उत्तर प्रदेश के जिला खेरी मुख्यालय लखीमपुर से मितौली-मैंगलगंज जाने वाली सड़क पर एक जगह है जहां शीशम की डालियों पर गुलहड़ के फ़ूल लटकते हुए दिखाई देते है। ये विस्मयकारी और रोमांचित कर देने वाला दृश्य हर उस यात्री को चौकां देता है जो इस सड़क से गुजरता है। इस अदभुत बात में एक विशिष्ठता है कि ये पुष्प पूरे वर्ष भर पल्लवित होते है इस शीशम के वृक्ष पर।

जब मुझे पहली बार इस घटना के बावत जानकारी मिली तो मैं अवाक रह गया और अपने जीव विज्ञानी मस्तिष्क को पल भर में चकरघिन्नी कटा डाली…जीव जगत के अदभुत रहस्यों के संसार में किन्तु अफ़सोस मुझे वहां ऐसा कोई प्रमाण नही मिला ।

किसी और वनस्पति विज्ञानी से पूछने की हिम्मत नही हुई, और कही न कही यह भी चोर था मन में कि यदि प्रकृति का यह खेल सच्चा हुआ तो कोई और न ले उड़े मेरी इस खोज़ को!

तमाम बेवकूफ़ाना खयालों के साथ मन में रसगुल्ले फ़ोड़ता हुआ मैं उस जगह पर पहुंचा, एकबारगी तो मैं बेसुध सा हो गया उस नज़ारे को देखकर, अरे ये क्या, ये तो वास्तव में शीशम पर गुलहड़ के फ़ूल!

निकट पहुंचते ही मेरे मन की हिलोरे शान्त हो गयी, वज़ह यह कि इस पेड़ के निकट न तो कोई गुलहड़ का वृक्ष था और न ही कोई वैज्ञानिक विधि का इस्तेमाल हुआ था। यहां एक साधू कुटी बनाए हुए रहता है, उससे मुलाकात की और पूंछा माज़रा क्या है तो उसने भी टाल दिया।

दरअसल शीशम की टहनियों पर रोज़ कोई इन पुष्पों से सज़ाता है, जो बिल्कुल प्राकृतिक नज़र आते है, मानों इसी वृक्ष पर ये पुष्प खिले हों।

मैं मायूस होकर लौटा किन्तु एक सवाल आज़ भी मेरे मन में है, कि आखिर कौन है वह व्यक्ति और कैसी है उसकी यह शपथ की पूरे वर्ष वह चुन-चुन कर लाता है गुलहड़ के पुष्प इस शीशम के वृक्ष में टांगने के लिए। प्रकृति के विरूद्ध इस दुस्साहस में कही उसे ऐसा तो नही लग रहा है, कि कही एक दिन वास्तव में इस शीशम में गुलहड़ के पुष्प खिलने लगेंगे।

आज भी आप जब राजा लोने सिंह मार्ग पर कस्ता से मितौली की तरफ़ गुजरेंगे तो एक जगह सड़क के किनारे ये वृक्ष आप को मिलेगा जिसमें गुलहड़ के फ़ूल पल्लवित हो रहे हैं।

मुझे यहां विलियम वर्ड्सवर्थ की एक कविता की वो लाइन याद आ गयी ———

a treasure that God giveth……………

कृष्ण कुमार मिश्र

मैनहन-२६२७२७

भारतवर्ष

 

बाघ जो जिन्दा रहने के लिये जूझ रहा है मानवजनित..........

बाघ जो जिन्दा रहने के लिये जूझ रहा है मानवजनित.............

 

 

खीरी जनपद के बाघ

एक वक्त था जब उत्तर भारत की इस तराई में बाघ और तेन्दुआ प्रजाति की तादाद बहुत थी यहां धरती पर विशाल नदियों के अलावा छोटी-छोटी जलधारायें खीरी के भूमण्डल को सिंचित करती रही नतीजा नम भूमि में वनों और घास के मैदानॊं का इजाफ़ा होता रहा है । लोग बसते गये, गांव बने, कस्बे और फ़िर शहर, लोग जंगल और इनके जीवों के साथ रहना सीख गये सब कुछ ठीक था पर आदम की जरूरते बढ़ी आबादी के साथ-साथ, नतीजा ये हुआ कि जंगल साफ़ होने लगे और साथ ही उनमे रहने वाले जीव भी ! .गांव बेढ़ंगे हो गये, कस्बे व शहर आदिमियों और उनकी करतूतों से फ़ैली गंदगी से बजबजाने लगे और प्रकृति की दुर्दशा ने उसके संगीत को भी बेसुरा कर दिया जिसे ……….!!!

अब सिर्फ़ इस जनपद में टाईगर व तेन्दुआ, दुधवा टाईगर रिजर्व के संरक्षित क्षेत्र में बचे हुए है, खीरी के अन्य वन-प्रभागों में यह खूबसूरत प्राणी नदारद हो चुका है।

लेकिन मैं यहां एक एतिहासिक दृष्टान्त बयान करना चाहता हूं जो इस बात का गवाह है कि खीरी के उन इलाकों में भी बाघ थे जहां आज सिर्फ़ मनुष्य और उसकी बस्तिया है वनों के नाम पर कुछ नही ! नामों-निशान भी नही, हां गन्ने के खेत जरूर है जो ………….जिन्हे दिल बहलाने के लिये जंगल मान सकते हैं!

आज से तकरीबन १०० वर्ष पूर्व किसी धूर्त और चापलूस भारतीय राजा ने अपने अग्रेंज मालिक के साथ मेरे गांव आया जिसके पश्चिम में महुआ और बरगद, जामुन व पलाश के जंगल थे, और वही एक बाघ न जाने कब से रह रहा था, उन कलुषित व धूर्त मानसिकता वाले लोगो ने उसे मार दिया, ग्रामीण, राजाओ के इस तमाशे को देखने के अतिरिक्त क्या कर सकते थे, उस घटना के बाद इस जगह का नाम पड़ा “बघमरी” या “बाघमरी” । आज इस जगह खेती होती है कुछ दूर पर बस्तियां है और अब जंगल यहां से तकरीबन १०० किलोमीटर दूर यह है विनाश की दर जो मानव जनित है !

पर आज मुझे इस स्थान को देखकर उस अतीत की कल्पना करने का मन होता है जिसे मैने नही जिया, वह पलाश के फ़ूलों से लदे वृक्ष, महुआ के फ़लों की मदहोश करने वाली खुसबू, बरगद के घने जटाओं वाले वृक्ष, अकहोरा की झाड़िया, बेर और न जाने क्या-क्या जो हज़ारों पक्षियों का बसेरा होंगें! मखमली घास और उस पर आश्रित सैकड़ो मवेशी !

और इन झुरमुटों में कुटी बनाये रहते हुए गांव के ही अध्यात्मिक पुरूष  जिनका जिक्र मैने सुना है !

अब यहां सब सुनसान है! सिर्फ़ एक सड़क……………………….

कृष्ण कुमार मिश्र

मैनहन-262727

भारतवर्ष

सेलुलर- 9451925997