आजादी के आसपास की बात है, मास्टर जगत पाल (नारायण) ने एक सरस्वती वन्दना लिखी थी, जो खूब प्रचलित हुई।
माँ बताती है बात सन १९५६ की है, जब उनके स्कूल मुरई-ताज़पुर में जगत पाल जी तैनात हुए, उनकी आदत में शुमार था कविता लेखन, वो हमेशा किसी न किसी विषय, वस्तु और व्यक्ति पर कविता लिख डालने में माहिर थे। कभी-२ तो डिप्टी पर ही कोई कविता लिख दी और स्कूल निरीक्षण के दौरान बच्चों ने जब वही कविता सुनाई तो डिप्टी साहब भी बाग-बाग हो गये।
आज ५४ वर्ष बाद भी वह कविता मेरी माँ को याद है, अब उन्ही के हवाले से ये रचना प्रस्तुत कर रहा हूँ।
माँ शारदे कहाँ तू वीणा बजा रही है।
किस मंजु ज्ञान से तू जग को लुभा रही है।
विनती नही हमारी क्यों मातु सुन रही हो।
हम दीन बालिकायें विनती सुना रहे हैं।
चरणों में तेरे माता मैं सर झुका रही हूँ।
बालक सभी जगत के सुत मातु है तिहारे।
प्राणों से प्रिय तुम्हे है हम पुत्र सब दुलारे।
हमको दयामयी तू ले गोद में पढ़ाओ।
अमृत का ले के प्याला माँ ज्ञान का पिलाओ।
हो सकता है ये कविता मुकम्मल न हो और माँ की विगत स्मृतियों में कुछ अंश धूमिल हो गये हो। यदि इसके बारे में कोई और मालूमात हो, तो आप सब जरूर अवगत कराइयेगा।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
भारत
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