“ग्राम-मैनहन, पोस्ट-ओदारा-२६२७२७, परगना-कस्ता, ब्लाक-मितौली, तहसील-मोहम्मदी, जिला-खीरी, उत्तर प्रदेश, भारत”

इस ग्राम सभा के अन्तर्गत दो हैमलेट(पुरवा-छोटे गांव) शामिल है

१-खुटेहना

२-रानीबेहड़

अतीत में कोसल राज्य के नैमिषराण्य क्षेत्र का गांव मैनहन, तदपश्चात हिन्दुस्तान के अवध सूबे के मितौली राज्य के आधीन, जिसकी कमिशनरी खैराबाद स्थित थी और जिला मोहम्मदी, हालात फ़िर बदले और ईस्ट इंडिंया कम्पनी की आधीनता को स्वीकारा इस गांव ने, किन्तु गदर ने फ़िर हालात बदले और मैनहन हिस्सा बन गया संयुंक्त प्रान्त की महमूदाबाद तालुकेदारी के आधीन, फ़िर आई १९४७ ईस्वी में  बापू की अगस्त क्रान्ति और अब यह गांव आज़ाद भारत वर्ष में उत्तर प्रदेश के जिला खीरी के अन्तर्गत है। इस गांव का पूर्वी किनारा लगभग सितापुर जिले को स्पर्श करते-करते रह गया।

कभी ढ़ाक के जंगलों से घिरा यह गांव अब गन्ने की फ़सल से आच्छादित है चारो तरफ़ मिठास ही मिठास। यहां गेहूं, धान, सरसों, मसूर, और गन्ना बस यही पाच फ़सले बोई जाती है जबकि कभी फ़सलों में बड़ी विविधिता थी यहां! जैसे- ज्वार, बाज़रा, मकई, कोदई, सांवा, चना, उर्द, जौ, मक्का आदि बोया जाता था किन्तु अब ये फ़सले विलुप्त सी हो गयी है।और गन्ने ने सारी कृषि भूमि पर एकाधिकार प्राप्त कर लिया है।

वृक्षॊं में कभी, ढ़ाक, शीशम, शाखू, तेन्दू, महुआ, अकहोरिया, सोहरिया, बबूल, बेरी, और न जाने कितनी अनाम वन्स्पतियां थी, आज़ के हालात में, केवल आम, नीम, यूकेलिप्टस, पापुलर और कूछ पीपल और बरगद भी बच गये है क्योंकि इनका धार्मिक महत्व है!

मिट्टी के सुन्दर घर और खर-पतवार के छप्पर अब नदारद है और उनकी जगह पर ईट के बेढ़गें मकान मुंह बिचकायें खड़े है।

रेहू, या केवल जल से धुली सिर पर गांधी टोपी या तौलिया और तन पर सफ़ेद धोती ऐसा जगमाती थी कि आज कल के सुर्फ़ एक्सेल और रिन के डिटरजेन्टस भी वास्तविकता में वह सफ़ेदी नही दे पाते सिवाय टेलीविजन के, खैर जमाना बदला है तो मैल भी बदल चुकी है तब वसुन्धरा की चिकनी व स्वच्छ मिट्टी जिससे बन्दन किया जाता था अब जहरीले रसायनों से इतना दूषित हो चुकी है कि कपड़ों पर उसके दाग अमिट छाप छोड़ते है। किन्तु अब लोग न जाने किन कपड़ो की बद-रंगों वाली मैली कुचैली पोशाको में घूमते नज़र आते है भले वक अपने आप को विकसित और समृद्ध मानते है।

खैर सब कुछ बदला किन्तु एक चीज कभी नही बदली और न ही भविष्य में बदलेगी कम से कम दुनियां के अन्त तक तो नही, अक्षांस और देशान्तर।

  • तो भाई पृथ्वी पर हमारा मैनहन अक्षांस,   +27° 48′ 43.19″उत्तर, देशान्तर +80° 29′ 54.99″पूर्व।

कृष्ण कुमार मिश्र आफ़ मैनहन

4 Responses to “इतिहास”

  1. Sanjeev Gayen Says:

    Dear Krishna, I am not very religious man. Neither I believed on such rituals. Something which I liked in your post is that you have very well pointed out your pain for the prevailing religious system which become a “looting sansthan” of a common man. I feel it was never ever before in this way. As I have been reading a lots of literature about ancient India and I am very surprised that nothing has been taught to us in our schools. Even there is question on attack of “Aarya”. Many eveidences of archiological survey and historians shows and stated that it’s not true. The concept itself that India was attacked by “AArya” was not there. Civilization in India developed long back may be more than 4000BC it’s developed when no any other continent in the earth had such rich cultures. It also proved through the Vedas and the dates mentioned. Vedas were so rich in it’s content and way of reading that still western scholars are doing research on it. Either in North or south of India, Vedas in their form and rituals have been there since so long.Vedas have all the knowledge about Mathematics, Cosmology, Astrology, Medicine etc. I think we should condemn the wrong practices on the name of religion but at the same time we should also appreciate that we have deep rooted Hinduism, which has given birth to so many branches of religions like Buddhuism, Janism, Sikhisam etc… Even many western scholar has opinion that Muslism also came from Hinduism. Because it was Vikramaditya who had his dynasty from Middile East to Asia and was 4000-12000B.C. when there were no civilization were so rich in religion and life style, custom and tradition. However, It’s matter of perception and we should avoid to be blind with religion, but at the same time we should try to learn our deep culture in a very systematic way to pass on to our next generation, we have a solution of global peace and harmony in our deep rooted civilization, which can be given to the world , to humanity as once Swami Vivekananda had given…

  2. रणधीरसिहं हरि Says:

    आपने सही लिखा कि आर्य वाकई आज भी हरामखोर हैं आर्य जाटों में आते हैं हम सिर्फ आर्यों को अभी बहुत बडें संस्कारी समझते थें तभी हम फंस गये मेंनें अपने लडंके का रिश्ता कर दिया ऐक आर्य परिवार मैंशादी भी कर दी लड़का govt job करता है हमारी खुली बात हुई दस लाख टोटल लगाना उसने हमारी कोई भी डिंमाडं नही थी बस ऐक ही डिमाडं कि लड़की घरेलु चाहिऐ घर के काम मैंहाथ बटाने वाली लड़की वे उसकी मां ने भी हॉं कर दी हमारी ऐक लडंकी सीए है उसने कई बार कहा कि हमारे घर में कोइ बंधन नही है कुछ खोओ कुछ पहनो नोकरी करो या ना करो मगर घर काम जरूर करना पडेगा शादी के ४० दिन बाद सारे जेवर कपडें जो वो ले जा सकी वो ले गई उसका भाई आया ऊपर से दो बेग भर कर ले गई वहा जाकर जो डरामा किया वो हम चार महिने से भुगत रहें हैं दस लाख का २६लाख हो गया जेवर सारे ले गई केस कर रखा है उसमें लड़की दामाद मेरा साला और लड़का में मेरी घरवाली सब का नाम लिखा रखा है हम भुगत रहें हैं कोई ईलाज हो तो बताओ अब ईनको हराम खोर नही तो क्या कहेंगें बाते तो बहुत हैं इतनी घटिया हैं कि केसे बताऊ हमारी तो जिन्दगी झँडं करके रखदी है ा

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