……..मकर संक्रान्ति पर आप सभी को शुभकामनायें, आखिर सूरज तमाम झंझावातों के बावजूद अपनी मंजिल तक पहुंच गया, यानी मकर राशि के स्टेशन पर, ..वैसे उसने बड़ी तकलीफ़े झेली, खराब मौसम, नो विजिबिलिटी, पतवार खो गयी थी, नाव डगमगाई थी, पटरी से गाड़ी भी एक बार उतर गयी थी किन्तु उस साहसी ने सफ़र पूरा कर लिया और आ पहुंचा मकर नगर के राशि हवाई अड्डे पर!…..मैनहन टुडे!
आओं हम सब हमारे ब्रह्माण्ड के मुख्य ऊर्जा स्रोत को स्वागत करे, नमन करे!
सूर्य आज यानी १४ जनवरी को धनु राशि से पलायन कर मकर राशि पर पहुंचता है, आज के ही बाद से दिनों में बढ़ोत्तरी शुरू-ए होती है।
हमारे यहां मकर संक्रान्ति को खिचड़ी कह कर संबोधित किया जाता है। इसे पंतगों का त्योहार बनाया, मुगलों और नवाबों ने, अवध की पतंगबाजी बे-मिसाल है पूरे भारत में! वैसे इस खगोलीय घटना के विविध रूप हैं हमारे भारत में, कहीं पोंगल तो कही लोहड़ी……..किन्तु अभिप्राय एक है…सूरज का मकर राशि में स्वागत करना। एक बात और १२ राशियां बारह संक्रान्ति, पर मकर संक्रान्ति अपना धार्मिक महत्व है। तमाम कथायें भी प्रचलित है इस घतना के सन्दर्भ में।
माघे मासि महादेव यो दाद घृतकंबलम।
स भुक्त्वा सकलान भोगान अंते मोक्षं च विंदति॥
आज से लगभग १००० वर्ष पूर्व मकर सन्क्रान्ति ३१ दिसम्बर को पड़ती थी और आज से ९००० वर्ष बाद ये घटना जू न में घटित होगी। वैसे ये ग्रहों का खेल है। जिसे विज्ञान अपने ढ़ग से समझाती है। पर मैं आप को लिए चलता हूं, मैनहन गांव में जहां ये त्योहार पांरपरिक ढ़ग से मनाया जाता है।
प्रात: ब्रह्म-मुहूर्त में तालाब, नदी या कुएं में स्नान करना शुभ माना जाता है। यहां के तमाम धार्मिक लोग इस रोज नैमिषारण्य के चक्र तीर्थ में स्नान करने जाते है। कुछ गंगा या गोमती में ।
सुबह की स्नान पूजन के बाद तोरई (कुकरबिटेसी) की सूखी लताओं से आग प्रज्वलित की जाती है ताकि सर्द मौसम से बचा जा सके। तोरई की लता को जलाना शुभ माना जाता है।
बच्चों को हमेशा यह कह कर प्रात: स्नान के लिए प्रोत्साहित किया जाता है कि जो सबसे पहले उठ कर तालाब के ठण्डे पानी में नहायेंगा उसे उतनी सुन्दर पत्नी व पति मिलेगा।
इस दिन शिव पूजा का विधान है और लोग स्नान आदि करने के बाद शिव की उपासना करते है उसके उपरान्त सन्तों और भिखारियों को खिचड़ी दान का कार्यक्रम।
इस तरह मनाते है मकर संक्रान्ति हमारे गाव में, हां एक बात तो भूल ही गया, यहां मेरे गाँव के लोग और खास-तौर से मेरी माँ की नज़र में कोई पशु-पक्षी नही छूटता जिसे खिचड़ी का भोग न लगाया जाय।
मकर संक्रान्ति का धार्मिक महत्व
किवदंतियां है कि इस दिन भगवान सूर्य (भास्कर) अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूंकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिए मकर संक्रांति के दिन को ही चुना था। और इसी दिन को ही गंगा भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं।
कृष्ण कुमार मिश्र
मैनहन
भारत