भारत का कोई प्रधानमंत्री मैनहन तो नही आया पर गुलाम भारत के नेता पं० जवाहर लाल नेहरू जरूर इस गांव के पास से होकर गुजरे लोगों से मिले यह बात मेरे बाबा जी पं० महादेव प्रसाद मिश्र ने बताई थी तब पं० जी यहां से गुजरने वाला गलियारा जिसका नाम अब राजा लोने सिंह मार्ग है या बोलचाल मे लखीमपुर – मैगलगंज रोड कहा जाता है। पर विक्टोरिया (घोड़ा-गाड़ी ) पर सवार होकर आये थे और लोगो से मुलाकात करते हुए आगे का रास्ता तय कर रहे थे ।
इन्दिरा जी का जिक्र यहां इस लिये प्रासंगिक है कि वह भारत की ऐसी सर्वमान्य नेता थी जो लोगों के ह्रदय के बसती थी और यही वजह थी की पं० ने्हरू जनमानस में इतने लोकप्रिय होने के बावजूद इन्दिरा जी जैसे प्रधानमंत्री होने का गौरव हासिल नही कर सके हांलाकि भारत को इतना बेह्तर नेतृत्व देने का श्रेय उन्हे ही जाता है क्योकि जवाहरलाल एक प्रधानमंत्री से कही ज्यादा बेह्तर पिता और उससे भी कही ज्यादा बेहतर इतिहासकार थे और उनकी ये छाप इन्दिरा में स्पष्ट झलकती थी क्योकि इस पिता ने १२ वर्ष की बच्ची को लेनिन, कार्लमार्क्स, स्तालिन और बापू के बारे में वो सब बाते पढ़ा दी थी जो आज के उम्रदराज़ और शीर्ष पर बैठे नेता कुछ नही जानते ! “अतीत यदि मन में गहराई से समा जाय तो संस्कार बन जाता है” और शायद यही अतीत इन्दिरा को प्रियदर्शनी बना देता है, जो नेहरू ने बताया था कुछ इस तरह “की बेटी जम मेरा जन्म हुआ था तो रूस मे लेनिन क्रान्ति कर रहे थे और जब तुम पैदा हुई हो तो भारत में बापू क्रान्ति कर रहे है और तुम्हे इस क्रान्ति का हिस्सा बनना है”
सतीश जैकब, बी०बी०सी०, नई दिल्ली- दुनिया को इन्दिरा जी की मृत्यु का शोक-संदेश देने वाले पत्रकार
आज मै बी०बी०सी० हिन्दी की बेवसाइट पर “कैसे बताया बी.बी.सी. ने दुनिया को” नाम वाले शीर्षक को देखरहा था जो इन्दिरा जी की हत्या के संदर्भ में था और इस आडियों लिंक में बी.बी.सी. पत्रकार सतीश जैकब और आंनद स्वरूप की गुफ़्तगू थी उस खबर के बारे में जो आज से २५ वर्ष पूर्व घटी दुनिया की सबसे बड़ी घटना थी यानी श्रीमती गांधी की हत्या पूरा विश्व अवाक सा रह गया था जब लोगो को मालूम हुआ कि श्रीमती गांधी के अंगरक्षको ने ही उन्हे मार दिया!!
उस दौर की सबसे बड़ी एक्सक्ल्यूजिव खब्रर……………… दुखद घटना………………
और उस टेप को सुनकर मुझे अपने बचपन की वह शाम याद आ गयी जब मेरे आसपास शोक की लहर दौड़ गयी, मेरे यहां रडियो हुआ करता था और भारत वासियों को सुख-दुख के संदेश यही डिवाइस देती थी…खबर थी “इन्दिरा जी अब नही रही ” …………..
मै और मेरे माता-पिता सभी अचम्भित और दुखी थे और अभी अधेंरा हुआ ही था की मेरी आंखों से अश्रुधारा गिरने लगी मेरे बाल-मन में क्या भाव आये अपने प्रधानमंत्री की मृत्यु पर ये तो मै अब सही सही नही कह सकता किन्तु उस रोज़ मैने खाना नही खाया मां तमाम प्रयासो के बावजूद!!
और कुछ दिनों तक तो इन्दिरा जी के उस भाषण के शब्द दोहराता रहा जो उन्होने अपनी मृत्यु से पहले दिया था अन्तिम भाषण…………..”मेरे खून का एक एक कतरा……..”
उन दिनों मेरे पिता जी नवभारत टाइम्स और माया एवं इण्डिया टुडे के नियमित पाठक थे बावजूद इसके की हम दूरदराज़ के इलाकों में रहते थे और अखबार शाम को ही मेरे गांव पहुंचता था आज भी १९८४ की उन पत्रिकाओं को पलटता हूं तो अजीब सी अनुभूति होती है।
भारत को अभी तक इतना बेहतरीन नेतृत्व नही मिला जो इन्दिरा जी ने दिया उस वक्त ये कहा जाता था “Only one Man in the cabinet……….”
क्या अब इस मुल्क में कोई ऐसा प्रधानमंत्री होता है जो लोगो के दिलों में बसता हो…………… .बच्चों के कोमल ह्र्दय में ! आखिर क्यों ?
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन-२६२७२७
भारतवर्ष