6, 2016 at 2:54 पूर्वाह्न
ye jankar achha laga ki jo apane ko shresth kahate hai unko soch kitni ghatia hai dharm sahi soch karm ko dharan Karane ki chij hai wo koi jati vishesh ki bapauti nahi ho sakti .
अक्टूबर 12, 2016 at 3:02 अपराह्न
aarya hi sarvshreshth he isiliye hajaro salo shasan kiya he or aaj bhi kar rahe he
अक्टूबर 12, 2016 at 3:03 अपराह्न
aarya hi sarvshreshth he isiliye hajaro salo shasan kiya he or aaj bhi kar rahe he
अक्टूबर 19, 2016 at 5:55 अपराह्न
Are iss haram khor ko khud ka pata nahi aaryo ki history bata raha h wo bhi sab mangadhant.. Jhuti suni sunayi bate.. Ye pakka koi muslim h jo nakli naam se post kr rha h.. Haramkhor kamina.
अक्टूबर 21, 2016 at 6:59 अपराह्न
kyon aaryo ne kya tery behen chodi hai ghasti
अक्टूबर 22, 2016 at 8:42 अपराह्न
आप अपनी बड़ाई के लिये इतना गिर जाओगे सोंचा नही था… अरे भाई आपने जो बाते बताई वो आज के ज़माने मे सही है परन्तु वो समय समाजिक व्यवस्था को सुधारने का समय था आज हम जिस स्थान पर है वो उसी समय की देन है हमारा स्वभाव है की हम किसी कहानी मे अच्छी बाते छाँट लेते है और बुरी बातो को झूठी वाहवाही पाने के लिये बढा चढ़ा कर बताते है इसी से नयी सोच बनती है नया ज़माना आता है ये तो वोही बात हो गई कि मै कहूँ कि मेरे कुल वालो को उस ज़माने मे किसी ने जीन्स नही पहनने को दी आप बताओ कि क्या हमारे वैदिक ग्रंथ है उनमे क्या नये वाक्य जोड़कर ब्राह्मणों ने मध्य कालिन इतिहास मे क्या अपना स्वार्थ सिध्द नही किया आप पता नही कहाँ कहाँ से बाते उठाकर ले आये ! हाँ ये बाते आप सही कह रहे हो कि आज के ज़माने मे वोही पुरानी सोच बच्चो को पढ़ा रहे है वो सरासर गलत है…. और मै खुद विस्मित हूँ कि आपने आर्य हिंदू धर्म पर ही उँगली उठाई जिससे संसार प्रभावित है जो लोगो को भाई चारे का समाज स्थापित करता है जहाँ एक चींटी को भी मारना पाप समझा जाता है ऐसे मासूम निर्दोष धर्म को आप पता नही क्या क्या कह रहे है…… और हाँ सबसे पहले आँख पर पट्टी तो आपके बँधी है जिससे आप धर्म की अच्छाई नही देख पाये…. !! मै नही जानता था कि ऐसा भी कोई वेब पेज होगा… हो सके तो दिमाग को शांत कर सोचना ज़रूर और बुरा लगा हो तो छोटा भाई समझ कर माफ कर देना !! धन्यवाद
नवम्बर 9, 2016 at 4:22 अपराह्न
Aap ne galat tippani ki hai ap bhartiy sanatan hinduwo ka apman nahie kar sakte bhagwan aap ko katayi maf nahi karega.aadi sakti ki jai ho.
नवम्बर 11, 2016 at 5:03 पूर्वाह्न
तुम कितना गलत हो या कितना सच्चे,,,यह लेख ही बता रहा है,,,
सब पढने पर यह साबित हो रहा है,,, कि तुमने अपने तुच्छ जीवन मे ,,,अपने पुरखों व सनातन काल की सारी महिमा को गलत बताकर,,,
स्वयं तुम पंडिताई दिखा रहे हो,,,
तुमसे बडा चंडाल इस धरा पर कभी जन्म नही लिया होगा,
नवम्बर 14, 2016 at 4:34 अपराह्न
aap jese hi videshi vicharoke swadeshi log samaj ko gumraah karnaa chahtehe aur bhart todna chaahte hai.
नवम्बर 14, 2016 at 5:44 अपराह्न
Tu kon he?
नवम्बर 14, 2016 at 5:51 अपराह्न
Aabe sunn mai ravan hu or jada ud mat varna ud jayega
नवम्बर 15, 2016 at 4:56 अपराह्न
krishna kumar mishra ji aap ke har bakyo par sabdo ka jo prayog he , our uska jo sabdarth he our bhawarth he usse pata chal jata he ki aap kitne siddh our suddh purus he , is desh ko our desh ke mul saskriti jane ke liye jo bidya adhyan ki abasykta he uske liye lambi umra ki darkar he ,uske sath sath swasth mastik ke jarurat he , jo aap ke ander ratti bhar nahi he ,
नवम्बर 17, 2016 at 4:21 अपराह्न
kalpanik dharm pe comment karna band karo bevkufo aur apne samay ko achhe karm me use karo jaisa karm karoge vaisa hi paoge life is limited baar baar nhi milegi ps dont waste your time
दिसम्बर 4, 2016 at 4:11 अपराह्न
आपने लेखा में जो कुछ लिखा वह तो पोंगा पंथियों के बारे में लिखा. आर्य तो श्रेष्ठ को कहते हैं. जो सत्य को स्वीकार करने तथा असत्य को त्य्गने के लिए तैयार रहें. क्या आप बताना चाहेंगे की वेद कौन सी भाषा में लिखा गया है. उस वेड में क्या असत्य है.
दिसम्बर 4, 2016 at 4:15 अपराह्न
आपने लेखा में जो कुछ लिखा वह तो पोंगा पंथियों के बारे में लिखा. आर्य तो श्रेष्ठ को कहते हैं. जो सत्य को स्वीकार करने तथा असत्य को त्य्गने के लिए तैयार रहें. क्या आप बताना चाहेंगे की वेद कौन सी भाषा में लिखा गया है. उस वेद में क्या असत्य है?
जो आप दिखा रहे हैं यह वैदिक नहीं हैं ए जीविका चलाने के लिए भेष बनाये हुए लोग हैं. यदि सत्य का पालन करने वाले लोग होते तो समय तथा कर्तव्य का जिम्मेदारी से निर्वहन करते. ऐसे लोगों से समाज को भटकाव मिलता है दिशा नहीं.
दिसम्बर 4, 2016 at 4:27 अपराह्न
आर्यों का स्कूल देखना हो तो गुरुकुल चोटीपूरा अमरोहा तथा अन्य आर्य गुरुकुल में जाकर निरपेक्ष भाव से अध्ययन कर लें. उसके पश्चात ही कोई टिपण्णी करें तो अच्छा रहेगा.
दिसम्बर 7, 2016 at 5:43 पूर्वाह्न
Abe case to tere pe hona chahiye kisi ki bhavana ko thes lagane pr krishn kumar mishra
दिसम्बर 9, 2016 at 8:32 अपराह्न
Ye baat sach hai ki hamare desh ki janta abhi bhi aaryon ki gulam hai kyonki aaj bhi janta unke banaye huye dharmacharyon ke anusar hi chal rahi hai agar ham sab ak manav banna chahte hai to hame sabhi purani parampraaon aur dharm kanoono ko tyagna parega
दिसम्बर 12, 2016 at 12:54 अपराह्न
Tumharay jaise agyani logo kay bare me ek hi baat hai .. you bastards… who can not feel good on great history of Bharat… jab mahabhart aur ramayan kal tha… tab baki duniya varaksh per ye caves me raha kerti thi….
दिसम्बर 20, 2016 at 5:31 पूर्वाह्न
Abe ghatiya insaan agar aary videshi the to vo kaase ke shashtr bana kaise jante the
Kaase ka gyan sirf haddppa ke logo ko tha
Tughe kuch pata bhi h ky
Paglo ki tarah bolta ja raha h
Or ha agr aary videshi the to vo bharat bhumi se itna prem kyo krte the
Kyo rigved me baar baar bharat ki hi mahima gaayi gayi hai
Madhy asia ya iran ki kyo nahi
जनवरी 5, 2017 at 10:34 अपराह्न
यह साला हिंदु के नाम पर कलंक है जो अपने ही धर्म को गाली निकाल रहा है
फ़रवरी 27, 2017 at 10:41 अपराह्न
सही कहा आपने ये मूर्ख लेखक भारत के इतिहास के बारे में जानता नहीं।आर्य और द्रविड़ दोनों भारत में ही रहते थे।जिस प्रकार एक बाप की औलाद एक जैसी नहीं होती उसी प्रकार आर्य और द्रविड़ दोनों एक ही बाप की औलाद है।जिसने अपना जीवन स्तर उच्च कर लिया उसे आर्य कहा जाने लगा।ठीक उसी प्रकार जैसे कोई डॉक्टर बन जाता है, कोई वकील बन जाता है, कोई मज़दूर बन जाता है।
दिसम्बर 21, 2016 at 8:56 पूर्वाह्न
सत्य वचन मित्र
दिसम्बर 22, 2016 at 9:29 पूर्वाह्न
Sabse pehle me aapko bta dun ki hamare desh Ka naam aryavart kyon pda , apne mahabhart ko pda hi hoga mahaabhart me shri Krishna ko, arjun ko , karn ko, duryodhan ko, ashtavthama ko baar baar arya ya arya putra kaha gya h or Ramayana me ram ko arya kahaa gya hai to aap ye btaye ki shri ram, shri krisn, arjun ye Sab vides se aaye hai, hamare desh me Sab vaykti arya the isliye haare desh Ka naam aryavart pda tha ,
Arya muslmaano Ka or paakhandiyo Ka virodh krte hai isliye muslmaan log or paahkandi log aryon Ka virodh krte hai or muslmaan log videsh se aaye the isliye muslmaan aryo Ka virodh krte
Sanskrit bhaasa mein arya Ka arth hota h mahan
Ved ko badne waalo or vedo ke maarg per chalne waale logo ko arya kahte hai
जनवरी 5, 2017 at 9:46 पूर्वाह्न
WHO ARE YOU
जनवरी 5, 2017 at 9:49 पूर्वाह्न
arya videsi the to pehle kya yha gadhe rahte the en logo ne aryo ki bat mani kyo kyo ved sweekar kiye
जनवरी 6, 2017 at 9:46 अपराह्न
Dogla ķùmar mishra tu arya nahi to kon hai
जनवरी 7, 2017 at 2:02 पूर्वाह्न
इतना बड़ा शोधपत्र इतनी मेहनत, निश्चय ही मिश्रा जी ने अत्यंत सराहनीय कार्य किया है।एक शब्द कई बार आया आपके लेख में वर्णशंकर तो सच में आप में वर्णशंकरई कूट कूट क भरी है।और हा इन गुरुकुलों क बच्चों पे ऐसी बात बोलते हो अगर गुरुकुल गए होते तो इतनी धूर्तता नहीं आती तुम में।माना आर्य बुरे थे झूठे थे परंतु तेरे कहने के अनुसार हे भारत क मूल निवासई अपना नाम तो सही लिख
जनवरी 25, 2017 at 6:45 पूर्वाह्न
मेरे ख्याल से आपने भारतीय इतिहास को सही दृष्टि से नहीं बल्कि मैक्समूलर और व्हीलर की दृष्टि से देखा है जो हर बात का निरिक्षण किये बिना भी अपनी बात को ही अग्रिम रखते हैं सबसे पहले आपके भ्रम दूर होने चाहिए
पहली बात ये है कि सिंधु सभ्यता कैसे ख़त्म हुई ये बात अभी भी उलझी हुई है और इसके नष्ट होने का कारण कोई एक नहीं बल्कि कई कारण है
और जहा तक व्हीलर के आक्रमण की बात है तो आक्रमण के चिन्ह तो सैंधव स्थलों से ना के बराबर पाये गए हैं
ना तो कोई हथियार पाये गए हैं जो युद्ध के दौरान प्रयोग हुए हों अगर आक्रमण हुआ होगा तो स्वाभाविक है कि उसमे हथियार भी प्रयुक्त हुए होंगे
व्हीलर ये बात जबरदस्ती तो कहते हैं कि आक्रमण हुआ होगा पर ये नहीं बता पाते कि
की क्यों उन्हें लेट हड़प्पा काल में युद्ध में प्रयुक्त एक भी हथियार नहीं मिला
मोहनजोदडो से शव तो मिले है पर एक भी कंकाल ऐसा नहीं मिला जिसकी मौत युद्ध में हथियारों से हुई हो कोई बीमारी से तो कोई अपनी स्वाभाविक मौत से मरा था
विद्वानों के अनुसार लेट हड़प्पा काल में एक भी हथियार या युद्ध के साधन नहीं मिले और न ही वो कंकाल मिले जो युद्ध में मरे होंगे और न ही सैंधव नगरो में तोड़ फोड़ और हिंसात्मक कार्यवाही हुए जैसा कि युद्ध में अक्सर होता है
यहाँ तक कि जिस समय को व्हीलर भारत में आर्यों के आगमन का समय मानते हैं उस काल में भी
हड़प्पा सभ्यता के कुछ अंश सिंधु प्रदेश में 1500 ई पू से 1300 ई पू तक चलायमान थे
जो जो इस बात का प्रमाण हैं कि उन्हें किसी आक्रमण का सामना नहीं करना पड़ा और सैंधव नगरों को धीरे धीरे छोड़ा गया है जो प्राकृतिक आपदाओं के कारण ही संभव है
पाश्चात्य विद्वान जॉर्ज डेल्स के अनुसार आर्यों के सिंधु सभ्यता पर आक्रमण का उद्देश्य ही समझ में नहीं आता क्यों कि आक्रमण लूटपाट व स्थान पर कब्ज़ा करने के उद्देश्य से होता है पर सिंधु सभ्यता अपने अंतिम समय में विकृति के दौर से गुजर रही थी बाढ़ और मौसम की मार ने सैन्धवों को नगर छोड़ने पर मजबूर कर दिया था फिर इस हाल में जब सैन्धवों के पास कुछ न बचा हो
उन पर आक्रमण का उदेशय समझ में नहीं आता वो उस प्रदेश को भी धीरे धीरे स्वयं ही त्याग रहे थे क्यों कि एक तो वहां खेती जिस पर उनका जीवन निर्भर था नष्ट हो गयी थी और क्यों की ये एक शहरी इलाका था इस कारण वे लोग वहां पशुपालन भी नहीं कर सकते थे इसी वजह से उन्हें ये प्रदेश त्यागना पड़ा
एक बात और व्हीलर बार बार आर्यों और सैन्धवों में अंतर दिखाने के लिए बार बार ये दर्शाते हैं कि सैन्धव हथियार नहीं बनाते थे जबकि आर्यों के पास काँसे के हथियार होते थे
ये बात सही हैं कि सैन्धवों के पास काँसे और ताँबे के केवल औजार थे जो खेती करने और फसल कटाई के काम आते थे
जबकि आर्यों के पास काँसे के बेहतरीन हथियार होते थे जिससे से उन्हें सैन्धवों को जीतने में आसानी हुई होगी
चलो ठीक व्हीलर साहब की ये बात को टाला नहीं जा सकता
लेकिन एक बात व्हीलर साहब भूल रहे हैं आर्यों के पास काँसे के हथियार थे
लेकिन काँसा एक मिस्र धातु है जिसे बनाने की रासायनिक विधि केवल सैन्धवों को ज्ञात थी
जी हाँ व्हीलर इस बात को कैसे भूल गए कि मिस्र धातु बनाने की कला को सर्वप्रथम सैन्धवों ने ही विकसित किया था और काँसे का निर्माण भी सर्वप्रथम सैन्धवों ने ही किया था
इसी कारण सिंधु सभ्यता को काँस्य युगीन सभ्यता भी कहा गया है सैन्धवों के अलावा काँसा बनाने की रासायनिक विधि का ज्ञान उनके अलावा न ही सुमेरों को काँसे का ज्ञान था और न ही मध्य एशिया के लोगों को और अगर आर्य मध्य एशिया से बाहर से आये थे तो उन्हें काँसे का ज्ञान कैसे हुआ
विद्वानों के अनुसार ये तो सच है कि सैंधवों के पास हथियार नहीं थे केवल काँसे के औजार ही थे
लेकिन औजारों को हथियार बनने में देर नहीं लगती ये बिलकुल संभव है कि पहले जिन्हें औजार की तरह इस्तेमाल किया जा रहा हो बाद में जरुरत पड़ने पर उन्हें हथियार की तरह इस्तेमाल करने पर धीरे धीरे 50 60 साल के बाद वो पूर्णतः हथियार बनाना सीख गए हो और वैसे भी आर्यों के पास हथियार 1300 ई पू के बाद पाये गए हैं इतने लंबे समय में औजारों का हथियार में परिवर्तित होना आश्चर्य नहीं है
विद्वान् इस बात से भी पूर्णतः सहमत नहीं हैं कि सैंधव हथियार बनाना ही नहीं जानते थे क्यों सब जानते हैं कि सैन्धवों का व्यापारिक सम्बन्ध सुमेरवासियों और मिस्रवासियों से था और इन सभ्यताओं के निवाशी बेहतरीन हथियार बनाना जानते थे और इनके भान में आकर सैन्धवों को हथियार बनाने का ज्ञान न हुआ हो ऐसा संभव भी नहीं लगता और बिना हथियारों के सैन्धवों 1000 1200 साल तक अपने आप को कैसे बचाया ये भी सोचने वाली बात है
ये भी कल्पना की जाती है की सिंधु सभ्यता से हथियार कम मिलने एक कारण यह भी है क्योंकि परिवर्ती काल में उन्हें ये प्रदेश त्याग कर जंगली इलाकों में जाना पड़ा था जहाँ वे अपनी रक्षा के लिए औजार ना ले जाकर हथियार ले गए होंगे जिस से नगरों में हथियार नहीं मिले
लेकिन कमाल की बात है जहाँ विद्वान् अभी तक ऐसे ही तथ्यों तक पहुंचे हैं
लेकिन लेखक महोदय बिना सोचे समझे उन से भी आगे पहुँच गए
कृष्णा कुमार जी आप बिना निष्कर्ष के ऐसे बी कैसे कुछ भी बोल सकते हो
आप इस तरह लिख रहे हो जैसे कि आप के पास पूरे सबूत हो जब आपको कुछ पता ही नहीं है तो फिर आपकी ही बात किस तथ्य पर सही हो सकती है बिना तथ्य के व्यंग कसने पर आपको बैन करना चाहिए
जनवरी 28, 2017 at 7:20 अपराह्न
ham shree krishna kumar ji se sahamat hu
फ़रवरी 5, 2017 at 1:43 पूर्वाह्न
After reading this I am confused. Who is haraamkhor ?
Whether you or arya
फ़रवरी 5, 2017 at 1:46 पूर्वाह्न
After reading this I am confused. Who is haraamkhor? Whether you or arya….
फ़रवरी 5, 2017 at 9:12 पूर्वाह्न
अबे मूर्ख कम्युनिस्ट अगर तुझे इतना ही ज्ञान है तू इस पर एक किताब ही चाहते ऑल इंडिया लेवल में फिर देख तेरा क्या हाल होता है
फ़रवरी 8, 2017 at 8:24 पूर्वाह्न
पहले तो भारत का इतिहास जिसने लिखा उसे ना तो इतिहास लिखने की न कोई अकल है और नहीं तहजीब इतिहास के नाम पर इन्होंने मजाक लिखा हुआ है
इतिहास लिखने वालों ने कुछ यूं इतिहास लिखा है
आर्य 1500 ई पू से 1000 ई पू तक सिंधु प्रदेश में रहते थे
आर्य अभी तक गंगा यमुना मैदान यानी वर्तमान उत्तर प्रदेश और बिहार से परिचित नहीं थे क्यों कि इस काल की जानकारी
ऋग्वेद देता है और ऋग्वेद में गंगा मैदान का वर्णन नहीं है इस से सिद्ध होता है कि आर्य इस जगह से परिचित नहीं थे
लेकिन आर्य हिमवंत से परिचित थे क्यों कि ऋग्वेद में हिमवंत का वर्णन है
अब सबसे पहली बात ये कि हिमवंत क्षेत्र यू पी व बिहार के उत्तर में पड़ता है
और हिमवंत जाने के लिए इन दोनों प्रदेशों को पार करना पड़ता है
अब अगर आर्य गंगा मैदान से परिचित ही नहीं थे तो फिर वो हिमवंत कैसे पहुँच गए भाई ये तो खुद सोचने वाली बात है
यही नहीं एक जानी मानी इतिहासकार रोमिला थापर
इनका मानना है कि आर्य भारतीय नहीं थे क्यों? क्योंकि अगर ये भारतीय होते तो ये यहाँ के मूल जानवरों जैसे हाथी शेर गैंडा आदि से परिचित होते
अब ये कैसे आप कह सकते हो कि आर्य हाथी शेर और गैंडे से परिचित नहीं थे
इस पर रोमिला थापर लिखती हैं कि इनके प्रथम ग्रन्थ ऋग्वेद में इन पशुओं का जिक्र नहीं है
लेकिन अन्य वेदों में तो इन पशुओं का जिक्र मिलता है
तो इस पर रोमिला जी लिखती हैं कि जब अन्य वेद रचे गए तब तक आर्य भारत में घुल मिल गए होंगे और उन्हें भारत के बारे में जानकारी हो गई होगी लेकिन ऋग्वेद मे इन का जिक्र नहीं है क्योंकि इस समय तक आर्य भारत से उतने परिचित नही थे
तो सबसे पहली बात यह कि ऋग्वेद एक भजनों का छोटा सा संग्रह है और इसमें ज्यादातर केवल देवों की उपासनाओं के ही मन्त्रं हैं और इससे जो भी जानकारी प्राप्त होती है वो केवल 30 प्रतिशत ही है और इतनी छोटी सी किताब के माध्यम से आप आरोन के बारे में पूरी जाएंकारी तो हासिल कर ही नहीं सकते
लेकिन ये सब जानने के बाद भी रोमिला जी ने उपर्युक्त पंक्तिया इतिहास की किताबों में छाप दी
मतलब रोमिला जी के हिसाब से अगर ऋग्वेद में मल मूत्र का वर्णन नहीं है तो आर्य मल मूत्र से परिचित नहीं थे ऋग्वेद में लंगोट का वर्णन नहीं है तो आर्य लंगोट से परिचित नहीं थे
ऋग्वेद में आँख कान नाक दांत का वर्णन या अन्य अंगो का वर्णन नहीं है तो आर्य इन सब से परिचित नहीं थे
आईएम
न वाम्पन्ति इतिहासकारो ने भारतीय इतिहास का एक तरफ से मजाक बना के रख लिया है
जो ऋग्वेद में वर्णन है वो आर्यों को पता था और जो इसमें नहीं लिखा है वो पता नहीं था
अब उनसे पुछा जाय कि ऋग्वेद में तो एनी वेदों सामवेद और यजुर्वेद का भी नाम आता है तो फिर इसका मतलब उस समय भी इन वेदों का अस्तित्व था तो ये इस पर एकदम न कह देते हैं क्यों कि इन वेदों में भारतीयता का विस्तृत वर्णन है और इनमे नागरिक जीवन की अमित छाप दिखाई देती है
फ़रवरी 14, 2017 at 2:05 पूर्वाह्न
Madarchod ke bachhe hidu naam rakh le ne se tu hindu nahi ho jaye ga be madarchod islam ke aulad…islam =pig,filth etc.
Tera khud ka dharm ganda hai aur dusre ke dharm k bare me gandi baaten failata hai be madarchod allah ke loude…
फ़रवरी 16, 2017 at 11:20 पूर्वाह्न
बहोत सही टिप्प्णी की हे आपनें
फ़रवरी 20, 2017 at 6:54 पूर्वाह्न
achha hota aap esi bat Isai or muslim dharm guru ke me bhi likhte bhart ki snskriti ko hindu ne hi bachai he aryo ko haram khor khte huye aapko sarm aani chahiye
फ़रवरी 21, 2017 at 8:07 अपराह्न
ys u r write …. they r biggest hramkhor of. India
मार्च 14, 2017 at 7:02 पूर्वाह्न
बहुत अच्छे बिचार है समाज को जाग्रत करने के लिएबहुत धन्यबाद क्या इन कुरूतियो को खत्म किया जा सकता है हाँ कुछ हद तक परिबर्तन हो हुआ है तो क्या हम आज आजाद हैआज भी पुराने कुरीतिया का असर देखने को मिलता है।नीरज कुशवाहा प्रधान कैथवां #
मार्च 21, 2017 at 11:13 अपराह्न
कृष्ण कुमार मिश्र “धर्म के नाम पर आश्रम, मंदीर, ये सब कलियुग मे होता है.. और ये कलियुग है कोई द्वापरयुग, त्रेतायुग नही.. ऊस जमाने मे येसा कुछ नही होता था.. और आप भी ईसी युग का हिस्सा हो ईसीलिये येसी मनघडत बाते कर रहे हो..
और रही बात पुरे post की, तो आपको ग्यांन कि जरुरत है.. ….
मार्च 25, 2017 at 5:19 अपराह्न
Mishra,
Do you know who was KRISHNA? What is his place in HINDUS heart?
You should first of all drop ‘KRISHN’ from your name, It does not seem appropriate there and prefix ‘HARAM KHOR’. HARAM KHOR MISHRA most suits you.
Hope you will consider the suggestion seriously.
I am
your well wisher.
मार्च 26, 2017 at 11:21 पूर्वाह्न
Sale tere ko pta h mahabhart or ramayan m b aryao ka jikar h or sabi ko arya putr kaha gya h.
मार्च 26, 2017 at 11:27 पूर्वाह्न
Tere ko kya pta mulle ki olad ja kr dna test krwa le..
Mahabhart or ramayan m b aryao ka jikar h.
Ye desh aryao ka tha or rhega isliye to ye pahle aryavart-hindustan-bhart-india ban gya. Tere jese ki vajje se..
अप्रैल 6, 2017 at 9:04 पूर्वाह्न
समाज को हकीकत का आइना दिखाने के लिए आपका धन्यवाद।
अप्रैल 13, 2017 at 12:28 पूर्वाह्न
Kyun yeh sab likh kar jatiwad ko badha rahe ho aur bhi bahut kuch hai likhne k liye kuch achha likho jisse logon ko sabhi dharmagranthon k bare mein achhhi jankari prapt ho. Television par to keval vo hi dikhaya jata hai jo unhen lagtahai k isse janta entertain hogi. Par janta gumrah ho rahi hai. Please aaplog granthon mein achhaion ko dhundhe phir dekhein k hamara samaj kotni tarraki karta hai.
अप्रैल 21, 2017 at 12:54 अपराह्न
Kya aap arya nahi ho,kevl shudra hi eaisi bat bol sakte hai.
अप्रैल 29, 2017 at 10:57 अपराह्न
Bakwas likha hai ,aryaon ke mahan charitra to ise pata hi nahi.arya kise kehte hai.maharishi Dayanand saraswati likhit “satyarth prakash”, pado.konsi bhi vishay ke bare me likhne se pehle jarur us vishay ko samjo.tumhari pure information Bakwas hai.