असान अथवा अवसान बीवी और हिन्दू समाज की महिलायें !

मेरे गांव की महिलायें एक पूजा बडी़ आस्था के साथ करती है जिसे “दुरकैयां” के नाम से जाना जाता है असल में मुझे और न ही गांव की महिलाओं को इस शब्द के मायने पता है । किन्तु इस पूजा में एक मुस्लिम महिला का स्मरण किया जाता है जिन्हे असान या औसान बीवी कहते है और यह मान्यता है कि असान बीवी से जो कुछ मागों वह मिलता है। पर ये महिला कौन  है इनका एतिहासिक महत्व क्या है और हिन्दू समाज में ये कब से पूजित है इसका उल्लेख कही नही है। और न ही इन्हे पूजने वालों को कोइ मालूमात है। और लोगों की इसी अनिभिग्यता ने मुझे प्रेरित किया की आखिर यह देवी कौन है जिन्हे हमारा समाज पूजता है।

यहां ये स्पष्ट करना चाहूंगा कि असान बीवी की पूजा सारे उत्तर भारत में होती है जिसमें सात सुहागिन महिलायें आमंत्रित की जाती है उन्हे मिठाई, लाई, आदि ससम्मान खिलाकर उनसे थोडा़-थोडा़ प्रसाद पूजा करने वाली महिला अपने कोछे ( साडी़ का पल्लू) में लेती है। ये पूजा मन्नत पूरी होने पर ही आयोजित की जाती है।

मैने तमाम समाजों की महिलाओं से इस बावत जानकारी ली तो पता चला कि सभी के यहां ये पूजा आयोजित होती है कभी न कभी पर पुजित “बीवी” के  विषय में अनिभिग्यता के अतरिक्त मुझे कुछ नही मालूम हो सका।

शायद असान बीवी की मान्यता बंगाल से चलकर उत्तर भारत में प्रचारित व प्रसारित हुई।

उत्सकता बढ़्ती गयी !!!!

अभी तक जो नतीजे है वह इस प्रकार है की “बीवी” को हिन्दू संस्कृति में “देवी” कहते है और असान बीवी बंगाल में मुस्लिम व हिन्दू समाज में पूजित है इन्हे खतरों व तकलीफ़ों की देवी कहा गया है और इनसे मन्नत मानने से लोगों के कष्ट दूर हो जाते है ऐसी अवधारणा है। बंगाल में इन्हे उद्धार देवी के नाम से भी जाना जाता है और इस में सात महिलाओं को मच्छी – भात खिलाया जाता है और गीत गाये जाते है किन्तू हमारे उत्तर भारत में मिठाई – लाई का प्रचलन है और कहानी सुनाई जाती है। बंगाल की हिन्दू-मुस्लिम आबादी जो एक मिली जुली संस्कृति है में भाषा व शब्दों में अंतर के अतिरिक्त पूजा आदि का प्राविधान मिलता जुलाता है उदाहरण के लिये “बन देवी”  को मुस्लिम समाज “बन बीवी” या जंगली पीर के नाम से संबोधित करती है चिकेन पाक्स की हिन्दू देवी को शीतला देवी कहते है तो मुस्लिम समाज में इन्हे झाला बीवी के नाम से जान जाता है चीजे एक है पर शब्द व रिचुअल्स के तरीके अलग हो सकते है।

कुल मिलाकर हमारा भारतीय समाज हमेशा से बाहर से आने वाले लोगों की भाषा, वेशभूषा, धर्म, खान-पान, और उनकी पंरंपराओं को बेहिचक अपनी इच्छा व सुविधा अनुसार ग्रहण करता गया और धीरे -धीरे ये सभी चीजे हमारे समाज का अभिन्न अंग बनती गयी ।

उपरोक्त संदर्भ में किसी को कोई जानकारी हो तो कृपया अवश्य बातायें….स्वागत है।

कृष्ण कुमार मिश्र

मैनहन-२६२७२७

भारत